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ऐसा लगा ‘छक्का’!

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दारू-मुर्गा व जेब खर्चा तो विधायक से लेकर प्रधानी तक के चुनाव में भी खूब बांटा जाता है, लेकिन अब जमाना काफी आगे बढ़़ चुका है तो नेताजी ने सोचा कि अबकी बार कुछ नया करके ही बेड़ा पार लगाया जा सकता है। वैसे भी चुनावी महाकुंभ है, क्षेत्र में दो-चार छीटें मार भी दें तो इससे भला उनके खजाने में क्या फर्क पड़ेगा और अगर यह वैतरिणी पार हो गई तो कई पीढिय़ों के लिए खजाना भरा जा सकता है, यही सोचकर उत्तराखंड में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के अंतिम दिनों में प्रत्याशियों ने चुनाव आयोग की तिरछी नजर के बावजूद दिल खोलकर खर्च किया।
इस बीच देखने में आया कि बिना काम-धाम किए ही चुनाव मैदान में उतरे रायपुर से एक पार्टी के उम्मीदवार ने क्षेत्र में पकौड़ों में संभावनाएं देखी और सोचा कि मतदाताओं को अपना नमक खिलाया जाए तो संभव है कि वे उनके साथ नमक हरामी नहीं करेंगे। इस तरह कार्यकर्ता जहां-जहां प्रचार करते, वहां-वहां एक पैकेट पकौड़े थमा देते। बात यहीं तक रुकती तो ठीक था, लेकिन बताते हैं कि इसी क्षेत्र में एक निर्दलीय प्रत्याशी ने लोगों को लुभाने का ऐसा नया तरीका निकाला, जो अभी तक कहीं नहीं देखा गया था। इस प्रत्याशी ने रायपुर विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं की नस पकड़ी और उन्हें एक-एक साड़ी व नाक में पहनी जाने वाली सोने की फूली(नोज़ पिन) बांटकर अपने प्रत्याशी के पक्ष में वोट मांगे। अभी गली-मौहल्लों से कार्यकर्ता सामान बांटकर निकले ही थे कि तभी महिलाएं कहते हुए सुनाई दी कि इन्होंने तो लोगों को लूट-लूट कर अपना खजाना भरा है। इस समय गेंद जनता के पाले में हैं तो क्यों न मौके पर ‘छक्का’ मार दिया जाए।

विधायकी की दारू से पार्षदी का चुनाव!

nukta-cheeni (3)

नेताजी देहरादून की रायपुर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे। नेताजी को पार्टी ने टिकट तो दे दिया, लेकिन एक कालोनी का इलाका उनके लिए थोड़ा अंजान सा था। उन्होंने इलाके के एक छुटभैया नेता को उस एरिया में चुनाव प्रचार का जिम्मा सौंप दिया। अब छुटभैया रोज सुबह-शाम नेताजी के पास जाता और बोलता कि भैया जी बहुत बढिया चल रहा है, मेरे इलाके में तो आपकी लहर है। यह कहकर छुटभैया रोज नेताजी से कई शराब की पेटियां ले जाता रहा। नेताजी भी खुश थे कि यह शराब जरूर रंग लाएगी। मतदान से तीन-चार दिन पहले नेताजी इलाके में होने वाली सभा में भाषण देने के लिए आए तो खाली पड़ी कुर्सियों ने उनके माथे पर काफी बल डाल दिए। उन्होंने अपने जानने वालों से भीड़ न जुटने के बारे में पता किया तो मालूम हुआ कि इस एरिया में नेताजी के नाम की किसी ने दो बूंद भी नहीं चखी। फिर इतनी पेटी दारू उनके कार्यकर्ताओं ने बांटी कहां?
नेताजी को शायद पता नहीं कि छुटभैया यह शराब अगले साल होने वाले नगर निगम के चुनावों के लिए इकट्ठी कर रहा था। छुटभैया पार्षद के चुनाव की भी तैयारी कर रहा है तो सोचा होगा कि शराब पार्षदी के इलेक्शन में काम आएगी। हद तो तब हो गई, जब प्रचार के लिए भी ये छुटभैये सिर्फ उन्हीं घरों में गए, जिनमें नेताजी की पार्टी का झंडा टंगा था। जहां अन्य पार्टियों का झंडा-बैनर देखा तो वहां यह सोचकर नहीं गए कि ये तो दूसरी पार्टी के लोग लगते हैं। अब नेताजी चुनाव हो जाने

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