पूर्व मंत्री स्व. सुरेंद्र राकेश के निधन के बाद विरासत उनकी पत्नी को क्या मिली कि भाई सुबोध राकेश भाजपा में शामिल हो गए और देवर-भाभी में महत्वाकांक्षाओं की लड़ाई सड़क पर आ गई।
कुमार दुष्यंत/हरिद्वार
कहावत है कि जहां चार बर्तन होंगे, खड़केंगे जरूर, लेकिन जब यह बर्तन लुढ़कने लगे, तब मामला जरूर गंभीर हो जाता है। भगवानपुर में पूर्व समाज कल्याण एवं परिवहन मंत्री स्व. सुरेंद्र राकेश की राजनीतिक विरासत को लेकर यही सब चल रहा है।
स्व. सुरेंद्र राकेश की विरासत को लेकर देवर-भाभी में चल रही लड़ाई अब सड़क पर आ गई है। देवर सुबोध राकेश ने न केवल भाभी ममता राकेश की पार्टी कांग्रेस को त्याग कर धुरविरोधी भाजपा का वरण कर लिया है, बल्कि आगामी इलेक्शन में भगवानपुर में कांग्रेस की ईंट से ईंट बजाने का भी ऐलान कर दिया है। देवर-भाभी की इस लड़ाई से भगवानपुर सीट पर सारे राजनीतिक समीकरण भी गड़बड़ा गए हैं।
ममता राकेश व सुबोध राकेश में यूं तो तभी अलगाव हो गया था, जब पिछले वर्ष सुरेंद्र राकेश की मृत्यु के पश्चात हो रहे उपचुनाव में सुबोध ने स्वयं को स्व. सुरेंद्र राकेश के उत्तराधिकारी के तौर पर पेश करते हुए कांग्रेस से टिकट की मांग की थी। ममता, राकेश परिवार से अलग अपनी पैरवी करती रही। बाद में कांग्रेस ने सहानुभूति का लाभ उनके पक्ष में देखते हुए उन पर ही दांव लगाया, लेकिन चुनाव जीतने के बाद भी ममता द्वारा सुबोध को कोई खास अहमियत न दिये जाने से देवर भाभी के बीच दूरियां बढ़ती रही। पिछले दिनों ब्लाक प्रमुख व सहकारी समिति अध्यक्ष के चुनाव में तो दोनों ही एक-दूसरे के सामने आ खड़े हुए थे। आगामी चुनाव के लिए सुबोध द्वारा लगातार अपने लिए टिकट की मांग की जा रही थी। जिससे देवर-भाभी की रार चरम पर पहुंच गई। आखिर कांग्रेस द्वारा सुबोध की मांग पर कोई ध्यान न दिये जाने के बाद उन्होंने अपने समर्थकों के साथ भाजपा ज्वाइन कर ली।
स्व. सुरेंद्र राकेश के पिता कलीराम राकेश लंबे समय तक भगवानपुर की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। सुरेंद्र राकेश दो बार यहां से जीतकर विधानसभा पहुंचे। समाज कल्याण एवं परिवहन मंत्री के रूप में उन्होंने क्षेत्र में अनेक विकास कार्य कराए। जिसकी बदौलत स्व. सुरेंद्र राकेश की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में ममता राकेश ने भारी बहुमत से एकतरफा जीत हासिल की। राकेश परिवार की भगवानपुर में लंबी राजनीतिक सक्रियता के कारण यहां उनका अपना वोट बैंक भी है। देवर-भाभी में इसी विरासत को थामने की लड़ाई है। सुबोध राकेश के साथ इस लड़ाई में भाभी ममता राकेश को छोड़कर पूरा परिवार साथ है। ममता राकेश के साथ उनकी पार्टी है।
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने देवर-भाभी के अलगाव के बाद भगवानपुर में ममता के पक्ष में पदयात्रा निकाल कर इसका साफ संदेश भी दे दिया है, लेकिन परिवार की इस लड़ाई में विरासत में बिखराव तय है। स्व. सुरेंद्र राकेश की अस्वस्थता के दौरान लंबे समय तक उनका राजकाज देखते रहे सुबोध आने वाले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा प्रत्याशी के रूप में भाभी के सामने चुनाव मैदान में उतरेंगे तो अपनी उसी राजनीतिक विरासत पर दावा करेंगे। जिसके बूते ममता राकेश विधानसभा पहुंची। क्षेत्र में दलित-पिछड़े मतदाता बहुसंख्यक हैं। इनके समर्थन से ही भगवानपुर में राकेश परिवार की तूती बोलती रही है। अब इन मतों के देवर-भाभी में बंटवारे के बाद इस सीट पर बरसों से स्थापित राजनीतिक समीकरणों का बदलना तय है।
राकेश परिवार की भगवानपुर में लंबी राजनीतिक सक्रियता के कारण यहां उनका अपना वोट बैंक भी है। देवर-भाभी में इसी विरासत को थामने की लड़ाई है।
पिता की विरासत पर पहले पुत्र का हक: ममता राकेश
पिता की विरासत पर पहला हक पुत्र का होता है। मंत्री का पुत्र अभी छोटा है। जब तक वह बड़ा नहीं हो जाता। तब तक इस विरासत की रक्षा मैं करूंगी। भाजपा का काम तोड़-फोड़ करने का ही है। पहले सरकार में करी। अब परिवार में करा रही है।
जनता का प्यार-आशीर्वाद हमारे साथ: सुबोध राकेश
भगवानपुर की जनता का प्यार एवं आशीर्वाद सदैव हमारे साथ रहा है। मैंने यहां बहुत से कार्य कराए हैं। इसलिए जनता का आशीर्वाद मुझे आगे भी मिलेगा। कांग्रेस झूठ की राजनीति करती है। पहले किए वादे पूरे नहीं किए। अब चुनाव देखकर नये वाए किए जा रहे हैं।