उत्तराखंड सचिवालय में आजकल पुरानी और निष्प्रयोज्य फाइलों को नष्ट किया जा रहा है। पिछले एक सप्ताह में ही लाखों फाइलें विभिन्न अनुभागों में नष्ट की जा चुकी हैं। जैसे-जैसे फाइलें फाड़ी जा रही हैं, उन सबको कबाड़ी को बेच दिया जा रहा है।
नष्ट की जाने वाली फाइलों के बारे में यूं तो यह व्यवस्था बनाई गई है कि हर नष्ट की जाने वाली फाइल का विषय तथा उस पर हुई कार्यवाही को रजिस्टर में नोट किया जाएगा। किंतु पर्वतजन संवाददाता के हाथ आई एक ऐसी ही फाइल के ऊपर लिखा था कि यह नष्ट तो की जानी है किंतु चढ़ाई नहीं जाएगी। अब इस पर संदेह खड़ा होता है कि जब नष्ट की जाने वाली फाइल को रजिस्टर में चढ़ाना सुनिश्चित किया गया है तो फिर इस फाइल के ऊपर ऐसा क्यों लिखा हुआ है कि यह नष्ट की जाएगी लेकिन चढ़ाई नहीं जाएगी!
पर्वतजन संवाददाता ने अपने स्तर पर तहकीकात की तो नष्ट की जाने वाली फाइलों में कई ऐसी फाइलें थी, जिन पर अभी तक कार्यवाही में लंबित है। तथा कई जांच की फाइलें ऐसी हैं जो नष्ट की जा रही हैं, किंतु उन फाइलों पर अभी तक जिला स्तर से मांगी गई आख्या तक अप्राप्त है। यदि यह महत्वपूर्ण फाइलें नष्ट हो गई तो फिर उन जांचों का तो भगवान ही मालिक है!
जाहिर है कि दाल में कुछ काला जरूर है यह फ़ाइलें पुरानी फाइलें हैं, जिनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश के समय की हैं। इन फाइलों में सैकड़ों कर्मचारी अधिकारियों के खिलाफ जांच घोटालों और विभिन्न तरह की अनियमितताओं की कार्यवाहियां दफन हैं। इन फाइलों को समुचित सावधानी बरते बिना फाड़ा जा रहा है।
यूं तो विभिन्न अनुभागों में नष्ट हो रही इन फाइलों की जिम्मेदारी अनुभाग अधिकारी की तय की गई है, किंतु नष्ट होने वाली फाइलों का चिन्हीकरण इस तरह से किया जा रहा है कि अगर कभी नष्ट हुई किसी विशेष फाइल को चिन्हित करना हो तो वह चिन्हित नहीं हो सकती। इसका पता नहीं चल पाएगा कि वह हाल ही में नष्ट की गई है अथवा उससे पहले वर्ष 2005 में की गई इसी तरह की वीडआउट कार्यवाही के दौरान नष्ट हुई है। ऐसे में वह फाइल किस अनुभाग अधिकारी के कार्यकाल में नष्ट की गई है, इसका पता भी नहीं चल पाएगा।
किस अनुभाग में कौन-कौन सी फाइलें हैं और कौन सी फाइल किस अनुभाग अधिकारी के कार्यकाल में आई हैं, इसका भी कोई निश्चित रखरखाव अधिकांश अनुभागों में नहीं है।
उत्तर प्रदेश के समय में निलंबित अथवा बर्खास्त हुए अफसर फिर कभी बहाल हुए अथवा नहीं इसकी भी कोई जानकारी सचिवालय के कई अनुभागों में नहीं है। किंतु उत्तराखंड बनने के बाद वह अफसर शान से निदेशक के पद पर तक पहुंच गए और मजे से रिटायर भी हो गए। यदि उन अफ़सरों के निलंबन और बहाली के विषय में जानकारी ली जाए तो अनुभागों में उनसे संबंधित फ़ाइलें नदारद हैं। अनुभाग अधिकारी एक दूसरे के कार्यकाल पर बात टाल देते हैं, अथवा फाइलों के कहीं अभिलेखागार आदि में पड़े होने का तर्क देते हुए दामन छुड़ा लेते हैं।
अनुभाग अधिकारी यदि फाइलों की अधिकता के कारण अभिलेखागार के अधिकारियों को फायलें रखवाने के लिए कहते हैं तो अभिलेखागार के अधिकारी जगह की कमी होने के कारण फाइलें लेने से मना कर देते हैं।
जाहिर है कि अभिलेखागार के पास जगह की कमी को कारण बताते हुए फाइलें न लेना कोई तर्कसंगत बहाना नहीं है। यदि जगह की कमी है तो उसे सचिवालय प्रशासन को और अधिक जगह उपलब्ध कराने के लिए कहना चाहिए। सचिवालय की नई बनी बिल्डिंग विश्वकर्मा भवन में जगह की कोई कमी नहीं है। विश्वकर्मा बिल्डिंग की पांचवी मंजिल अथवा ग्राउंड फ्लोर पर काफी जगह उपलब्ध है। विश्वकर्मा भवन का अंडर ग्राउंड स्पेस भी अभिलेखागार के रूप में विकसित किया जा सकता है। किंतु सचिवालय प्रशासन इस पर ध्यान देने को राजी नहीं है। ऐसे में जगह की कमी का हवाला देते हुए विभिन्न अनुभागों को फाइलें नष्ट करनी पड़ रही हैं। ऐसे में कितनी महत्वपूर्ण फाइलें नष्ट हो जाएंगी, इसका कोई अंदाजा नहीं है और न ही कोई इसके भविष्य मे होने वाले दुष्परिणामों के प्रति गंभीर है।