जगदम्बा कोठारी/रूद्रप्रयाग
आपदा की दृष्टि से अति संवेदनशील जनपद रूद्रप्रयाग के सैंकड़ो परिवारों की हजारों की आबादी आज भी विस्थापन की राह देख रही है। 2013 की आपदा के बाद से प्रशासन ने जनपद के 23 गांवों के 472 परिवारों को पुर्नवास की सूची मे रखा है। इनमे ऊखीमठ तहसील के 17 गांवों के 248, जखोली के 3 गांव के 192 और रूद्रप्रयाग तहसील के 3 गांव के 32 परिवार शामिल हैं।
इनमे अभी तक जिला प्रशासन महज 56 परिवारों का विस्थापन करवा सका है शेष 416 परिवारों के पुर्नवास के लिए शासन ने 3 लाख 50 हजार प्रति परिवार अनुदान के हिसाब से कुल 16 करोड़ 52 लाख रुपयेे का प्रस्ताव उत्तराखंड शासन को भेजा है लेकिन प्रदेश सरकार से धनराशी न मिलने के कारण जनपद के 416 परिवार अपने ही घरों मे खौफ केे साये मे जीने को मजबूर हैं। इनमे से जखोली तहसील का पांजणा गांव सबसे दयनीय स्थिती मे है। लस्तर नदी के तट पर बसा यह गांव अब मौत के मुहाने पर खड़ा है।
वर्ष 2007 मे पांजणा गांव के ठीक ऊपर कड़वे गदेरे मे बादल फटने के कारण हजारों टन मलबा और बोल्डर गांव मे गिरे जिससे गांव के दर्जनो आवासीय भवन पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त होने के साथ गांव की सैंकड़ों नाली कृषि भूमी आपदा की भेंट चड़ गयी। वर्ष 2012 मे पुन: गांव के उपर उसी स्थान पर बादल फटने की घटना हुयी। कुदरत का कहर यहीं नहीं थमा और जून 2013 की विनाश कारी जल प्रलय गांव मे रही सही कसर भी बाड़ मे बहा ले गयी। जिसके बाद प्रशासन ने गांव के कुल 148 परिवारों मे से 139 परिवारों को विस्थापन एंव पुर्नवास की श्रेणी मे रखा। लगभग दो वर्ष बाद गांव का पुन: भौगोलिक सर्वेक्षण हुआ तो रिपोर्ट मे सामने आया कि यह पूरा गांव ही रहने योग्य नहीं है। जिस कारण प्रशासन ने शेष 9 परिवारों सहित पूरे गांव के 148 परिवारों के विस्थापन की प्रकिया शुरू कर दी लेकिन 2013 की आपदा के 5 वर्ष बाद भी सरकार अभी तक इस गांव के महज 16 परिवारों का ही पुर्नवास कर सकी है।
ग्राम प्रधान पांजणा त्रीलोक सिंह रौतेंला ने बताया कि पिछले 11 वर्षों से गांव मे लगातार भू धसाव के चलते गांव के सभी मकानों मे चौड़ी दरारे पड़ चुकी हैं जिस कारण ग्रामीण अपने आवासीय भवन छोड़ने को मजबूर हैं। बरसात के समय प्रशासन नोटिस जारी करता है कि सभी ग्रामीण स्कूल भवन जैंसे सुरक्षित स्थान पर शरण लें लेकिन विस्थापन की प्रकिया पूरी नहीं हो रही है और ग्रामीण अपने ही घरों मे खुद को महफूज नहीं कर रहे है।अन्य ग्रामीण अब्बल सिंह और सौणी देवी का कहना है कि गांव के संपन्न परिवार तो गांव से पलायन कर चुके हैं लेकिन गरीब लोग कहां जायेगे। उन्होने बताया कि शासन प्रशासन गांव मे कई बार सर्वे करा चुका है लेकिन कार्यवाही बस फाईलों तक ही सीमित है और आपदा के बाद से उनके पास सीमित कृषि भूमी ही रह गयी है जिस कारण उन पर आजीविका का संकट भी गहराने लगा है।
बहराल, प्रशासन ने इन गांवो मे मॉक ड्रिल आयोजित कर आपदा की स्थिती मे फौरी तौर पर ग्रामिणों को राहत एंव बचाव कार्य के गुर तो सिखाये है लेकिन इन गांवों के खण्डहर हुए मकान और उनकी लटकती छतें पुर्नवास और विस्थापन को महज जुमला साबित करने को काफी हैं।