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इस कोतवाल का सैंय्या कौन!

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भूपेंद्र कुमार

लंबे समय से देहरादून में डटे विवादित पुलिस इंस्पेक्टर को दोबारा पहाड़ी जनपद में तैनाती निरस्त कर देहरादून के डोईवाला का कोतवाल बना दिया गया। विवादित इंस्पेक्टर को फिर मलाईदार पोस्टिंग से महकमे में नाराजगी

यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि ‘सैंय्या भए कोतवाल तो डर काहे का’, लेकिन यदि कोई भ्रष्ट कोतवाल भी किसी आका को अपना सैंय्या बना ले तो कोतवाली में तो अंधेरनगरी चौपटराज ही होना है।
सरकार किसी की भी हो, पहुंच वाले अधिकारी अपना रास्ता बना ही लेते हैं। लंबे समय से देहरादून में ही डटे पुलिस इंस्पेक्टर ओमवीर रावत भी ऐसे ही जुगाड़बाज अफसरों में शामिल हैं।
पुलिस महकमे में पिछले माह हुए स्थानांतरणों में देहरादून निवासी पुलिस इंस्पेक्टर ओमवीर रावत एक बार फिर से देहरादून में ही डटे रहने में सफल हो गए। ९ मई को कुछ पुलिस के सब इंस्पेक्टरों की पदोन्नति की गई थी।
पुलिस उपमहानिरीक्षक गढ़वाल परिक्षेत्र पुष्पक ज्योति ने १६ निरीक्षकों को पदोन्नति के पश्चात गढ़वाल के पहाड़ी जनपदों में स्थानांतरित किया था तथा यह आदेश भी किया था कि स्थानांतरण नीति के अनुसार पदोन्नति के फलस्वरूप सभी १६ पुलिस इंस्पेक्टर दो वर्ष तक पर्वतीय जनपदों में ही तैनात रहेंगे। इनमें से ओमवीर सिंह रावत को भी देहरादून से टिहरी गढ़वाल के लिए स्थानांतरित किया गया था।
११ मई २०१६ को ओमवीर रावत टिहरी गढ़वाल के लिए स्थानांतरित किए गए, किंतु एक माह में ही उनको वापस देहरादून के मलाईदार थाने डोईवाला का इंचार्ज बना दिया गया। सवाल यह है कि जब पुलिस उपमहानिरीक्षक पुष्पक ज्योति के आदेशों के अनुसार सभी पदोन्नत पुलिस इंस्पेक्टरों को स्थानांतरित पहाड़ी जनपदों में दो साल तक की तैनाती अनिवार्य की गई थी तो फिर किसकी सिफारिश से और किस आधार पर सिर्फ ओमवीर रावत को ही एक माह से भी कम समय में डोईवाला थाने की पोस्टिंग दे दी गई।


देहरादून में तैनाती का रिकार्ड

ऐसा नहीं है कि ओमवीर रावत के पहले पर्वतीय जनपदों में स्थानांतरण न हुए हों, किंतु पहुंच के बल पर ओमवीर रावत एक माह से भी कम समय में फिर से देहरादून आ जाते हैं। पिछले वर्ष फरवरी माह में ओमवीर रावत के थाना क्षेत्र में चोरी की घटनाओं का संज्ञान लेकर मानवाधिकार आयोग ने पुलिस मुख्यालय को कार्यवाही करने के निर्देश दिए थे।
ओमवीर रावत ने रायपुर क्षेत्र में एक बिल्डर के घर हुई चोरी का खुलासा करने के बजाय चोरी की घटना को ही छुपा लिया था। इसका संज्ञान लेकर तत्पश्चात तत्कालीन आईजी संजय गुंज्याल ने ओमवीर रावत को रुद्रप्रयाग स्थानांतरित कर दिया था, किंतु ओमवीर की पहुंच देखिए कि २ मार्च २०१६ को ओमवीर ने रुद्रप्रयाग पुलिस लाइन में ज्वाइन किया और २० दिन बाद ही पुलिस महानिरीक्षक संजय गुंज्याल को ओमवीर की वापसी के आदेश करने पड़े। २२ मार्च २०१६ को संजय गुंज्याल ने भूमि संबंधी मामलों में कई प्रकरण लंबित होने का तर्क देते हुए ओमवीर को देहरादून के एसआईटी कार्यालय से संबद्ध कर दिया था, लेकिन एसआईटी से संबद्धता के तीन माह बाद ही 21 जून १६ को ओमवीर रावत को रानीपोखरी का थानेदार बना दिया गया था।
इस संवाददाता ने सूचना के अधिकार में पूर्व में भी इस मामले का खुलासा कर पुलिस महकमे की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए थे। सवाल यह था कि २ मार्च को रुद्रप्रयाग स्थानांतरण के बाद यदि कार्य की अधिकता का बहाना करते हुए ओमवीर रावत को एसआईटी देहरादून से संबद्ध किया गया था तो फिर तीन माह बाद ही रानीपोखरी क्यों भेज दिया गया?
जाहिर है कि कार्य की अधिकता का बहाना सिर्फ ओमवीर को रुद्रप्रयाग से देहरादून वापस बुलाने के लिए बनाया गया था। एक सवाल यह भी है कि क्या पूरे पुलिस महकमे में सब इंस्पेक्टरों की इतनी कमी हो गई है कि पनिशमेंट पोस्टिंग पर रुद्रप्रयाग भेजे गए ओमवीर को बुलाना ही पड़ा! यह भी बड़ा सवाल है कि क्या एसआईटी के कामों की अधिकता तीन माह में ही खत्म हो गई, जो उन्हें फिर रानीपोखरी भेज दिया गया! हाल ही में दो साल के लिए पर्वतीय जनपद में प्रमोशन पोस्टिंग पर भेजे गए ओमवीर को फिर से देहरादून बुलाए जाने पर पुलिस महकमे के अन्य इंस्पेक्टरों में अंदरखाने आक्रोश पनप रहा है। ओमवीर रावत जब रायपुर थाने में तैनात रहे तो वहां उनके कार्यकाल में आपराधिक गतिविधियों का ग्राफ काफी ऊंचा रहा। फिर भी ओमवीर रावत के खिलाफ कार्यवाही के बजाय पहाड़ की पोस्टिंग से मुक्त करते हुए उन्हें मलाईदार पद थमा दिया गया। सोचनीय है कि बार-बार पहाड़ की पोस्टिंग रद्द करते हुए उन्हें मलाईदार पोस्टिंग देने से साफ छवि के इंस्पेक्टरों में नाराजगी होना स्वाभाविक है।

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