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फर्जी क्लेम में फंसा टाटा मोटर्स

September 23, 2016
in पर्वतजन
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गाडिय़ों को फर्जी ढंग से क्षतिग्रस्त दिखाकर बीमा कंपनियों से मोटा क्लेम वसूलने के गोरखधंधे में फंसा टाटा मोटर्स। बीमा कंपनियों के सर्वेयर ने की उच्च स्तर पर शिकायत

हमारी गाडिय़ां कहीं दुर्घटनाग्रस्त हो जाती हैं तो आमतौर पर हम सभी क्या करते हैं! यही कि जहां से हमने गाड़ी खरीदी थी, या तो वहां के डीलर को फोन करके गाड़ी ले जाने के लिए कह देते हैं या फिर खुद ही दुर्घटनाग्रस्त वाहन को उनकी वर्कशॉप में छोड़ आते हैं।
हम सभी डीलर के भरोसे पर अपनी गाड़ी छोड़ आते हैं और वे गाड़ी में जितना भी खर्चा बताते हैं और गाड़ी के इंश्योरेंस होने पर जितना खर्च रिफंड करने की बात कहते हैं, उसे बिना किसी छानबीन के मान लेते हैं। एक तो हमें इसकी तकनीकी जानकारी नहीं होती। दूसरा हमारी गाड़ी इंश्योर होती है। तीसरा हमारे पास इन सब बातों की गहराई में जाने के लिए समय की कमी होती है और चौथी सबसे बड़ी बात कि हम अपने डीलर पर भरोसा करते हैं और इन सब परिस्थितियों में हमारे पास भरोसा करने के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं होता।
हम सोच लेते हैं कि इतने बड़े शोरूम और खोलकर बैठी कंपनी उनके साथ कुछ गलत नहीं करेगी, किंतु अगर उसका बिजनेस ही ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी करके लाभ कमाना हो तो फिर किसी का भी स्तब्ध रह जाना स्वाभाविक है।
देहरादून के बहुचर्चित ओबराय मोटर्स (टाटा डीलर) ने ग्राहक और मोटर डीलर के बीच के इसी भरोसे के रिश्ते को तोडऩे का काम किया है।
ओबराय मोटर्स गाडिय़ों को फर्जी ढंग से क्षतिग्रस्त दिखाकर इंश्योरेंस कंपनियों से मोटा क्लेम वसूलते हैं। क्षतिग्रस्त गाडिय़ों की मरम्मत का बढ़ा-चढ़ाकर बनाए गए एस्टीमेट से न सिर्फ गाड़ी मालिक को अधिक भुगतान करना पड़ता है, बल्कि इंश्योरेंस कंपनियों को भी अधिक क्लेम का भुगतान करना पड़ता है। इससे सरकारी खजाने को भी जमकर चूना लगाया जा रहा है।
यह खुलासा किसी आम आदमी ने नहीं, बल्कि एक इंश्योरेंस सर्वेयर ने गाड़ी को हुए नुकसान के आंकलन में किया है। पिछले दिनों देहरादून के इंश्योरेंस सर्वेयर अजय सक्सेना को नेशनल इंश्योरेंस कंपनी देहरादून के रीजनल ऑफिस से ओबराय मोटर्स ने एक गाड़ी में हुए नुकसान का आंकलन करने का दायित्व दिया गया। यह गाड़ी रमेश डबराल नामक व्यक्ति की टाटा आरिया-यूके०७-टीए९२२३ थी। अजय सक्सेना ने १२ जुलाई को इस गाड़ी का बारीकी से निरीक्षण किया और विभिन्न कोणों से गाड़ी की फोटोग्राफ लेने के बाद अपनी सलाह के साथ पूरी स्टेटस रिपोर्ट इंश्योरेंस कंपनी को सौंप दी। दोबारा जब वह १७ अगस्त को ओबराय मोटर्स में अपने दायित्व के निर्वहन के लिए गए तो उन्होंने पाया कि जिस गाड़ी का उन्होंने निरीक्षण किया था, उसके कुछ हिस्से निकालकर एक दूसरी टाटा आरिया कार संख्या यूके०७एपी- १८९३ पर लगाए हुए थे। अजय कुमार शर्मा नाम के व्यक्ति की इस गाड़ी का लगभग ४ लाख रुपए का एक झूठा क्लेम भी ओबराय मोटर्स द्वारा बनवाया गया था। ेेअजय सक्सेना ने दूसरी गाड़ी के भी फोटोग्राफ्स ले लिए तथा झूठे क्लेम के दस्तावेजों की भी फोटो खींच ली। इस झूठे क्लेम के संबंध में जब उन्होंने आस-पास के कर्मचारियों से बातचीत की तो उन्होंने पाया कि ओबराय मोटर्स आमतौर पर ऐसे ही झूठे क्लेम बनाकर पास कराते हैं। जिससे उन्हें अवैध लाभ प्राप्त होता है और इंश्योरेंस कंपनी को अनुचित नुकसान उठाना पड़ता है।
अजय सक्सेना ने नेशनल इंश्योरेंस के रीजनल मैनेजर पवन चौधरी और दूसरे सर्वेयर एपीएस आनंद(गाड़ी संख्या यूके०७एपी-१८९३ का सर्वे करने वाले सर्वेयर) की मौजूदगी में कंपनी के बॉडीशॉप मैनेजर रजनीश, कंपनी के डायरेक्टर राघव ओबराय और कंपनी के मैनेजर आशीष वशिष्ठ से इस मामले की शिकायत की, लेकिन किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति ने अपनी गलती मानने के बजाय धौंसभरे अंदाज में गुमराह करने की कोशिश की।
ओबराय मोटर्स को लगा कि उनके गोरखधंधे पर किसी की नजर नहीं है तो उन्होंने दूसरी वाली गाड़ी के नंबर पर भविष्य में दोबारा क्लेम लेने के लिए पहली वाली गाड़ी में सामान वापस लगाकर दूसरी गाड़ी के नंबर प्लेट के साथ फोटो का एक सेट तैयार कर दिया, ताकि उसके फोटो किसी और सर्वेयर को देकर भविष्य में दूसरा क्लेम भी लिया जा सके। अजय सक्सेना ने इसकी भी फोटो खींचकर अपने पास रख ली।
ओबराय मोटर्स के मालिक सिर्फ इतना ही कह पाते हैं कि गलती से एक जैसी गाड़ी होने के कारण इस गाड़ी के पार्ट उस गाड़ी में लग गए होंगे, लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि फिर उन्होंने गलती एस्टीमेट क्यों बनाया।
अजय सक्सेना कहते हैं कि उनके पास मौजूद फोटोग्राफ और अन्य दस्तावेज साफ बताते हैं कि ओबराय मोटर्स गलत नीयत से झूठे क्लेम बनवाता है।
ओबराय मोटर्स के किसी स्टाफ ने उन्हें बताया कि यह गोरखधंधा यहां काफी लंबे समय से चल रहा है और इसके लिए कुछ चुनिंदा और निश्चित सर्वेयरों की मिलीभगत से ही इस पूरे खेल को अंजाम दिया जाता है।
जाहिर है कि सर्वेयरों के साथ-साथ इंश्योरेंस कंपनी के कुछ अधिकारी भी इस घोटाले के भागीदार हैं। यह भी छानबीन का विषय है कि १८९३ नंबर गाड़ी का मालिक भी इस घोटाले में शामिल है या फिर डीलर ही इस फ्रॉड का कर्ता-धर्ता है।
दूसरी ओर यूके०७टीए-९२२३ नंबर की गाड़ी मालिक रमेश डबराल ने अपनी गाड़ी से कुछ पार्ट बिना इजाजत के गायब करने पर ओबराय मोटर्स की शिकायत चीफ रीजनल मैनेजर से की है।
अजय कुमार सक्सेना ओबराय मोटर्स के इस गोरखधंधे को आसानी से छोडऩे के मूड में नहीं लगते। उन्होंने सभी दस्तावेजों और फोटोग्राफ के साथ इस पूरे प्रकरण की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय, विभागीय केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार सहित इरडा (बीमा कंपनियों के नियामक प्राधिकरण) को भी उचित कार्यवाही करने के लिए भेज दी है।
अहम सवाल यह भी है कि जब मोटर डीलर इंश्योरेंस कंपनी के सर्वेयरों से मिलीभगत कर मनमाना क्लेम करते हैं तो इंश्योरेंस कंपनियां चुपचाप उनके दावों को स्वीकार क्यों करती है। इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि इंश्योरेंस कंपनियों को भी मोटर डीलरों से हर गाड़ी के बीमा प्रीमियम के रूप में मोटा मुनाफा होता है। यदि बीमा कंपनियां मोटर डीलरों के दावों पर सवाल खड़ा करने लगेगी तो उन्हें आशंका रहती है कि ऐसे में मोटर डीलर बीमा कंपनी को ही बदल डालेंगे। मोटा बिजनेस आता देखकर बीमा कंपनियां भी मोटर डीलरों के झूठे दावों को अनदेख कर देती हैं। इसमें उन सर्वेयरों की चांदी हो जाती है जो मोटर डीलरों के इशारे पर क्षतिग्रस्त गाड़ी का क्लेम बढ़ा-चढ़ा कर बनाते हैं। इस पूरे खेल में सर्वेयरों का भी मोटा कमीशन बंधा हुआ है। यही कारण है कि देहरादून में ३० मोटर डीलर हैं तथा ४ सरकारी और लगभग १२ निजी बीमा कंपनियां हैं। इनका सर्वे करने के लिए अकेले देहरादून में लगभग ३० सर्वेयर कार्यरत हैं, किंतु सभी मोटर डीलर चुनिंदा लगभग ७-८ सर्वेयरों को ही अपने प्रतिष्ठान में नुकसान का आंकलन करने को बुलाते हैं। एक सर्वेयर के पास तो २०० से २५० सर्वे हर महीने होते हैं। चर्चा है कि ऐसे सर्वेयर खुद सर्वे न कर ठेके पर सर्वे कराते हैं। यही कारण है कि मोटर डीलर के इशारे पर सर्वे करने वालों को हर माह १५०-२०० सर्वे मिलते हैं, जबकि सही सर्वेयरों को मुश्किल से पूरे महीने में १०-२० सर्वे ही मिल पाते हैं।
गौरतलब है कि अजय सक्सेना नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस के भी संयुक्त सचिव हैं और ह्यूमन राइट फोरम से भी जुड़े हुए हैं। अजय सक्सेना पहले भी मोटर डीलरों और ब्रोकरों के द्वारा बीमा कंपनियों के साथ मिलकर आम बीमाधारकों के साथ हो रही धोखाधड़ी की शिकायत भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री तक से कर चुके हैं। वित्त मंत्रालय ने उनकी पहली शिकायत का संज्ञान लेकर कार्यवाही भी शुरू कर दी है।
अजय सक्सेना ने ओबराय मोटर्स के गोरखधंधे की पूरी रिपोर्ट भी सभी जिम्मेदार अधिकारियों को भेज दी है। अब देखना यह है कि उच्चाधिकारी इस मामले में क्या कार्यवाही करते हैं।

”इस तरह की धांधलियां बीमा कंपनियों की मोटर डीलरों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण बढ़ रही है। रोटेशन से सर्वे कराने की व्यवस्था बन जाए तो चहेते सर्वेयरों पर रोक लग जाएगी और इस तरह की धांधलियां भी कम हो जाएंगी।
– अजय सक्सेना, सर्वेयर


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