विभिन्न विकास योजनाओं की राह में वनभूमि हस्तांतरण की अड़चन से उत्तराखंड के पर्वतीय जिले सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं।
प्रेम पंचोली
विभिन्न विकास योजनाओं की राह में वनभूमि हस्तांतरण की अड़चन से उत्तराखंड के पर्वतीय जिले सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं। वर्तमान में ऐसे करीब 482 प्रकरण विभिन्न स्तरों पर लंबित पड़े हैं। इनमें सर्वाधिक 65 प्रकरण अकेले अल्मोड़ा जनपद के शामिल हैं, जबकि टिहरी, देहरादून, पौड़ी, बागेश्वर व चमोली जैसे पर्वतीय जनपदों में भी कई विकास योजनाएं वनभूमि हस्तांतरण के फेर में लटकी हुई हैं। केंद्र सरकार के नए फैसले से अब इन योजनाओं की राह में सबसे बड़ी अड़चन दूर होने की उम्मीद की जा रही है।
उत्तराखंड का 71 फीसद वन भू-भाग देश व दुनिया के लिए अनमोल प्राणवायु पैदा करता है, मगर इसकी एवज में इस हिमालयी राज्य को अब तक धेला भर भी नसीब नहीं हुआ। एक अनुमान के अनुसार उत्तराखंड के जंगल करीब 107 बिलियन रुपये की पर्यावरणीय सेवाएं देते हैं। केंद्र ने उत्तराखंड के लिए 1000 करोड़ का जो ग्रीन बोनस देने की बात कही थी, वह अब तक राज्य को नहीं मिल सका। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड के अहम योगदान का दूसरा पहलू यह है कि पहाड़ी राज्य में सख्त वन कानून के कारण विकास प्रभावित हो रहा है।
विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने की राह में वनभूमि हस्तांतरण के विभिन्न स्तरों पर लंबित 482 मामले इसकी तस्दीक करते हैं। खास बात यह है कि विकास की राह में आने वाली इस अड़चन से सबसे अधिक पर्वतीय क्षेत्र ही प्रभावित हो रहे हैं, जहां सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का सबसे ज्यादा अभाव है।
फॉरेस्ट क्लियरेंस के इंतजार में जहां-तहां विकास योजनाएं रुके हुए हैं। इनमें से करीब 274 मामलों पर वन भूमि हस्तांतरण की सैद्धांतिक स्वीकृति के लिए कसरत चल रही है। इनमें से 234 प्रकरण के प्रस्ताव राज्य सरकार के स्तर पर लंबित हैं और 40 प्रकरणों के प्रस्ताव केंद्र को भेजे जा चुके हैं। जिन 191 प्रकरणों में केंद्र से सैद्धांतिक स्वीकृति पूर्व में ही मिल चुकी है, उनमें से 145 मामलों में अंतिम स्वीकृति के प्रस्ताव अभी केंद्र को नहीं भेजे जा सके, जबकि 46 प्रस्तावों पर केंद्र द्वारा निर्णय लिया जाना है। मोदी सरकार ने पांच हेक्टेयर तक की वनभूमि हस्तांतरण का अधिकार राज्य सरकार को देने का जो निर्णय लिया, उससे इस अड़चन के दूर होने की उम्मीद की जा रही है।
क्या है समस्या
उत्तरकाशी के दूरस्थ क्षेत्र सर-बडियार में आठ ऐसे गांव हैं, जहां आज तक सड़क, बिजली वन भूमि हस्तांतरण के कारण नहीं पहुंच पाई है। लगभग 2000 वाले आबादी क्षेत्र में आज भी लोग वहां पर आदिम युग में जी रहे हैं। गांव में मोबाइल पहुंच रखे हैं, परंतु इन मोबाइलों की बैट्री कैसे चार्ज करें, ऐसी चिंता आजकल सर-बडियार वाले क्षेत्र के सभी लोगों को सता रही है। इस तरह के मामले राज्य में एक नहीं हजारों हैं, मगर राजनीतिक प्रतिद्वंदता इतनी खतरनाक हो गई कि जनप्रतिनिधि विकास की बात छोड़कर अपनी-अपनी गोटी फिट करने की फिराक में बैठे रहते हैं।
वन भूमि हस्तांतरण के लंबित मामले
अल्मोड़ा 65, बागेश्वर 48, चंपावत 20,
चमोली 44, देहरादून 53, हरिद्वार 06,
नैनीताल 41, पौड़ी 50, पिथौरागढ़ 33,
रुद्रप्रयाग 18, टिहरी 58, उत्तरकाशी 34,
ऊधमसिंहनगर 12
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड के अहम योगदान का दूसरा पहलू यह है कि पहाड़ी राज्य में सख्त वन कानून के कारण विकास प्रभावित हो रहा है।
(लेखक एनएफआई के फैलो व मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)