मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने खासमखास अधिकारी ओमप्रकाश जी की नाव मे बैठकर खुद को डुबाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। अब देखिए नया उदाहरण !
ओमप्रकाश ने अपनी उच्च पहुंच का इस्तेमाल करते हुए उपनल के माध्यम से लेखाकार के पद पर एक महिला को नियुक्त कराया है।
ओम प्रकाश ने अपने रसूख के बलबूते अनुकंपा के आधार पर यह नियुक्ति दिलाई है। इस महिला का नाम स्वाति भट्ट है। उत्तराखंड में इसकी तैनाती से कोई बवाल न हो इसलिए उसको उत्तराखंड के दिल्ली कार्यालय में तैनात किया गया है।
स्वाति भट्ट आखिर है कौन
स्वाति भाटी गृह मंत्रालय भारत सरकार के अधीन आने वाले एक अर्धसैनिक बल में पायलट के पद पर तैनात अधिकारी की पत्नी है, जिनकी एक हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।
अब प्रश्न यह है कि जब यह महिला किसी भारत सरकार के अधीन बल में तैनात पायलट की पत्नी हैं तो फिर उसे उत्तराखंड सरकार ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति क्यों दी ! लेकिन “खाता ना बही जो ओमप्रकाश कहे, वही सही” की उक्ति को यहां पर चरितार्थ किया गया है। इसके बारे में यह भी पता चला है कि भारत सरकार के संबंधित बल द्वारा स्वाति भट्ट को कांस्टेबल के पद पर अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उक्त महिला ने इस छोटे से पद पर नौकरी करने से मना करते हुए अपने पति के पद के समकक्ष के पद पर नौकरी देने की मांग की, जिसे बल द्वारा खारिज कर दिया गया था।
उक्त महिला की पहुंच की एक बानगी यह भी है कि बताया जा रहा है कि बल द्वारा दुर्घटना युक्त प्लेन में उनके पति को यात्री के रूप में दर्शाते हुए नियमानुसार आधी पारिवारिक पेंशन दी गई थी, लेकिन अपनी पहुंच से स्वाति द्वारा अपने पति को प्लेन में पायलट दर्शाकर पूरी पारिवारिक पेंशन हासिल कर ली।
यह सोचनीय प्रश्न है कि देश के एक प्रतिष्ठित अर्धसैनिक बल द्वारा इतनी बड़ी गलती तो नहीं की जा सकती थी ! अपने ही पायलट को वह उस प्लेन का मात्र यात्री बताए ! यहां भी स्वाति द्वारा अपने उच्च संपर्कों का इस्तेमाल किया गया।
बताया जा रहा है कि पूर्ववर्ती हरीश रावत की सरकार में भी इस महिला द्वारा नौकरी के प्रयास किए गए लेकिन तब की सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए इन्हें नौकरी देने में असमर्थता जताई। जब पूर्व सरकार में नियमानुसार इन्हें नौकरी नहीं मिल सकती तो त्रिवेंद्र सरकार के आते ही नियम कैसे बदल गए ?
बताया यह भी जा रहा है कि उक्त महिला को नौकरी देने में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने काफी दिलचस्पी दिखाई है। उत्तराखंड सरकार द्वारा पूर्व सैनिकों के आश्रितों को रोजगार देने हेतु उपनल की स्थापना की गई थी। जिसमें पूर्व सैनिकों के परिवार के सदस्यों को ही नौकरी दिए जाने का प्रावधान था लेकिन भाजपा सहित सभी पूर्व सरकारों ने अपने-अपने लोगों को जो सैनिक पृष्ठभूमि के नहीं भी थे उन्हें भी उपनल में भर्ती करा दिया वर्ष 2016 में हाईकोर्ट के निर्देश दिया कि उपनल में सिर्फ सैनिकों के परिवारों को ही रोजगार दिया जाए। तब कुछ हद तक अंकुश लगा है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उपनल में मात्र अर्धसैनिक बलों के आश्रितों को भी रोजगार देने का कोई प्रावधान अभी तक नहीं है।
यहां प्रश्न यह उठता है कि भारत सरकार के अधीन आने वाले बल के मृतक आश्रित को उत्तराखंड सरकार द्वारा आखिर लेखाकार जैसे महत्वपूर्ण पद पर नौकरी कैसे दे दी गई ?
अब सुनने में आ रहा है कि स्वाति भट्ट के लिए नियमों में संशोधन किया जा सकता है। सचिवालय के सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि इस संबंध में दिल्ली में स्वीकृत अनुभाग अधिकारी के प्रतिष्ठित पद को स्थगित करते हुए लेखाकार के पद पर स्वाति भट्ट को बैठाया गया है।
कहने को तो यह नियुक्ति मात्र एक वर्ष की है लेकिन इन्हें इसी पद पर पूर्णकालिक अस्थाई नियुक्ति देने की कार्यवाही की जा रही है।
एक दिलचस्प बात यह भी है कि उत्तराखंड सचिवालय सेवा के कार्मिकों को नियुक्ति देने का अधिकार सचिव सचिवालय प्रशासन को है लेकिन स्वाति भट्ट के मामले में सामान्य प्रशासन विभाग की सर्वे सर्वा राधा रतूड़ी द्वारा उक्त महिला को नियुक्ति पत्र दे दिया गया।
नियमानुसार जबकि सरकारी नौकरी में ऑन सर्विस किसी अधिकारी का आकस्मिक निधन हो जाता है तो वह चाहे कितना ही बड़ा अधिकारी क्यों न हो उसे उसकी योग्यता के अनुसार कंप्यूटर ऑपरेटर या उसके समकक्ष कम पढ़े लिखे होने पर चतुर्थ श्रेणी के पद पर मृतक आश्रित के तहत नौकरी दी जाती है फिर स्वाति के मामले में इतनी उदारता क्यों ?
बात-बात पर अपनी बाहें चढ़ाने वाले सचिवालय संघ के फन्ने खां नेताओं की चुप्पी भी इस बात पर संदेह के घेरे में है।
हमारे देश की रक्षा में अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले उत्तराखंड के वीर जवानों के आश्रितों को भी क्या इसी प्रकार नौकरी दी जाएगी ?
क्या अर्धसैनिक बलों के आश्रितों को इस प्रकार रोजगार दिया गया ?
यदि मुख्यमंत्री तथा उनके खास अधिकारी अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश को किसी को किसी को रोजगार देना ही था तो उत्तराखंड के किसी बेरोजगार को नौकरी दी जाती, जिसके पास रोजगार का कोई साधन ना हो जिसकी कोई पारिवारिक पेंशन न हो।
एक तरफ उत्तराखंड का बेरोजगार आए दिन रोजगार की मांग कर धरना प्रदर्शन के दौरान पुलिस की लाठी का शिकार हो रहा है, उपनल के हजारों-हजार कर्मचारी अपनी नौकरी पक्की करने, वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सत्ता में बैठे सत्ता के दलाल अपने अपने चहेतों को पीछे के दरवाजे से नियम विरुद्ध नौकरी बांट रहे हैं।
बताया तो यह भी जा रहा है कि उक्त अधिकारी भारत सरकार में तैनात कुछ और अपने लोगों को भी उत्तराखंड मे ही समायोजित कर रोजगार देने का प्रयास कर रहा है। बेरोजगारों को रोजगार देने के नारे के साथ देश सहित उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत में आई भाजपा सरकार देश के बेरोजगार युवाओं के सपनों पर इस तरह पानी फेर रही है। यदि यही हाल रहा तो आने वाले चुनाव में इस प्रदेश का युवा इसका मुंहतोड़ जवाब अवश्य देगा।
बदले बदले से लगते हैं मेरे सरकार
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बारे में आजकल देहरादून सचिवालय के गलियारों में यही चर्चा जोरों पर है कि बदले-बदले से सरकार लगते हैं।
यह चर्चा तब उठ खड़ी हुई, जब मुख्यमंत्री के सीधे हस्तक्षेप से सचिवालय में लेखाकार के पद पर उपनल के माध्यम से स्वाति भट्ट की नियुक्ति कर उन्हें राज्य के दिल्ली में स्थित स्थानिक आयुक्त के यहां भेजा गया। दिलचस्प बात यह है कि लेखाकार के जिस पद पर स्वाति को भेजा गया है, वह पद राज्य बनने के बाद से ही रिक्त चल रहा था। तथा वर्ष 2004 में दिल्ली में राज्य का “पे एंड एकाउंट” कार्यालय खुलने के बाद इस पद पर कार्मिकों को तैनात करने की आवश्यकता नहीं रह गई थी।
स्वाति भट्ट को नियुक्त करने में सारे नियम कायदों को ताक पर रखा गया है। जहां एक ओर आवश्यकता न होने के बाद लेखाकार जैसे महत्वपूर्ण पद पर तैनाती दी गई, वहीं दूसरी ओर इस तैनाती हेतु सचिवालय सेवा के महत्वपूर्ण माने जाने वाले अनुभाग अधिकारी के राजपत्रित पद को स्थगित कर यह तैनाती दी गई। सचिवालय सेवा के कर्मियों को तैनाती सचिवालय प्रशासन द्वारा दी जाती है, लेकिन स्वाति भट्ट के मामले में ऐसा नहीं किया गया।
मुख्यमंत्री के सीधे हस्तक्षेप के बाद सामान्य प्रशासन विभाग की सर्वे सर्वा प्रमुख सचिव द्वारा नियुक्ति आदेश जारी कर दिए गए। जबकि सामान्य प्रशासन विभाग को सचिवालय विभाग का पैतृक विभाग माना जाता है, नियुक्ति विभाग नहीं।
एक तथ्य यह भी है कि यह लेखाकार का पद प्रमोशन का पद है। इस पद का वेतन लगभग 70,000 रुपए है।
इस संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव भी संदेह के घेरे में आती हैं।
स्वाति भट्ट ने पर्वतजन से कहा कि उन्होंने 15 अप्रैल को ज्वाइन किया है और उनको नौकरी मुख्यमंत्री के जनता दरबार में एप्लीकेशन लगाने के बाद मिली है।
प्रचंड बहुमत की सरकार का और कोई फायदा इस राज्य को हुआ हो या नहीं लेकिन एक खौफ जरूर है, जिसके कारण मंत्री, विधायक से लेकर तमाम कर्मचारी संघ और मीडिया तक भी बैकफुट पर नजर आता है। और अपनी जुबान खोलने में कतराता है।
प्रचंड बहुमत की सरकार से नियम कायदों की इस तरह धज्जियां उड़ाने की उम्मीद शायद किसी को भी न रही हो। सरकार के नियम कायदों को ताक पर रखने को लेकर जब भी सवाल उठाया जाता है, तब सरकार का यही जवाब होता है कि पूर्ववर्ती सरकार ने ऐसा किया था, वैसा किया था।
यह सत्तासीन सरकार को सोचना चाहिए कि पूर्ववर्ती सरकार ने यदि कोई गलती भी की है तो उसका फल जनता ने उन्हें दे दिया। फिर इस तरह की बातें करके अपना पल्ला झाड़ना कहां तक उचित है ! एक पुरानी अंग्रेजी कहावत का हिंदी तर्जुमा याद आ रहा है, जिसका अर्थ है कि सत्ता की ताकत भ्रष्ट करती है और प्रचंड सत्ता प्रचंड रूप से भ्रष्ट कर देती है। यह प्रचंड बहुमत का साइड इफेक्ट ही है। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ओमप्रकाश को अपने कंधे पर बिठाकर इस पद पर रहते हुए और कितना लंबा सफर तय कर पाएंगे !
यदि आप अभी तक इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं तो आपको बताने की जरूरत नहीं कि यह ओमप्रकाश सिरीज़ का पार्ट 15 है। रिपोर्ट अच्छी लगी हो तो शेयर जरूर करें।