चहेतों की सिफारिश के बल पर बढ़ रही बैकडोर भर्तियों के कारण सफेद हाथी बनकर रह गए हैं प्रदेश के सेवायोजन कार्यालय
मामचन्द शाह
इम्प्लॉयमेंट ऑफिस का नाम सुनते ही बेरोजगार युवाओं के दिलों में रोजगार मिलने की उम्मीदें हिलोरें मारने लगती हंै, लेकिन अब उन हजारों युवाओं का धैर्य जवाब देने लगा है, जो वर्षों से हर तीन वर्ष बाद अपना नाम प्रदेश के विभिन्न जिलों के सेवायोजन कार्यालयों में रेन्यू करवाते हैं, लेकिन उनका नंबर नहीं आ पाता।
कहने में यह अटपटा जरूर है, लेकिन यह बात सौ टका सही है कि उत्तराखंड के विभिन्न जिलों के सेवायोजन कार्यालय सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। आरटीआई कार्यकर्ता प्रमोद कुमार डोभाल ने जब सूचना का अधिकार के तहत विभिन्न जिलों में स्थित सेवायोजन कार्यालयों से संबंधित जानकारी मांगी तो उसमें बड़े चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
उत्तराखंड में जब-जब सरकार का अंतिम वर्ष रहा या फिर विधानसभा चुनाव नजदीक रहे, बेरोजगारों पर भी राजनीति होती रही। वर्ष २००५ के अंत में चुनावी माहौल शुरू हो गया था। राजनीति के पंडित कहे जाने वाले एनडी तिवारी बेरोजगारों की ताकत को भली-भांति जानते थे। यही कारण था कि तब अकेले देहरादून जनपद में ही सेवायोजन विभाग में पंजीकृत ३१६४ बेरोजगारों को रोजगार मिल गया था, लेकिन २००५ के बाद के वर्षों में सेवायोजन कार्यालय से इतने युवाओं को रोजगार फिर कभी नहीं मिल पाया।
वर्ष २०१० में प्रदेश में निशंक की सरकार थी तो उन्होंने भी राजनीतिक फायदे के लिए उस दौरान बंपर भर्तियां निकाली। हजारों युवाओं ने आवेदन फॉर्म भरे, लेकिन धन के अभाव में महीनों तक परीक्षा नहीं हो पाई।
यही नहीं न्यायालय ने यह बाध्यता भी की कि उत्तराखंड के मूल निवासियों को ही यहां नौकरी मिलेगी, लेकिन उसके लिए उन्हें सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकरण कराना आवश्यक है। ऐसे में बाहरी राज्यों के अभ्यर्थी भर्ती प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सकते थे। परिणामस्वरूप सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकरण कराने वाले अभ्यर्थियों में भारी उछाल तो आया, लेकिन उसके सापेक्ष इन कार्यालयों से मुट्ठीभर युवाओं को ही रोजगार मिल पाया। इसके पीछे कद्दावर नेताओं ने बैकडोर भर्ती का रास्ता निकाला और अपने चहेतों को आउटसोर्स एजेंसियों से विभिन्न विभागों व संस्थानों में रोजगार दिलाया।
पिछले एक-डेढ़ वर्ष में ही विधानसभा में बैकडोर से दर्जनों भाई-भतीजे व चहेते युवाओं को नौकरी दे दी गई। बताया जाता है कि इन युवाओं पर विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल का आशीर्वाद था। यही कारण था कि कुछ अधिकारी विरोध करने की इच्छा रखने के बावजूद भी अपनी जुबां नहीं खोल पा रहे हैं।
सेवायोजन कार्यालयों की हकीकत जानने को उदाहरण के लिए केवल अस्थायी राजधानी वाले देहरादून जनपद पर ही नजर डाली जाए तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। सेवायोजन कार्यालय देहरादून में वर्ष २०१५ में २३,०७४ बेरोजगारों ने पंजीकरण करवाया। जिनमें से मात्र ५ बेरोजगारों को ही रोजगार मिल पाया। इस तरह ०.०२ प्रतिशत युवाओं को ही रोजगार मिला। इसी तरह वर्ष २०१२ में देहरादून सेवायोजन कार्यालय में कुल २०८०५ युवाओं ने रजिस्ट्रेशन करवाया, जिनमें से मात्र ११ (०.०५ प्रतिशत युवाओं) को रोजगार मिल पाया। वर्ष २०१३ में १९५९७ युवाओं ने पंजीकरण करवाया तो २० युवाओं (०.१० प्रतिशत) को नौकरी मिली और वर्ष २०१४ में ३६६१४ बेरोजगारों ने पंजीकरण कराया, जिनमें से महज २२ युवाओं यानि कि ०.०६ प्रतिशत अभ्यर्थियों को ही रोजगार मिला। ऐसे में युवाओं का धैर्य कब तक बना रहेगा, कहा नहीं जा सकता।
इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बेरोजगारों की उम्मीदों पर सेवायोजन कार्यालय कितना खरा उतर रहे हैं। इस तरह वर्ष २००३ से लेकर वर्ष २०१५ तक १३ वर्षों में देहरादून सेवायोजन कार्यालय में कुल २,५१,४१५ पंजीकृत बेरोजगारों में से मात्र ५६२० (२.२३ प्रतिशत) युवाओं को ही रोजगार मिल पाया। ऐसे में सेवायोजन कार्यालयों के प्रति युवाओं का विश्वास लाजिमी होने के साथ ही इन कार्यालयों पर कई सवाल भी खड़ा करता है। कुल मिलाकर इससे स्पष्ट होता है कि प्रदेश के सेवायोजन कार्यालय सफेद हाथी साबित होते जा रहे हैं।
देहरादून जनपद के सेवायोजन कार्यालय में वर्ष २००३ से २०१५ तक पंजीकृत अभ्यर्थी और रोजगार प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों की संख्या
वर्ष पंजीकृत अभ्यर्थी रोजगार में लगे
2003 9272 305
2004 9426 287
2005 16527 3164
2006 18559 357
2007 9853 543
2008 18569 624
2009 15979 231
2010 25531 31
2011 27609 20
2012 20805 11
2013 19597 20
2014 36614 22
2015 23074 5
2016 के आंकड़े उपलब्ध नहीं।
कुल 2,51,415 5620
पिछले एक-डेढ़ वर्ष में ही विधानसभा में बैकडोर से दर्जनों भाई-भतीजे व चहेते युवाओं को नौकरी दे दी गई। इन युवाओं पर विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल का आशीर्वाद बताया जाता है। यही कारण है कि कुछ अधिकारी विरोध करने की इच्छा रखने के बावजूद भी अपनी जुबां नहीं खोल पा रहे हैं।