यूं तो उत्तराखंड में निकाय चुनाव को लेकर आदर्श आचार संहिता लागू है। जिसके अनुसार चुनाव आयोग ने कई तरह के नियम-कायदे तय किए हुए हैं। इसके बावजूद प्रदेशभर में आदर्श आचार संहिता के लगातार उल्लंघन की खबरें आ रही हैं।
देहरादून स्थित मुख्यमंत्री निवास इन दिनों आम जनता की समस्याओं के लिए भले ही बंद हो और अधिकारी कर्मचारी हर बात पर आचार संहिता का हवाला दे रहे हों, किंतु मुख्यमंत्री निवास में आचार संहिता लगने के बाद से जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी की राजनैतिक गतिविधियां तय हो रही हैं, उससे उत्तराखंड का मुख्यमंत्री आवास भाजपा का निकाय चुनाव के लिए वार रूम बनकर रह गया है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भारतीय जनता पार्टी के भीतर अपने सभी राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को ठिकाने लगाने के लिए सिर्फ अपने समर्थकों को टिकट बांटे हैं। इसलिए चुनाव जिताने की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने कंधे पर ले ली है। यही कारण है कि देहरादून की प्रतिष्ठित मेयर सीट को त्रिवेंद्र रावत साम, दाम, दंड, भेद करके जीतना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री निवास से उन तमाम लोगों को फोन किए जा रहे हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बगावत कर प्रत्याशी लड़ रहे हैं। ऐसे लोगों की लगातार मुख्यमंत्री से बातचीत करवाई जा रही है और उन्हें मनाया जा रहा है। कल 26 अक्टूबर 2018 को इसी तरह का एक मैनेजमेंट मुख्यमंत्री निवास में तब देखने को मिला, जब भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ऋषिकेश नगर निगम में बागी बनकर लड़ने वाली चारू माथुर कोठारी को लेकर आए और उन्होंने चारू कोठारी माथुर के पति भगतराम कोठारी की मुख्यमंत्री से निर्णायक बातचीत करवाई और तब चारू माथुर कोठारी ने घोषणा की कि वे ऋषिकेश से भाजपा प्रत्याशी अनिता ममगाई के पक्ष में अपना नामांकन वापस ले रही हैं।
चारू माथुर कोठारी के मुख्यमंत्री निवास जाकर इस प्रकार की घोषणा के बाद देहरादून में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सुनील उनियाल गामा और पूर्व मेयर विनोद चमोली दो कांग्रेसियों को लेकर मुख्यमंत्री निवास पहुंचे। फिर दोनों कांग्रेसियों की मुख्यमंत्री के साथ बैठक करवाई गई। नई सेवा शर्तें तय की गई और उसके बाद दोनों ने मुख्यमंत्री के हाथों भाजपा की कमान संभाली।
आज सुबह से ही प्रदेशभर में बागियों को मनाने का दौर चरम पर है। मुख्यमंत्री ने खुद कमान संभाली हुई है। शाम पांच बजे तक यह क्रम बदस्तूर जारी रहेगा और इन सब घटनाक्रम से यह साफ हो गया है कि प्रदेश में आदर्श आचार संहिता जैसी व्यवस्था सिर्फ कागजी होती है।