कार्यकाल पूरा कर चुके नौकरशाहों को रिटायर होते ही नए-नए आयोगों में नई-नई कुर्सियां थमा दी जा रही हैं। युवा अफसरों को जिम्मेदारी देने के बजाय सरकार को बूढ़े नौकरशाहों के पुनर्वास की चिंता
जयसिंह रावत
उत्तराखंड में आपदा पीडि़तों या सीमाओं पर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने के लिये तत्पर रहने वाले सैनिकों का पुनर्वास हो या न हो मगर जीवनभर हाकिमों की तरह प्रजा पर हुक्म चलाने वाले जनसेवकों का रिटायरमेंट से पहले ही पुनर्वास अवश्य हो जाता है। लोकसेवा और सूचना का अधिकार जैसे महत्वपूर्ण आयोगों में जनता पर हुक्म चलाने वाले ये जनसेवक अपनी कुर्सी पहले ही पक्की कर देते हैं।
उत्तराखण्ड के वर्तमान मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह अभी रिटायर भी नहीं हुए थे कि उनके लिये राज्य सरकार ने पहले ही मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी परोस दी। उन्हें दिसम्बर में रिटायर होना था और उनकी मुख्य सूचना आयुक्त पद पर नियुक्ति पर 31 दिसम्बर को ही राजभवन की मुहर लग गयी। इसी प्रकार अक्टूबर सन् 2005 में रिटायर होने से कुछ दिन पहले तत्कालीन मुख्य सचिव रघुनन्दन सिंह टोलिया ने नये-नये खुले राज्य सूचना आयोग में अपने लिये मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी सुरक्षित करा ली थी। उत्तराखण्ड और खासकर पहाड़ के इस स्वयंभू हितैषी नौकरशाह ने आइएएस बिरादरी के पुनर्वास की परम्परा की जो बीमारी शुरू की वह न केवल अब तक जारी है अपितु यह संक्रामक बीमारी अन्य सेवाओं में भी शुरू हो गयी है। उसके बाद तो मुख्य सूचना आयुक्त का पद रिटायर्ड चीफ सेक्रेटरी के लिए सुरक्षित होने के साथ ही राज्य लोक सेवा आयोग जैसे अन्य आयोगों और प्रमुख संस्थाओं का मुखिया पद रिटायर्ड आइएएस अधिकारियों के लिए आरक्षित हो गये। सूचना आयोग में अब रिटायर्ड टोलिया के बाद नृप सिंह नपलच्याल 2010 में मुख्य सूचना अयुक्त बने और उसके बाद सुभाष कुमार को राज्य विद्युत नियामक आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया तो एन. रविशंकर को अगला मुख्य सूचना आयुक्त बनाने का प्रयास किया गया। आपदा घोटाले में तत्कालीन राजनीतिक शासकों को क्लीन चिट देने के कारण नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट के कड़े ऐतराज के कारण रविशंकर की नियुक्ति तो नहीं हो पायी, किंतु इस पद पर मुख्य सचिव रहे शत्रुघ्न सिंह को नियुक्त कर दिया गया। शत्रुघ्न सिंह को दिसम्बर में रिटायर होना था, मगर उन्होंने भी पांच साल की संवैधानिक नौकरी के लिए अपने पूर्ववर्तियों की तरह वीआरएस ले लिया।
राज्य में अजय विक्रम सिंह और मधुकर गुप्ता के बाद लगभग सभी मुख्य सचिवों को राज्य में कहीं न कहीं पुनर्नियुक्त किया जाता रहा है। मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी खाली न होने पर एस.के. दास को राज्य लोक सेवा अयोग का अध्यक्ष बना दिया गया, जबकि इससे पहले इस पद पर राज्य के निवासी एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल जी.एस. नेगी नियुक्त किये गये थे। लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष पद ही नहीं, बल्कि सदस्य पद भी उसके बाद रिटायर्ड आइएएस और पीसीएस के लिए अघोषित आरक्षित हो गये।
मुख्य सचिव पद के लिए सूचना तथा लोकसेवा अयोग में पद खाली न होने पर अगले मुख्य सचिव सुभाष कुमार को राज्य विद्युत नियामक आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया। सुभाष कुमार के बाद एन रविशंकर रिटायर हुये तो राज्य का मुख्य सूचना आयुक्त बनने में नेता प्रतिपक्ष के रोड़े के कारण उनके लिये राज्य जल आयोग बना दिया गया। राज्य लोक सेवा आयोग के अलावा रिटायर नौकरशाहों के पुनर्वास के लिये अधीनस्थ सेवा आयोग भी बनाया गया। उसके अध्यक्ष पद अतिरिक्त मुख्य सचिव रहे एस. राजू को अध्यक्ष बना दिया गया। उनसे पहले उस पद पर भारतीय वन सेवा के डा. रघुवीर सिंह रावत को अध्यक्ष बनाया गया था। जब सुभाष कुमार गये तो उनकी जगह जोड़-तोड़ के बाद बहुचर्चित आइएएस रोकश शर्मा को बिठाया गया। रोकश शर्मा के 30 अक्टूबर 2015 को रिटायर होने से पहले ही उन्हें सेवा विस्तार देने का निर्णय राज्य सरकार ने ले लिया, लेकिन केन्द्र सरकार तक शर्मा की ख्याति पहुंची हुयी थी इसलिये राज्य सरकार द्वारा पूरी ताकत झौंक देने के बाद भी मोदी सरकार ने क्लीन चिट नहीं दी। मजबूरन राज्य सरकार को इस ‘हुनरमंदÓ अधिकारी की असाधरण सेवाएं लेने के लिये उन्हें 15 नवम्बर 2015 को मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव पद पर बिठाना पड़ा।
इस अफसर के लिये राज्य सरकार को असाधारण ढंग से व्यवस्था करनी पड़ी। बाद में उन्हें राजस्व परिषद का अध्यक्ष भी बना दिया गया। जबकि यह पद आइएएस संवर्ग के लिये नहीं था। यह बात दीगर है कि वर्तमान राजनीतिक शासक अब राकेश शर्मा पर की गयी मेहरबानियों के लिये माथा पीट रहे हैं। सुना गया है कि वह अब कांग्रेस के बजाय भाजपा से किच्छा सीट पर टिकट का जुगाड़ कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस की सरकार ने उन्हें मुख्यमंत्री के बाद दूसरा सत्ता का केन्द्र बना दिया था।
मुख्य सचिव ही नहीं बल्कि राज्य सरकार अन्य आइएएस अधिकारियों को भी पुनर्वासित करने के लिये उन्हें सेवा का विस्तार या अन्य जगहों पर एडजस्ट करती रही है। सन् 2012 में राज्य सरकार ने डीके कोटिया को दो बार सेवा का विस्तार दिया, जबकि वह 30 सितम्बर 2012 को रिटायर हो गये थे। उन्हें मार्च 2013 तक प्रमुख सचिव पद पर सेवा का अवसर मिला।
आइएएस सुरेन्द्र सिंह रावत जब 30 जून 2013 को रिटायर हुए तो उन्हें जुलाई 2013 तक सेवा विस्तार दे दिया गया और बाद में उन्हें पांच साल के लिए राज्य सूचना आयुक्त बना दिया गया। सुवद्र्धन 30 जून 2013 को रिटायर हो रहे थे लेकिन उन्हें सितम्बर तक के लिये सेवा विस्तार देने के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त का संवैधानिक पद दे दिया गया। आइएएस रमेश चन्द्र पाठक भी 30 जून 2013 को सेवा निवृत्त हो रहे थे और उन्हें भी सितम्बर 2013 तक सेवा विस्तार दे दिया गया। अतिरिक्त मुख्य सचिव पद पर रहे एस.के. मट्टू 31 सितम्बर को रिटायर हो गये थे। उन्हें 1 अगस्त 2013 से अगले छह माह तक के लिए एक्सटेंशन दे दिया गया।
सीएमएस बिष्ट 30 सितम्बर 2014 को रिटायर हो रहे थे और उन्हें दिसंबर 2014 तक सेवा विस्तार देने के बाद लोक सेवा आयोग का सदस्य भी बना दिया गया। एस. राजू 31 मार्च 2016 को रिटायर हो गये। उन्हें भी मुख्य सूचना आयुक्त के पद का लालच मिला था लेकिन परिस्थितियां अनुकूल न होने के कारण उन्हें अधीनस्थ सेवा आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया। पीएस जंगपांगी 13 जनवरी 2016 को रिटायर हो गये थे। उन्हें 2 वर्ष के लिये राजस्व परिषद का न्यायिक सदस्य बना दिया गया।
यही नहीं सचिवालय से अपर सचिव बनकर रिटायर हुए किशन नाथ, समाज कल्याण अपर सचिव यूडी चौबे, खाद्य में अपर सचिव मंजूल कुमार जोशी को सहकारी न्यायाधिकरण में महत्वपूर्ण कुर्सियां सौंपी गई। सचिवालय से इतर भी शिक्षा विभाग के संतोष कुमार शील को समाज कल्याण विभाग में ओएसडी बनाया गया है। सवाल यह है कि राज्य में युवा अफसरों की चुस्ती-फुर्ती को जंग लगाकर बूढ़े नौकरशाहों पर दांव लगाकर यह राज्य कौन सी बाजी जीतने की उम्मीद रखता है।
आपदा घोटाले में तत्कालीन राजनीतिक शासकों को क्लीन चिट देने के कारण नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट के कड़े ऐतराज के कारण रविशंकर की नियुक्ति तो नहीं हो पायी, किंतु इस पद पर मुख्य सचिव रहे शत्रुघ्न सिंह को नियुक्त कर दिया गया। शत्रुघ्न सिंह को दिसम्बर में रिटायर होना था, मगर उन्होंने भी पांच साल की संवैधानिक नौकरी के लिए अपने पूर्ववर्तियों की तरह वीआरएस ले लिया।
मुख्य सचिव ही नहीं बल्कि राज्य सरकार अन्य आइएएस अधिकारियों को भी पुनर्वासित करने के लिये उन्हें सेवा का विस्तार या अन्य जगहों पर एडजस्ट करती रही है। सन् 2012 में राज्य सरकार ने डीके कोटिया को दो बार सेवा का विस्तार दिया, जबकि वह 30 सितम्बर 2012 को रिटायर हो गये थे। उन्हें मार्च 2013 तक प्रमुख सचिव पद पर सेवा का अवसर मिला।
उत्तराखण्ड के वर्तमान मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह अभी रिटायर भी नहीं हुये और उनके लिये राज्य सरकार ने पहले ही मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी परोस दी।