दून विश्वविद्यालय की स्थापना के समय से ही यहां पर प्राध्यापकों के चयन एवं नियुक्ति में घोर भ्रष्टाचार एवं अनियमितताएं हुई हैं। दून विश्वविद्यालय तमाम बुरे दौर से गुजर रहा है। लेकिन अब तो अति हो गयी है, जब वर्तमान कुलपति की नियुक्ति भी फर्जीवाड़े का शिकार हो गयी।
जब एक कुलपति जैसे गरिमामय पद में इतनी गलतियां व जोड़तोड़ हो रही हैं, तब हजारों सरकारी नौकरियों का तो कोई रखवाला भी नहीं बचा है।
डा सीएस नौटियाल जो कि वर्तमान में दून विश्वविद्यालय देहरादून ( राज्य सरकार विवि) में कुलपति के पद पर कार्यरत हैं, इनके द्वारा कुलपति के पद पर नियुक्ति पाने हेतु आवेदन पत्र में अपनी कार्य अनुभव को 10 वर्ष प्रोफेसर के समकक्ष दिखाने हेतु षड्यंत्रपूर्वक जालसाजी की गयी। उत्तराखंड क्रांति दल के कार्यकर्ता शांति भट्ट ने उच्च शिक्षा उत्तराखण्ड “शासन एवं एन.बी.आर.आई. लखनऊ से इनकी न्यूनतम आवश्यक योग्यता एवं अनुभव हेतु सूचना मांगी तो आर.टी.आई से चौंकाने वाले तथ्य प्राप्त हुये।
शांति भट्ट ने इसकी शिकायत राजभवन से कर दी है। देखना यह है कि राजभवन क्या रुख अपनाया है।
कुलपति पर गंभीर सवाल
1. डा. सी.एस. नौटियाल यू.जी.सी. द्वारा निर्धारित कुलपति पद के लिए न्यूनतम योग्यता को पूर्ण नही करते हैं जो कि उत्तराखण्ड “शासन द्वारा प्रकाशित विज्ञप्ति में भी उल्लिखित है।
2. यू.जी.सी. द्वारा कुलपति हेतु निर्धारित योग्यता में स्पष्ट है कि अभ्यर्थी उच्च नैतिक मूल्यों से युक्त हो एवं ऐकेडेमिक या रिसर्च संस्थान में विश्वविद्यालय पद्यति से प्रोफेसर के पद या उसके समकक्ष कम से कम 10 वर्ष के अनुभव की योग्यता को धारित करता हो उच्च शिक्षा विभाग उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रकाशित विज्ञापन इसका उल्लेख है।
3. कुलपति के चयन हेतु बनी कमेटी द्वारा ऐसे सभी अभ्यर्थियों के आवेदन को जिनका अनुभव प्रोफेसर पद पर 10 वर्ष से कम हो, निरस्त किया गया हैै।
4. एन.बी.आर.आई. लखनऊ जहां से डा. सी.एस. नौटियाल निदेशक के रूप में 31 मई 2016 को रिटायर हुये। वहां से प्राप्त आर.टी.आई सूचना से स्पष्ट है कि डा. सी. एस. नौटियाल का विश्वविद्यालय पद्यति से प्रोफेसर पद (10000 ग्रेड पे) के समकक्ष कार्य अनुभव केवल 7 वर्ष 4 माह का ही है जो कि यू.जी.सी. द्वारा निर्धारित न्यूनतम योग्यता से काफी कम है।
आरटीआइ से प्राप्त जानकारी के अनुसार डॉ सी एस नौटियाल का नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट में विभिन्न स्तरों पर वैज्ञानिक एवं निदेशक के रुप में कार्य अनुभव निम्नवत है।
ऊपर दिए हुए तथ्यों से स्पष्ट हैं कि डॉ नौटियाल अकादमिक ग्रेड पे 10,000, प्रोफेसर के समतुल्य चीफ साइंटिस्ट के ग्रेड पे में 1 फरवरी 2009 को पदोन्नत हुए और 31 मई 2016 में निदेशक के पद से सेवामुक्त हुए हैं। इस प्रकार उनका विश्वविद्यालय पद्यति से प्रोफेसर के समकक्ष ;ग्रेड पे 10000 रुपये या कुल अनुभव सात साल चार महीने का ही है।
5. डॉ सी एस नौटियाल ने अपने आवेदन में गुमराह करते हुए खुद को 2004 के बाद से प्रोफेसर समकक्ष के रूप में कुलपति के पद के लिए प्रस्तुत किया।
तथ्य यह है कि उनका यह उनकी ओर से एक उद्देश्यपूर्ण गलत बयानी है।
6 इस तरह अक्टूबर 2017 को दून विवि के कुलपति पद हेतु आवेदन भरने के समय डा. सी.एस. नौटियाल द्वारा गलत बयानी कर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर अपने कार्य अनुभव का 12 वर्ष प्रोफेसर पद के समकक्ष बताते हुये दिखाया गया जो कि सरासर गलत है।
7. कुलपति के लिए अपने आवेदन में 2004-2009 की इसी अवधि के लिए उन्होंने acsir से प्रोफेसर के अकादमिक पदनाम का भी अपना दावा पेश किया है जो स्वयं फरवरी 2012 में सरकारी अधिसूचना के माध्यम से अस्तित्व में आयी है। लेकिन अपने आवेदन में डॉ नौटियाल ने अपने प्रोफेसर पदनाम को 2004 की पिछली तारीख से दर्शाया है, जो उनके पास कभी था ही नहीं, क्योंकि यह अकादमी ही उस समय 2004-2009 मे अस्तित्व में नहीं थी ।
8 इसके अलावा केंद्रीय सतर्कता आयोग cvc द्वारा निर्देशित cvo, CSIR की जांच डॉ सीएस नौटियाल द्वारा एनबीआरआई लखनऊ में उनके सेवाकाल में उनके निर्देशन में हुई वित्तीय अनियमितताओं के सम्बन्ध में चल रही है।
यह जांच इस सम्बन्ध में भी है कि डॉ नौटियाल ने एनबीआरआई में ‘कंपोजिट लैब लाइन’ नामक एक कंपनी के साथ मिलकर वित्तीय अनियमितताओं को अंजाम दिया। दिलचस्प बात यह है कि डॉ नौटियाल के दून विश्वविद्यालय के कुलपति का पदभार सँभालते ही इसी कंपनी ;’कंपोजिट लैब लाइन’ ने दून विश्वविद्यालय की निविदाओं में अपनी सक्रिय भागीदारी शुरू कर दी है। डॉ नौटियाल के दून विश्वविद्यालय में आने से पूर्व इस कंपनी ने कभी भी दून विश्वविद्यालय द्वारा मंगाई गई किसी भी निविदा में भाग नहीं लिया।
आरटीआई के माध्यम से प्राप्त जानकारी से यह संदेह से परे स्थापित है कि डॉ सी एस नौटियाल ने कभी भी विश्वविद्यालय प्रणाली में प्रोफेसर के रूप में काम नहीं किया था और विश्वविद्यालय प्रणाली में प्रोफेसर के समकक्ष उनका अनुभव केवल 7 साल और 4 महीने (2009-2016) है। परन्तु उन्होंने इस अनुभव को घोर हेरा फेरी कर लगभग 12 वर्ष (2004-2016) दिखा दिया।
उनके द्वारा आवेदन में यह फर्जीवाड़ा इस बात की गणना करने की कोशिश के रूप में किया गया था, जैसे कि वह कुलपति पद के लिए निर्धारित प्रोफेसर के समकक्ष 10 साल के अनुभव की अपेक्षित योग्यता को पूरा करते हों, ताकि वो कुलपति पद के योग्य दिख सकें। इस तरह की गणना का प्रयास बेहद अनैतिक,दुर्भाग्यपूर्ण एवं नैतिक मर्यादा के विपरीत है।
कुलपति का कहना है कि उनके सभी दस्तावेज सही हैं और वह सही प्रक्रिया से चयनित होकर आए हैं। और उन्हें अपने खिलाफ चल रही किसी जांच की कोई जानकारी भी नहीं है।
बहरहाल कुलपति महोदय की शिकायत प्रधानमंत्री से लेकर राजभवन तक चली गई है देखना यह है कि देर सबेर राज पवन क्या एक्शन लेता है !