डबल इंजन लगाकर क्या मिला उत्तराखण्ड को ?
देखिये फैक्ट ! कंगाली के कगार पर सरकार के निगम…
आम लोगों को सरकारी सेवाओं का त्वरित लाभ देने के मकसद से बनाये गये सरकार के उपक्रम (निगम) अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं। यूं तो राज्य सरकार के तकरीबन एक दर्जन निगम हैं लेकिन उनमें से खस्ताहाल निगमों में परिवहन निगम, जल निगम और गढ़वाल मण्डल विकास निगम प्रमुख हैं। ये ऐसे निगम हैं जो सीधे तौर जनता से जुड़े हुये हैं और जनता को परिवहन, पेयजल और आवासीय जैसी मूलभूत सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं। बावजूद इसके सरकार इन निगमों पर ध्यान नहीं दे रही है। निगमों को उबारने की योजना बनाने के बजाये सरकार उन पर अपनी महत्वकांक्षी योजनाओं का आर्थिक भार थोप रही है। हालात यह है कि इन तीनों निगमों में कर्मचारियों को वेतन-भत्तों के लाले पड़े हुये हैं। कर्मचारी आन्दोलित हैं पर उनकी सुनने को कोई तैयार नहीं। कर्मचारियों का रोष कभी भी आक्रोश के रूप में सामने आ सकता है। आइये जानते हैं इन तीन निगमों की मौजूदा समय में क्या स्थिति है !
परिवहन निगम का 30 करोड़ का वेतन बकाया
परिवहन निगम का घाटा लगातार बढ़कर 225 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका है। यह वही निगम है जिनसे वर्ष 2013 की आपदा के वक्त राहत कार्य में अग्रणी भूमिका निभाई थी। हालांकि आपदा का 23 करोड़ का देय सरकार ने अभी तक इस निगम का नहीं चुकाया है। और तो और निगम के कर्मचारियों को पिछले तीन माह से वेतन नहीं मिला है। निगम की इससे बुरी स्थिति क्या होगी कि वर्ष 2017 से सेवानिवृत्त हुये कर्मचारियों को उनकी पेंशन व भत्तों का भुगतान नहीं हुआ है।
पेयजल निगम में 3 माह से वेतन-पेंशन नहीं
पेयजल जैसी मूलभूत सुविधायें मुहैया करवाने वाले पेयजल निगम में कर्मचारियों को पिछले दो माह से वेतन का भुगतान नहीं हुआ है। यही स्थिति निगम के पेशनरों की भी है। हाल यह हैं कि हर महीने कर्मचारियों व पेशनरों को आन्दोलन करना पड़ता है उसके बाद ही सरकार उन्हें वेतन-पेशन के लिये बजट का इंतजाम करती है। हालात ऐसे हैं कि कर्मचारियों का ज्यादातर वक्त पगार जुटाने के आन्दोलन में जाया हो जाता है। निगम के कर्मचारी पिछले 13 दिसम्बर से अनशन पर बैठे हुये हैं।
जीएमवीएन के कर्मियों को 7 माह से वेतन नहीं
सरकार एक ओर राज्य को पर्यटन प्रदेश बनाने के दावे कर रही है पर धरातल पर सच्चाई कुछ और है। पर्यटकों को आवासीय और भोजन सुविधा मुहैया करवा रहा गढ़वाल मण्डल विकास निगम (जीएमवीएन) सरकार की उपेक्षा के कारण कंगाली की कगार पर है। स्थिति इतनी विकट है कि जीएमवीएन के गेस्ट हाउसों को आय के रूप में खुद ही अपनी पगार का जुगाड़ करना पड़ रहा है। निगम के घाटे पर चल रहे अधिकांश गेस्ट हाउसों के कर्मचारियों को पिछले 7 माह से वेतन नहीं मिला है।
इस समय परिवहन निगम के कर्मचारी वेतन के लिए काली पट्टी बांध कर विरोध कर रहे है । 13 दिसंबर से 2 महीने का वेतन पाने के लिए पेयजल निगम के कर्मचारी क्रमिक अनशन पर जाने वाले है । गढ़वाल मण्डल विकास निगम में वेतन का बकाया 3 करोड हो गया है और शासन से लगातार बकाये वेतन की मांग कर रहे है । ये हाल हमारे तीन प्रमुख निगमों का हो जिनके कर्मचारी या तो विरोध कर रहे है या फिर इसकी तैयारी में है। प्रदेश के सभी निगमों का कमोबेश यही हाल है । प्रदेश के दो कोर सैक्टर उर्जा और पर्यटन के लिए बनाए गए निगम की हालत खस्ता है ।
1200 करोड़ के घाटे से गुजर रहा यूपीसीएल, वेतन देने के लिए करना पड़ता है औवर ड्राफ्ट।
जीएमवीएन के कर्मचारियों का 3 करोड़ रुपया वेतन बकाया।
18 सालों में बदले 25 एमडी।
परिवहन निगम के कर्मचारियों का 30 करोड़ रुपया वेतन बकाया है।पिछले साल घाटा 225 करोड़ रुपए पहुंच गया।