हाल ही में राजकीय शिक्षक संघ में चुनकर आए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा महामंत्री बिना समय गंवाए कुछ ठोस काम करने के पक्षधर हैं।
अध्यक्ष कमल किशोर डिमरी ने पर्वतजन से एक संक्षिप्त बातचीत में कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता है पारदर्शी चक्रवार स्थानांतरण कानून लागू करवाना! इसके अलावा उनके अन्य संकल्पों में प्रत्येक शिक्षक को वोट का अधिकार दिलाना। कम छात्र संख्या के बहाने स्कूलों बंद किए जाने के भी डिमरी खिलाफ हैं। डिमरी कहते हैं कि कुछ मामले विभागों से संबंधित हैं और कुछ समस्याएं शासन के स्तर पर हल होनी है। इसके लिए वह जल्दी ही दोनों लेवल की समस्याओं को प्राथमिकता से फैक्ट एंड फिगर के साथ रखने की तैयारी कर रहे हैं।
सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिये एकेडेमिक सेल का गठन करने पक्षधर संघ के उपाध्यक्ष मुकेश प्रसाद बहुगुणा बिना समय गवाएं नवनिर्वाचित कार्यकारिणी की औपचारिक बैठक बुलाई जाने के पक्षधर हैं। साथ ही बहुगुणा कहते हैं कि बधाई संदेशों के लेन-देन में समय गंवाने के बजाए वह शिक्षकों की समस्याओं को वर्गीकृत करके वार्ताकारों की अलग-अलग टीम बनाए जाने के पक्षधर हैं।
बहुगुणा कहते हैं कि शिक्षकों के उत्पीड़न को रोकना उनकी शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल है। शिक्षक संघ के महामंत्री डॉ सोहन सिंह माजिला कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के समय से शिक्षकों की मूलभूत समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया है। इसके पीछे अधिकारियों की उदासीनता है। माजिला कहते हैं कि उनकी प्राथमिकता में शिक्षकों को एसीपी का लाभ दिलाने और प्रत्येक सत्र में नियमित प्रमोशन कराने के लिए नियमावली बनाना रहेगी। माजिला कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के समय से अध्यापकों को यात्रा अवकाश की सुविधा मिलती थी। वह सुविधा मैदान से पहाड़ जाने वाले अध्यापकों को तो मिलती है, लेकिन पहाड़ से पहाड़ के लिए यात्रा अवकाश नहीं दिया जाता। उदाहरण के तौर पर यदि कोई अध्यापक उत्तरकाशी से पिथौरागढ़ स्थित अपने घर जाना चाहता है तो उसे भी यात्रा अवकाश मिलना चाहिए। गौरतलब है कि यात्रा अवकाश साल में एक बार मिलता है ।
माजिला एल टी का मंडल कैडर खत्म करने के भी पक्षधर हैं। वह कहते हैं कि यदि कोई कुमाऊं मंडल से गढ़वाल मंडल में ट्रांसफर होकर आना चाहता है तो उसकी वरिष्ठता समाप्त कर दी जाती है। इसलिए वह एलटी मंडल काडर खत्म करने के लिए कार्य करेंगे। महिला अध्यापकों के लिए 15 दिन के सी सी एल की स्वीकृति प्रधानाचार्य के स्तर से ही कराए जाने की व्यवस्था करने के वह प्रबल पक्षधर हैं।
विहंगम दृष्टि से नवनिर्वाचित कार्यकारिणी पर एक नजर डालें तो यह कहा जा सकता है कि कार्यकारिणी में अध्यापकों ने साफ छवि, इमानदारी से बिना लाग लपेट के अपनी बात कहने वाले शिक्षक नेताओं को ही प्राथमिकता दी है। शिक्षक नेता भी यह बात भली-भांति समझते हैं कि उन्हें ट्रांसफर एक्ट से लेकर अन्य वास्तविक समस्याओं की बात करने के फलस्वरुप ही समर्थन दिया गया है, इसलिए वह जल्द से जल्द संघर्षों की नई रूपरेखा बनाने के लिए व्यग्र भी दिख रहे हैं। नवनिर्वाचित कार्यकारिणी की गंभीरता को देखते हुए शिक्षा मंत्री ने भी अपने तेवरों में कुछ ढील दे दी है। देखना यह है कि आने वाले समय में यह कार्य कारिणी विभाग और शासन में किस तरह से अपनी समस्याओं के समाधान के लिए समीकरण बिठा पाती है।