मामचन्द शाह
वन निगम की गाड़ी खड़े-खड़े पीती हैं तेल, बिना ईंधन के दिल्ली से देहरादून की यात्रा भी करती हैं
वन निगम के वाहन की खासियत, एक ही वाहन में भरा जाता है पेट्रोल भी व डीजल भी
रेसर गाडिय़ों की चर्चा होते ही लोगों के जेहन में राल्स रॉयस, बैटलें, जैगुवार एवं फरारी जैसी कारों का नाम याद आ जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि उत्तराखंड वन विकास निगम के पास भी एक ऐसा सुपर-डुपर वाहन है, जो नैनीताल से महज एक घंटे में देहरादून पहुंच सकता है। यही नहीं इस वाहन की एक और खासियत है कि यह देहरादून से दिल्ली और फिर दिल्ली से देहरादून वापस खाली टंकी(बिना ईंधन) से आ सकता है।
यह हम नहीं, बल्कि उत्तराखंड वन विकास निगम के सत्यापित दस्तावेज बता रहे हैं। देहरादून के सुप्रसिद्ध आरटीआई कार्यकर्ता व सामाजिक कार्यकर्ता अमर सिंह धुंता ने जब वन विकास निगम में आरटीआई लगाई तो उसके जवाब में ये तमाम दस्तावेज प्राप्त हुए हैं। आइए उत्तराखंड वन विकास निगम में हुए इस तरह के कारनामों की विस्तार से तफ्तीश करते हैं।
नैनीताल से देहरादून एक घंटे में पहुंचा
उत्तराखंड वन विकास का यूए07एफ-4704 नंबर का वाहन 9 सितंबर 2016 को मदकोट (पिथौरागढ़) से देहरादून आया। टीए बिल के अनुसार यह वाहन मदकोट से सुबह 5 बजे चला और दोपहर 12 बजे देहरादून पहुंचा। मदकोट-दून की दूरी 747 किमी. दिखाई गई है और इस वाहन ने इस दूरी को 7 घंटे में तय किया। इस तरह 107 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से बिना रुके यह वाहन चलता रहा। अब यह अलग बात है कि उत्तराखंड में ऐसी कौन सी सड़क होगी, जहां गाड़ी इतनी अधिक स्पीड पर दौड़ती होंगी!
पाठकों को यह भी बता दें कि टीए बिल के अनुसार 8 सितंबर 2016 को यह वाहन नैनीताल से सुबह 6 बजे चला और दोपहर 12 बजे मदकोट(पिथौरागढ़) पहुंचा। नैनीताल-मदकोट की दूरी 173 किमी. है। जब 173 किमी. की दूरी यह वाहन 6 घंटे में तय करता है तो मदकोट से देहरादून की 747 किमी. की दूरी महज ७ घंटे में कैसे तय कर सकता है। इस फार्मूले के अनुसार मदकोट-नैनीताल जाने में ही 6 घंटे लग जाता है तो फिर बची यात्रा नैनीताल से देहरादून एक घंटे में कैसे तय किया जा सकता है?
खाली टंकी से 516 किमी. की दूरी तय
इस वाहन ने एक ऐसा कारनामा दिखाया कि शायद ही विश्व में कोई और वाहन दिखा पाए। ३१ दिसंबर २०१६ को तो इस दिन वाहन की टंकी में ईंधन शून्य था यानि कि टंकी खाली थी। उसके बाद अगले चार दिन गाड़ी नहीं चली। फिर खाली टंकी से ही यह वाहन 5 जनवरी 2016 को देहरादून से दिल्ली और दिल्ली से ५१६ किमी. की दूरी तय कर देहरादून पहुंच गया। इसका प्रमाण यह है कि देहरादून के ईसी रोड से ४९.५४ लीटर रुपए ३००० का तेल ६ जनवरी २०१७ को भराया गया।
किसने पिया 160 लीटर तेल!
इसी प्रकार फरवरी २०१७ में गाड़ी कहीं नहीं चली, लेकिन २ फरवरी २०१७ को ४० लीटर, ८ फरवरी को ४० लीटर, १७ फरवरी को ४० लीटर और २३ फरवरी को ४० लीटर कुल १६० लीटर तेल भराया गया। लॉगबुक के अनुसार जब फरवरी २०१७ में गाड़ी चली ही नहीं तो सवाल यह है कि यह १६० लीटर आखिर तेल कौन पी गया?
३१ अप्रैल को भी चली गाड़ी
उत्तराखंड वन विकास निगम के कैलेंडर में ३१ अप्रैल होगा, तभी तो यूए०७एफ-४७०४ वाहन संख्या ३१ अप्रैल को भी चलाया हुआ दिखाया गया है, जबकि सभी जानते हैं कि अप्रैल का महीना ३० दिन का ही होता है।
दून-ऋषिकेश-हरिद्वार से दून पहुंचाने में घूमे ४९१ किमी.
१० अप्रैल २०१७ को इस वाहन का देहरादून-ऋषिकेश-हरिद्वार से कुल ४९१ किमी. के भ्रमण के बाद देहरादून वापसी हुई, जबकि जोडऩे पर देहरादून-ऋषिकेश करीब ५० किमी., ऋषिकेश-हरिद्वार करीब ३० किमी. और हरिद्वार से देहरादून करीब ६० किमी. यानि १४० और १० किमी. अतिरिक्त घूमने पर १५० किमी. ही होता है, जबकि उक्त वाहन ने ४९१ किमी. का भ्रमण किया, जो किसी के भी गले नहीं उतर रहा। इसके अलावा एक आंकड़ा यह भी प्राप्त हुआ है कि अप्रैल २०१७ में यह वाहन ४२३८ किमी. चला, जबकि १००० किमी. से अधिक दूरी तय करने के लिए उच्चाधिकारियों की परमिशन लेना पड़ता है।
गाड़ी गई नैनीताल और तेल राजस्थान से भरवाया
८ जनवरी २०१७ को देहरादून से नैनीताल और वहां से देहरादून ५७३ किमी. चलने के बाद वापसी हुई। सवाल यह है कि जब इस दिन गाड़ी नैनीताल गई और वापस आई तो फिर शिवम फिलिंग स्टेशन आदर्शनगर बगड़ (झुंझनु) राजस्थान बिल नं. ४०८३ से ३५०० रुपए का ५५.४५ लीटर तेल कैसे भरवाया गया?
जनवरी २०१७ में कुल १४९८ किमी. गाड़ी चली, जबकि प्रत्येक दिन का किमी. हिसाब जोडऩे पर इसका जोड़ २६०९ किमी. आ रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि जब गाड़ी ढाई हजार से अधिक चली तो फिर ११११ किमी. दूरी कम दर्शाने के पीछे वन विकास निगम की घालमेल करने वाली मंशा को समझा जा सकता है!
दून में खड़ी गाड़ी में नारसन से लाकर भरवाया तेल
लॉगबुक में २० मार्च २०१७ को गाड़ी चली ही नहीं, लेकिन इसके लिए नारसन हरिद्वार से १००० रुपए का तेल भरवाया जाना दिखाया गया है। ऐसे में देहराूदन के पेट्रोल पंपों को छोड़कर खड़ी गाड़ी पर नारसन से एक हजार रुपए का तेल लाकर भरवाया जाना निगम का भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूब जाने की ओर इशारा करता है।
एक गाड़ी दून से दिल्ली और दिल्ली से दून एक ही समय में कैसे दौड़ी!
३१ मार्च २०१७ को निगम का वाहन देहरादून से दिल्ली व लोकल ६६१ किमी. चला। इस गाड़ी पर सन्नी फिलिंग स्टेशन नर्सिंगपुर गुडग़ांव से बिल नंबर ६७३३५ से २५४० रुपए का ४३.९३ लीटर तेल भरवाया गया, जबकि टीए बिल के अनुसार १ अप्रैल २०१७ को यह गाड़ी दिल्ली से सुबह ६:३० बजे चलकर १०:३० बजे देहरादून पहुंची। इसके विपरीत लॉगबुक कहती है कि यह गाड़ी १ अप्रैल २०१७ को देहरादून से दिल्ली २४८ किमी. चली, जबकि सतबीर फिलिंग स्टेशन आईजीआई हाइवे रंगपुरी नई दिल्ली से बिल नंबर ९६१४७ से २५५० रुपए का ४५.८५ लीटर भरवाया गया। अब यह तो वन विकास निगम ही बता पाएगा कि एक ही गाड़ी एक ही समय में दिल्ली से देहरादून और देहरादून से दिल्ली कैसे जा सकती है? लेकिन इतना साफ है कि गड़बड़झाला करने में वन निगम कर्मियों का कोई सानी नहीं है।
१४० किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चला वाहन
११ मार्च २०१६ को यह वाहन देहरादून से दिल्ली कुल ५६० किमी. चला। फिर १२ मार्च २०१६ को दिल्ली से देहरादून भी ५६० किमी. की दूरी ही तय की गई। टीए बिल के अनुसार ११ मार्च २०१६ को देहरादून से सुबह ८ बजे चलकर दोपहर १२ बजे ४ घंटे में दिल्ली पहुंचा गया। इसी प्रकार १२ मार्च २०१६ को दिल्ली से सुबह ५ बजे चला और देहरादून ९ बजे पहुंच गया। इस प्रकार यह वाहन बिना रुके १४० किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से ४ घंटे में ही देहरादून से दिल्ली और इतने ही समय में दिल्ली से दून पहुंच गया। वाहन विशेषज्ञ भी इस रफ्तार को सुनकर दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हैं, लेकिन फिर भी उन्हें इस वाहन की क्षमता का तोड़ नहीं मिल पा रहा है।
गाड़ी चली लोकल, तेल हरिद्वार से भरवाया
२० दिसंबर २०१६ को देहरादून लोकल में ३० किमी गाड़ी चली, जबकि आश्चर्यजनक रूप से अमोल फिलिंग स्टेशन अमानतगढ़ हरिद्वार से बिल नंबर २९५३५ से एक हजार रुपए का १६.९३ लीटर तेल भरवाया गया। सवाल यह है कि जब गाड़ी देहरादून में लोकल चली तो फिर हरिद्वार से इस गाड़ी पर तेल भरवाना कैसे संभव हुआ?
देहरादून-चंद्रबनी आने-जाने में लगे १५१ किमी.
१५ मई २०१७ को वाहन देहरादून में लोकल चला और चंद्रबनी से वापस आकर १५१ किमी. चलना दिखाया गया है, जबकि हकीकत यह है कि घंटाघर से चंद्रबनी की अधिक से अधिक दूरी भी १५-२० किमी. से अधिक नहीं हो सकती और ऐसे में आना-जाना ४० किमी. ही होता है। लोकल के नाम पर ४० किमी. और अतिरिक्त दर्ज कर दें तो फिर भी ८० किमी. ही होता है, लेकिन चंद्रबनी भ्रमण के नाम पर १५१ किमी. दर्शाया जाने के पीछे का राज आमजन की समझ में भी बड़ी आसानी से आ सकता है। इसी तरह १६ मई २०१७ को भी देहरादून से चंद्रबनी और वहां से वापसी का १०५ किमी. चलना दर्शाया गया है।
राजपुर आने-जाने में ६८ किमी.
२९ फरवरी २०१७ में राजपुर जाना और वहां से वापस आना ६८ किमी. दिखाया गया है। जबकि घंटाघर से राजपुर की दूरी अधिक से अधिक ९ किमी. है।
एक ही वाहन में भरते हैं डीजल भी व पेट्रोल भी
एक वाहन यूके०७डब्ल्यू-४४१४ जो कि पूल की गाड़ी है। जानकारी के अनुसार यह अक्सर खड़ा रहता है और आवश्यक दशा में ही इसका उपयोग किया जाता है। ४ फरवरी २०१७ को इस वाहन पर ७४.६८ रुपए प्रति लीटर की दर से कुल ४० लीटर ईंधन भरा गया। इसी वाहन में कुछ दिनों बाद २१ फरवरी २०१७ को ६१.७८ रुपए प्रति लीटर की दर से ४० लीटर ईंधन भरा गया। अब यह तो उत्तराखंड वन विकास निगम के कर्मचारी ही बेहतर बता पाएंगे कि जिस गाड़ी पर ४ फरवरी २०१७ को ७४.६८ रुपए प्रति लीटर की दर से ईंधन भरवाया गया, उसी वाहन पर १७ दिन बाद ६१.७८ रुपए प्रति लीटर की दर से ईंधन कैसे भरवाया गया? इस तरह वन विकास निगम के दस्तावेजों के अनुसार १७ दिन के बाद ईंधन १२.९० रुपए प्रति लीटर सस्ता भरवाया गया, जबकि सर्वविदित है कि ईंधन के दामों में कभी भी इतनी अधिक गिरावट नहीं देखी गई। वन विकास निगम के आंकड़ों की जादूगिरी को बारीकी से पड़ताल करने पर पाया गया कि यूके०७डब्ल्यू-४४१४ नंबर के वाहन पर ४ फरवरी २०१७ को जो ७४.६८ रुपए प्रति लीटर की दर से ईंधन भरवाया गया, वह पेट्रोल के दाम थे और २१ फरवरी २०१७ को ६१.७८ रुपए प्रति लीटर की दर से इसी वाहन पर जो ईंधन भरवाया गया, वह डीजल के दाम थे। आंकड़ों के बाजीगर यहां मात खा गए कि अभी तक इंडिया में ऐसी कोई गाड़ी उपलब्ध नहीं है, जिस पर पेट्रोल भी भरा जा सकता है और डीजल भी।
जाहिर है कि गड़बड़झाला करने वाले अधिकारी-कर्मचारी अपने इन आंकड़ों को बुनकर अब स्वयं के बनाए जाल में ही फंस गए हैं। उच्चाधिकारियों को भी इन सवालों का तोड़ नहीं मिल पा रहा है।
कुल मिलाकर उत्तराखंड वन विकास निगम में कई तरह के कारनामों का रिकार्ड देखने को मिला। इन आंकड़ों को पढ़कर अच्छे-अच्छों के सिर चकरा रहे हैं कि ऐसे अजब-गजब ‘खेलÓ खेलने का हुनर आखिर इन खिलाडिय़ों ने सीखा कहां से!
बहरहाल इन गड़बड़झालों का पर्दाफाश करने के लिए उच्चाधिकारी अब क्या कदम उठाते हैं, यह आने वाला समय ही बताएगा।
”यह मामला अभी मेरे संज्ञान में नहीं है। यदि ऐसा हुआ है और हमें लिखित शिकायत मिल जाती है तो इसकी जांच कराई जाएगी।ÓÓ
– गंभीर सिंह, प्रबंध निदेशक
उत्तराखंड वन विकास निगम, देहरादून