उत्तराखंड में 11 विधायकों पर सिमटी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह अपनी एरेस्टोक्रेट छवि से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद प्रीतम सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि उन्होंने सरकार से यमुना कालोनी में मंत्री स्तरीय शानदार कोठी ले ली है। प्रीतम सिंह के नेतृत्व में हुए निकाय चुनाव में कांग्रेस ने न सिर्फ हार का रिकार्ड बनाया, बल्कि प्रीतम सिंह द्वारा किए गए टिकट वितरण पर भी सवाल खड़े हुए हैं।
जिस कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह से प्रदेश की जनता यह अपेक्षा कर रही थी कि वे इस दशा में कांग्रेस को उभारने का काम करेंगे, उन प्रीतम सिंह की स्थिति आज यह है कि मई 2017 में प्रदेश अध्यक्ष बनने के बावजूद आज तक प्रीतम सिंह प्रदेश कार्यकारिणी का गठन तक नहीं कर पाए हैं। अर्थात प्रदेश कार्यकारिणी में जो महामंत्री, महासचिव, उपाध्यक्ष, सचिव, प्रवक्ता व तमाम सदस्य हैं, वे सभी पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय द्वारा तय करवाए गए हैं।
डेढ़ साल से अधिक के कार्यकाल के बाद जो प्रदेश अध्यक्ष इतना कंफ्यूज्ड हो कि वो प्रदेश स्तरीय कार्यकारिणी बनाने की स्थिति में न हो, ऐसे में कांग्रेस के भीतर अब सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं कि क्या सिर्फ किशोर उपाध्याय को हटाने मात्र के लिए प्रीतम सिंह लाए गए थे?
16 दिसंबर को देहरादून में 2018 के विधानसभा चुनाव में चुनाव लडऩे वाले सभी 70 जीते-हारे प्रत्याशियों के साथ एक बैठक तय की गई है। जिसमें इस मुद्दे पर माहौल गर्माने की पूरी उम्मीद है कि आखिरकार 2019 की तैयारी सर पर है, किंतु कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष युद्ध का बिगुल फूंकने में इतनी देर क्यों कर रहे हैं। कांग्रेस के संगठन में दो प्रकार से पद भरने की परंपरा है। पहली आल इंडिया कांग्रेस कमेटी से अपू्रव्ड कराई गई और दूसरी प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा तय किए गए पदाधिकारियों वाले पद। प्रीतम सिंह अभी भी स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि वे 2019 के चुनाव से पहले कार्यकारिणी का गठन करेंगे या लोकसभा चुनाव के बाद, कर भी पाएंगे या नहीं।
कुल मिलाकर सबकी निगाहें विपक्ष में बैठी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह पर टिकट गई हैं कि पांच राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को मिली कड़ी हार को भुनाने के लिए वे आखिरकार कब अपने को चकराता विधानसभा से बाहर निकालेंगे और कांग्रेस में जान फूंकने का काम करेंगे!
निकाय ने बढ़ाई नाराजगी
निकाय चुनाव के दौरान अपनी मर्जी से टिकट बांटने के बाद कांग्रेस प्रत्याशियों की हार का ठीकरा कांग्रेसियों पर थोपने के बाद प्रीतम सिंह ने कांग्रेस के बड़े नेता हरीश रावत के कई समर्थकों को पार्टी से निकाल बाहर किया है। हरीश रावत जैसे खांटी आदमी ने ऐन वक्त पर त्रिवेंद्र रावत द्वारा इंदिरा हृदयेश पर किए गए हमले का बचाव करते हुए कहा है कि त्रिवेंद्र रावत को इंदिरा हृदयेश से माफी मांगनी चाहिए। हरीश रावत कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव होने के बाद और अधिक ताकतवर हो गए हैं। ऐसे में प्रीतम सिंह जैसे नेताओं द्वारा किए गए हमले का इस रूप में जवाब देना उनके लिए बायें हाथ का खेल जैसा है। ११ में से ८ विधायक सरेआम प्रीतम सिंह के इस फैसले के खिलाफ हैं, जो दर्शाता है कि प्रीतम सिंह को अभी और अधिक परिपक्व होने की आवश्यकता है।