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राजकोष से अफसरों के घर में चाकरी!

August 5, 2016
in पर्वतजन
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वित्तीय संकट से गुजर रहे उत्तराखंड के नौकरशाहों को कैंप कार्यालय के नाम पर जनता की कमाई से मिलेंगे नौकर-चाकर। सरकारी खजाने पर पड़ेगा सारा वित्तीय भार।

मामचन्द शाह

स्वयं को गाड-गदेरों का बेटा बताकर उत्तराखंडी जनता की सहानुभूति पाने की कोशिश करने वाले मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सचिवालय में तैनात नौकरशाहों को शिविर कार्यालय के नाम पर उनके घरों में चाकरी करने के लिए नौकरों की व्यवस्था कर दी है। अब बड़े बाबू सचिवालय स्थित कार्यालय में बैठेंगे और आवास में ‘कैंप सहायकÓ काम करते हुए दिखाई देंगे। इसका सारा वित्तीय भार सरकारी खजाने पर ही पड़ेगा।
हरीश रावत सरकार ने नौकरशाहों को सरकारी खजाने से दी जाने वाली सुविधाओं में और इजाफा कर दिया है। इसके तहत उनके आवास में शिविर कार्यालय के नाम पर ‘कैंप सहायकÓ देने का फैसला लिया गया है। अपर सचिव के कैंप कार्यालय में एक एवं सचिव, प्रमुख सचिव एवं अपर मुख्य सचिव के कार्यालय में दो-दो कैंप सहायक तैनात रहेंगे। सचिवालय प्रशासन विभाग के अपर सचिव अर्जुन सिंह द्वारा जारी कार्यालय ज्ञाप के अनुसार अधिकारीगण कार्यालय समय के पूर्व एवं बाद में तथा अवकाश के दिनों में शासकीय कार्य की ओर अधिक समय एवं मनोयोग से समर्पित हो सकेंगे, इसी उद्देश्य से कैंप कार्यालय में कार्मिकों की तैनाती का निर्णय लिया गया है। हालांकि यह अलग बात है कि कार्यालय समय पर ही अधिकांश कर्मी अपनी ड्यूटी पर उपस्थित नहीं पाए जाते हैं या फिर देरी से ऑफिस पहुंचना व निर्धारित समय से पूर्व ही अपनी कुर्सी छोड़ देते हैं।
कैंप सहायक नौकरशाहों की स्वेच्छा पर तैनात होंगे, जबकि उन्हें पीआरडी की दर पर सचिवालय प्रशासन विभाग के माध्यम से मानदेय का भुगतान किया जाएगा। इसमें मुख्य पहलू यह है कि आदेश में यह तक स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि कैंप सहायक की क्या शैक्षिक योग्यता होगी और उनका चयन कैसे किया जाएगा? इससे साफ हो जाता है कि कैंप कार्यालय तो सिर्फ एक बहाना है, असल उद्देश्य तो घर में चाकरी के लिए नौकर उपलब्ध कराना है। कैंप सहायक के कार्य समय का उल्लेख भी इस आदेश में नहीं किया गया है। वैसे भी नौकरशाहों के घरों में अधीनस्थ विभाग के कई कर्मचारी संबद्ध होते हैं। यह शासनादेश जारी कर सरकार ने अब सरकारी खर्च पर नौकरशाहों के घरों में चाकरी कराने को विधिक जामा पहनाकर अपना पक्ष मजबूत करने की कोशिश की है।
अभी बहुत ज्यादा दिन नहीं बीते, जब मुख्यमंत्री हरीश रावत वित्तीय वर्ष २०१६-१७ के लिए निर्धारित किए गए बजट को लेकर केंद्र सरकार से सवाल करते फिर रहे थे कि मोदी भाई, मेरा बजट कहां गया। मेरे बजट में केंद्र ने कटौती कर दी। उत्तराखंड में बजट की कमी हो गई। बजट बन रहा है उत्तराखंड के विकास में बाधक। इत्यादि-इत्यादि…। लेकिन यह क्या… एक ओर जहां आप बजट का रोना रो रहे हो, वहीं दूसरी ओर जनता के हिस्से के धन से नौकरशाहों को घर के लिए भी कैंप कार्यालय के नाम पर नौकर-चाकरों की व्यवस्था कर दी गई है। सीएम हरीश रावत की यह दोमुंही बात आम जनता तो छोडि़ए, विपक्षी भाजपा के राजनीतिक पंडित भी ठीक से नहीं समझ पा रहे हंै। हालांकि माना जा रहा है कि इस मामले में कांग्रेस सरकार से आम जनता इसका हिसाब २०१७ में चुकता कर सकती है।
सर्वविदित है कि पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में वित्तीय संकट को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती है, लेकिन इसके उलट यहां के नौकरशाहों की सुख-सुविधाओं में किसी भी सरकार ने कभी कोई कमी नहीं छोड़ी। कभी नौकरशाहों को लक्जरी गाडिय़ों की सैर करवाकर सुकून दिलवाने का काम किया गया तो कभी उन्हें घरों के लिए होमगार्ड के जवान उपलब्ध करवाकर किचन से लेकर बाथरूम तक में कपड़े धोने जैसे काम करवाकर नौकरशाहों का शाही अंदाज बनाए रखा।
प्रदेश में गैर योजना मद में खर्चों में कटौती की बात बार-बार कही जाती रही है। सीमित वित्तीय संसाधनों के चलते नौकरशाहों व मंत्रीगणों से फिजूलखर्ची कम करने की अपेक्षा भी की जाती रही है। चालू वित्तीय वर्ष के लिए बजट को लेकर असमंजस की स्थिति विधानसभा के विशेष सत्र में विनियोग विधेयक के पास होने के बाद २१ जुलाई को स्पष्ट हो पाई है। बावजूद इसके मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जन अपेक्षाओं पर खरा उतरने की बजाय आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए प्रदेश के नौकरशाहों की सुख-सुविधाओं में और इजाफा कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भी नौकरशाहों को घरों की चाकरी करने के लिए औपचारिक रूप से कर्मचारी उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। जानकारी के अनुसार नौकरशाहों के घर के लिए नौकर-चाकरों की व्यवस्था करने के लिए तमिलनाडु राज्य का उदाहरण दिया गया।
सचिवालय में तैनात एक अफसर कहते हैं कि यह अच्छा है कि अधीनस्थ विभाग के कर्मचारियों को अनौपचारिक रूप से घर में संबद्ध करने के बजाय सरकार ने औपचारिक रूप से तैनाती की व्यवस्था कर दी है। इससे कैंप अर्थात घर में कर्मचारी विधिवत रूप से तैनात हो सकेंगे और उनकी संख्या भी सीमित होगी। सरकार अनधिकृत तरीके से कर्मचारियों को अधिकारियों के घरों में तैनाती की प्रवृत्ति को देखते हुए कानूनी रूप देकर व्यवस्था बना रही है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हालांकि गरीब पहाड़ी प्रदेश के नजरिए से प्रदेश पर दृष्टि डाली जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि जनता की कमाई से नौकरशाहों के कार्यालय से लेकर घर-परिवार तक की सारी सुख-सुविधाओं का इंतजाम करना उत्तराखंड को विकास की दौड़ में काफी पीछे धकेलता जा रहा है।

कैंप सहायकों की नियुक्ति के लिए उम्र सीमा भी तय नहीं है और सेवा शर्तें भी नहीं। भविष्य में ये लोग नियमितीकरण के लिए दावा करेंगे तो उससे निपटने के लिए भी सरकार के पास कोई नीति नहीं है।


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