उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भले ही हों लेकिन इनके अलावा कम से कम एक व्यक्ति और हैं जो पर्दे के पीछे से सारी व्यवस्थाओं में सीधा हस्तक्षेप रखते हैं।
मुख्यमंत्री और पूरी सरकार गैरसैंण में हैं लेकिन देहरादून सचिवालय के अधिकारी उनके सुझाव पर कार्य कर रहे हैं। वह शख्स हैं युद्धवीर सिंह।
जी हां ! युद्धवीर सिंह उत्तराखंड के प्रांत प्रचारक हैं। युद्धवीर सिंह की ताकत की एक छोटी सी झलक पिछले दिनों तब दिखाई दी जब उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में शासन में अपर सचिव जीबी ओली को कुलसचिव का दायित्व दिया गया आयुष मंत्री हरक सिंह रावत ने औली को कुलसचिव बनाए जाने की संस्तुति की और हरवंश सिंह चुगने औली को कुलसचिव बनाने का आदेश जारी कर दिया। किंतु आयुष सचिव हरवंश जी का आदेश एक संयुक्त सचिव ने निरस्त कर दिया।
उत्तराखंड शासन में संयुक्त सचिव एम एम सेमवाल ने औली के कुल सचिव बनाए जाने का आदेश निरस्त कर दिया। भला जो आदेश आयुष मंत्री की संस्तुति और आयुष सचिव के आदेश से जारी हुआ हो, वह एक संयुक्त सचिव के आदेश से कैसे निरस्त हो सकता है !
कुछ तो गड़बड़ है। पर्वतजन ने इसकी तहकीकात की तो उत्तराखंड RSS के प्रांत प्रचारक युद्धवीर सिंह तक जा पहुंचे।इस संवाददाता ने जब युद्धवीर सिंह से बातचीत की तो पता लगा कि उन्होंने सीधे हरवंश सिंह चुग को फोन करके औली को कुलसचिव बनाए जाने के आदेश निरस्त करने को कहा था।
सवाल उठता है कि हरवंश सिंह चुग ने मंत्री के आदेश के ऊपर प्रांत प्रचारक के आदेश को क्यों तरजीह दी ! और प्रांत प्रचारक ने सीधे हरवंश सिंह चुघ को इसके लिए क्यों फोन किया !
प्रांत प्रचारक युद्धवीर सिंह कहते हैं कि “उन्होंने कोई आदेश नहीं दिया। वह सिर्फ सुझाव देते हैं।” भाजपा में RSS का प्रभाव किसी से छुपा नहीं है। सरकार को बहकने न देने के लिए RSS एक प्रभावी संस्था है। किंतु आयुर्वेद विश्वविद्यालय वाले मामले में मसला अलग है। प्रांत प्रचारक युद्धवीर सिंह संघ से जुड़े राजेश अदाना को कुलसचिव बनाने के पक्ष में थे।
राजेश अदाना संघ से जुड़े हैं और RSS की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी रखते हैं। इसलिए प्रांत प्रचारक युद्धवीर सिंह ने औली का आदेश निरस्त करवा दिया। ताकि अदाना को ही कुलसचिव बनाया जा सके।
विभिन्न भर्ती विभिन्न भर्ती घोटाले और तमाम अनियमितताओं से घिरे विश्वविद्यालय में औली को कुलसचिव बनाए जाने के बाद से एक संभावना जगी थी कि शासन के व्यक्ति को रजिस्ट्रार का प्रभार दिए जाने से
संभवत: व्यवस्थाओं में कुछ सुधार आएगा। औली काफी लंबे समय से आयुष विभाग में तैनात हैं और विश्वविद्यालय की गडबडी से भी वाकिफ हैं। किंतु विश्वविद्यालय के ऑटोनोमस बॉडी होने से शासन का सीधा हस्तक्षेप नहीं रहता। कुलसचिव बनाए जाने के बाद से यह उम्मीद जताई जा रही थी कि विश्वविद्यालय में गड़बड़ियों पर रोक लगेगी। किंतु विश्वविद्यालयों में गड़बड़ियों के लिए सीधे-सीधे जिस व्यक्ति पर सवाल उठाए जा रहे हैं, RSS ने उसी व्यक्ति को विश्वविद्यालय का रजिस्ट्रार बनवा दिया।
राजेश अदाना RSS से जुड़े हैं और विश्वविद्यालय में संघ की गतिविधियों को आयोजित कराते रहते हैं। कई कार्यक्रमों में RSS के प्रांत प्रचारक युद्धवीर सिंह भी मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए हैं।
ऐसे में आयुर्वेद जैसी शैक्षणिक संस्था में RSS का दखल काफी बढ़ गया है। राजेश अदाना को पहले आयुर्वेद विश्वविद्यालय में डिप्टी रजिस्ट्रार के पद पर अवैध रूप से तैनात किया गया। अब उन्हें सीधे कुलसचिव बना दिया गया है।
राजेश अदाना उपकुलसचिव के पद के लिए भी यूजीसी द्वारा प्रावधानित योग्यता नहीं रखते। राजेश को उपकुलसचिव भी सीधे शासन के आदेश से बनाया गया था। जबकि आयुर्वेद विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार विश्व विद्यालय स्तर पर विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के तहत गठित चयन कमेटी को इस प्रकार की तैनाती या प्रतिनियुक्ति का अधिकार है। राज्य सदाना मूल रूप से आयुर्वेद चिकित्सालय पौड़ी में तैनात हैं।RSS का दखल देखिए कि पहले इन्हें उपकुलसचिव बनाया गया और फिर बाद मे शासन से आदेश कराया गया।
पहले भी इस प्रकार की दो आदेशों में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने तत्कालीन प्रमुख सचिव आयुष से जवाब मांगा था जिसके कारण उन्हें उस समय अपने आदेश वापस लेने पड़े थे। राजेश अदाना वाले मामले में भी que-warrranto का केस बन सकता है।
नियमों की किस तरह धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, यह इसी बात से समझा जा सकता है कि राजेश अदाना का पिछले 6 महीने से चिकित्सा अधिकारी के रूप में वेतन पौड़ी से ही भुगतान किया जा रहा है। जबकि उनको कार्यमुक्त किए जाने की तिथि से उन्हें वेतन नहीं दिया जा सकता था। यह किस नियम के तहत हो रहा है ! यह भी एक गंभीर जांच का विषय है।
इस पूरे मामले में राजभवन की चिरकाल निंद्रा संदेहास्पद है। और नियम विरुद्ध हो रहे कार्यों के बावजूद भी राजभवन की ओर से कोई कार्यवाही न किया जाना आयुर्वेद विश्वविद्यालय के प्रति राजभवन की उदासीनता को दर्शाता है। राजभवन की भूमिका सफेद हाथी बनकर रह गई है।
इस संबंध में मुख्यमंत्री द्वारा भी कोई कार्यवाही नहीं की गई है।जबकि उनके संज्ञान में यह सारा मामला है। आयुर्वेद विश्वविद्यालय में RSS का बढ़ता राजनीतिक दखल और दिनों दिन बढ़ते घोटालों के बावजूद राजभवन और आयुष मंत्री तथा मुख्यमंत्री की चुप्पी के चलते नुकसान अंततः आयुर्वेद विश्वविद्यालय का होना है, आयुर्वेद को होना है और वहां के छात्रों-कर्मचारियों का होना है। साथ ही आयुष प्रदेश के रूप में उत्तराखंड की छवि भी दिनोंदिन गर्त में जा रही है।