फॉरेस्टर को बनाया रेंजर, वन विभाग के लगातार विरोध के बावजूद कुछ फॉरेस्टर को शासन के आलाधिकारियों ने ऊंची सिफारिश के बल पर सीधे रेंजर बना दिया। वन विभाग में वरिष्ठता गड़बड़ाने के साथ ही भारी विरोध की सुगबुगाहट
विनोद कोठियाल
लंबे समय तक वन महकमे के प्रमुख सचिव तथा अपर मुख्य सचिव रहने के दौरान एस रामास्वामी की मनमानी कार्यशैली के कारण वन विभाग का ढांचा एक जंगलराज में तब्दील हो गया है। किशनचंद सरीखे कई भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देते रहने के बाद रामास्वामी फॉरेस्टर को सीधे रेंजर पद में मनमाने प्रमोशन के लिए चर्चा में हैं।
हाईकोर्ट ने इन फॉरेस्टर का प्रमोशन अवैध करार दिया। फिर भी रामास्वामी इनका प्रमोशन करके कोर्ट की अवमानना की जद में आ गए हैं।
कुछ समय पूर्व में वन विभाग में तैनात १० वन दारोगाओं को बैकडोर से बिना कायदे कानून के प्रमोशन दे दिया गया। इस प्रकरण पर पूरी कर्मचारी यूनियन एकत्र हो गई थी। धरना प्रदर्शन का दौर चला, परंतु मुख्य सचिव रामास्वामी ने किसी की नहीं सुनी और बैकडोर प्रमोशन कर दिए।
वन विभाग में प्रदेश गठन से पहले से ही सिविल सोयम के कार्यों को करने के लिए विभाग से ही प्रतिनियुक्ति पर सहायक विकास अधिकारी के पद पर जाते थे। उस समय इन पदों की संख्या ७६ के लगभग थी। पदों की संख्या प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले कर्मचारियों के कारण घट-बढ़ सकती थी।
कालांतर में उत्तराखंड राज्य बनने पर पुरानी इस प्रकार की व्यवस्थाओं में परिवर्तन आ गया। किसी भी विभाग में प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले कर्मचारी का वेतन उस सेवाकाल में मूल वेतन से उच्च होता है और वापस मूल स्थान पर आने पर सामान्य हो जाता है। इसी प्रकार से इन सहायक विकास अधिकारियों के साथ भी हुआ। अपना पद इन्होंने डिप्टी रेंजर के समकक्ष समझ लिया। उच्च वेतन के लालच के चक्कर में लंबे समय तक यह कर्मी सहायक विकास अधिकारी ही बने रहे। लंबे समय बाद इन्हें अपने प्रमोशन का खयाल आया तो यह पता चला कि जब वे अपने मूल विभाग के जाएंगे तो उनका वेतनमान गिर जाएगा तो बाहर ही बाहर सेटिंग शुरू कर दी, क्योंकि यह पद राजपत्रित है। इसलिए इसकी डीपीसी लोक सेवा आयोग हरिद्वार से होती है, परंतु इनका प्रमोशन बिना लोक सेवा आयोग के ही हो गया, जो कि प्रदेश के लिए एक गलत नजीर भी है।
विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा शासन को कई बार इस संबंध में लिखा जा चुका है कि यह प्रमोशन संभव नहीं है, फिर भी इसका रास्ता निकालने का दबाव शासन पर था। शासन ने भी नि:संवर्गीय पदों का गठन कर इन १० दारोगाओं का प्रमोशन कर रेंज अधिकारी बना दिया। जब काफी हो-हल्ला हुआ तो जिन कर्मचारियों की वरिष्ठता प्रभावित हुई, उन्होंने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट का आदेश आया कि प्रमोशन निरस्त कर दिया जाए, किंतु तत्कालीन मुख्यमंत्री और अपर मुख्य सचिव रामास्वामी की जिद से कोर्ट के आदेशों को ही अनदेखा कर दिया गया और इन्हें प्रमोशन दे दिया गया। जो कर्मचारी इन १० लोगों से सीनियर थे, उनकी डीपीसी अभी हाल ही में लोक सेवा आयोग द्वारा की गई, परंतु यदि उपरोक्त आदेशों का पालन होता है तो सीनियर लोग इन १० लोगों के जूनियर हो जाएंगे। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा शासन को कई बार लिखा जा चुका है कि इस प्रकार की नियुक्ति से विभाग में अनियमितताएं हो जाएंगी, जिसे संभालना काफी मुश्किल हो जाएगा, किंतु शासन ने इस पर कोई गौर नहीं फरमाया है। इस संबंध में दबाव का आंकलन इसी बात से किया जा सकता है कि जब उक्त प्रकरण पर कार्मिक और वित्त विभाग से पूछा गया तो दोनों विभागों ने सहमति प्रदान कर दी। इन १० फारेस्टर की ओर प्रमोशन के लिए जोर लगाने वाले नेता शरणपाल आदि के मामले को प्रमुख वन संरक्षक राजेंद्र कुमार तथा अपर प्रमुख वन संरक्षक मोनीष मलिक पहले ही निरस्त कर चुके हैं। सवाल यह है कि जब इस प्रकार की डीपीसी के लिए लोक सेवा आयोग बना है तो फिर ये सब शासन में क्यों हो रहा है? हालांकि तत्कालीन सचिव वित्त एमसी जोशी ने यह कहने का साहस कर दिखाया कि जब कोर्ट के आदेश स्पष्ट है और विभाग की अपील विचारणीय है तो इन दोनों स्थितियों के रहते नि:संवर्गीय पदों के सृजन का प्रस्ताव कैसे विचार योग्य हो गया! जोशी के अलावा किसी भी अधिकारी द्वारा कोई टिप्पणी नहीं की गई, जबकि विभाग की आपत्तियों के तमाम पत्र पत्रावली में लगे थे और उसमें स्पष्ट उल्लेख था कि यह प्रमोशन संभव नहीं है। मामला बड़े लेबल से था तो शासन में सब भीगी बिल्ली बन गए और इस प्रकार की घटना को अंजाम तक पहुंचाया।
इस प्रकार से यदि इन कर्मचारियों की तैनाती होती है तो यह व्यावहारिक दिक्कतें हैं जो विभाग में आएगी। इस प्रकार के सुनियोजित भ्रष्टाचार को यदि रोका नहीं गया तो यह पूरे प्रदेश के लिए नजीर बन जाएगा और अन्य विभागों में भी इस प्रकार की अनियमितताओं को अंजाम दिया जाएगा।
यदि विभाग में यह आदेश लागू होते हैं तो इसके निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:-
१. सृजित १० पदों पर नियुक्ति अधिकारी कौन होगा, जबकि न्यायालय द्वारा निर्णय को निरस्त किया जा चुका है।
२. इन पदों पर कर्मचारियों को किस तिथि से नियुक्त माना जाएगा।
३. इन कर्मचारियों की ज्येष्ठता कैसी निर्धारित की जाएगी।
४. नि:संवर्गीय १० पदों के कार्मिकों का प्रमोशन की क्या प्रक्रिया होगी।
५. कोर्ट के आदेशों की अवमानना होगी।
”संघ ने इस बात का काफी विरोध किया। हमने धरना भी दिया, शासन को ज्ञापन भी दिया गया है कि अपने इस आदेश को वापस लें। इस प्रकार के आदेशों का कर्मचारियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।”
– इंद्रमोहन कोठारी, अध्यक्ष, सहायक वन कर्मचारी संघ
वन मंत्री डा. हरक सिंह पर भी दबाव
वहीं दूसरी ओर कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह रावत ने सचिव एवं प्रमुख वन संरक्षक वन विभाग के साथ सहायक वन कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों की मांग के संबंध में दोनों पक्षों की संयुक्त बैठक बुलाई। सहायक वन कार्मिकों की एक माह के अतिरिक्त वेतन की मांग को जायज ठहराते हुए डा. रावत ने प्रस्ताव कैबिनेट में लाने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि फील्ड वन कर्मी यथा डिप्टी रेंजर, फारेस्टर आदि के कार्य की प्रकृति 24 घण्टे की है, जिसके मद्देनजर वन कर्मियों को एक माह का अतिरिक्त वेतन का लाभ पुलिस जवानों की भांति दिलाने से संबंधित प्रस्ताव पुनः कैबिनेट में लाया जाए।
डा. रावत ने फील्ड वन कार्मिकों की ड्यूटी को जोखिम भरी बताते हुए मानव क्षति, जान माल की क्षति पर निधि नियमावली 2012 से प्रभावित वन कर्मी/सम्बन्धित आश्रित को भी दिये जाने का प्राविधान का प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि वन कार्मिकों की कार्य की प्रकृति जोखिम भरी है, उन्हें जंगली जानवरों से नुकसान की संभावना बनी रहती है। उन्होंने जंगली जानवर से पीड़ित/संबंधित आश्रित को दी जाने वाली अनुग्रह राशि दोगुना करने संबंधित प्रस्ताव आगामी कैबिनेट में लाने के निर्देश सचिव वन को दिये, तथा पौष्टिक आहार की दरों की वृद्धि प्रस्ताव भी आगामी कैबिनेट में लाने के निर्देश दिए। डा. रावत ने सीधी भर्ती के एसीएफ के रिक्त पदों को पदोन्नति से भरने के निर्देश दिए।
उन्होंने कहा कि जिन फारेस्ट गार्डो ने अनवरत 26 वर्ष की सेवा पूर्ण कर ली हो और मौलिक रूप से नियुक्ति नायक/लीसा मोहर्रीर व वन आरक्षी पद से वन दरोगा के पद पर पदोन्नत हुए हों, को वन टाइम सैटलमैन्ट योजना के तहत डिप्टी रेंजर के निःसंवर्गीय पद पर पदोन्नति का लाभ दिया जाने हेतु प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए तथा निःसंवर्गीय पदों की स्वीकृति का प्रस्ताव कैबिनेट में लाने के निर्देश दिए। उन्होंने वन आरक्षी से रेंजर तक पदों के पुनर्गठन की आवश्यकता पर बल देते हुए पदों को बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए। इसके अलावा उन्होंने सीधी भर्ती के रिक्त एसीएफ के रिक्त पदों पर तदर्थ पदोन्नति का प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए। उन्होंने पदोन्नति में बाध्यता की अवधि के शिथिलीकरण हेतु संशोधन लाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस अवसर पर सचिव वन अरविंद सिंह हृयांकी, प्रमुख वन संरक्षक राजेंद्र कुमार एवं संयुक्त सचिव वन आरके तोमर आदि मौजूद थे।