लीक से हटकर चलने को तैयार नहीं पर्यटन विभाग । पुरखों से चल रही चार धाम यात्रा के अतिरिक्त नहीं बन सके नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन।
गिरीश गैरोला ।
उत्तर प्रदेश से पृथक हुए उत्तराखंड राज्य 18 वें वर्ष में प्रवेश करने के साथ ही वयस्क होने को है किंतु क्या राज्य अपनी जिम्मेदारी खुद संभालने में सक्षम है? अगर नही तो कौन है इसका जिम्मेदार?
राज्य बनने के बाद ऊर्जा और पर्यटन को राज्य की मुख्य आर्थिकी का आधार मानकर चलने वाली सरकारों ने पर्यटन के बढ़ावे के लिए कोई नया काम नहीं शुरू किया। सूबे के कुछ काबिल नौजवान ऑफिसर यदि राज्य हित में कुछ करना भी चाहते हैं तो उसे राजनीति की भेंट चढ़ा दिया जाता है। यही वजह है कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी यहां के काम नहीं आने वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
देश भर की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाई गई बांध परियोजनाओं के जलाशय खाली पड़े हैं। इन जलाशयों में होने वाली जल क्रियाओं के लिए राज्य सरकार के पास कोई योजना तक नहीं है। इसी तरह से पैराग्लाइडिंग और पैरा सोलिंग और पर्वतारोहण पहाड़ों पर पर्यटकों की भीड़ खींच सकती है किंतु इस दिशा में सरकार गंभीर नहीं लगती ।उत्तरकाशी डीएम डॉ आशीष चौहान के निजी प्रयासों से माघ मेले के दौरान मनेरी भाली जलविद्युत परियोजना में वाटर स्पोर्ट्स सुरु करने की कवायद भी राजनीति की भेंट चढ़ गई ।
ये घटनाएं साबित करती हैं कि सूबे की राजनीति हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर चल रही है । पर्यटन विभाग का तो क्या कहना ! चार धाम यात्रा मार्गो पर लगाए गए विभाग के सूचना-पट्ट के भरोसे यदि पर्यटक चलें तो यमुनोत्री की बजाए केदारनाथ पहुंच जाएगा और ऐसा सिर्फ ठेकेदारी में कमीशनबाजी को लेकर हुआ है।
देश का सबसे बड़े टिहरी बांध मे वाटर स्पोर्ट्स के लिए कोई नीति नहीं है और फिलहाल आयुक्त गढ़वाल द्वारा निकाले गए गजट के आधार पर यहां जल क्रीड़ा हो रही है। इसी गजट के आधार पर राज्य के अन्य जिलों में भी नौकायन जलक्रीडा आयोजित कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है ।
आइए आपको बताते हैं कि जल क्रीड़ा में दक्ष होकर नए पर्यटन के इस फील्ड में उतारने के लिए क्या करना होगा।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वाटर स्पोर्ट्स गोवा में भारत सरकार का एक उपक्रम है जो जलक्रीड़ा संबंधित कानून बनाता है और उसको देशभर में इंप्लीमेंट भी करता है। यह संस्थान जल क्रीड़ाओं के लिए व्यक्ति को कड़ा प्रशिक्षण देकर लाइसेंस प्रदान करता है। इसके साथ ही लोगों की सुरक्षा के लिए जलीय उपकरणों की फिटनेस भी समय-समय पर बेहद जरूरी है ।
टिहरी झील प्राधिकरण ने जल क्रीड़ा से संबंधित उपकरणों की जांच के लिए जलीय उपकरणों की जानकारी में दक्ष विपुल धस्माना को अधिकृत किया है। विपुल धस्माना की माने तो किसी भी झील में वाटर स्पोर्ट्स करने से पूर्व पानी की गहराई और पानी के अंदर छुपे हुए रेत बजरी अथवा अथवा पत्थरों के टीले का सर्वे बेहद जरूरी है । उन्होंने बताया कि पेडल बोट और वाटर स्कूटर दो से 3 फीट गहराई में आराम से चलाई जा सकती है किंतु पानी के नीचे आरबीएम रेत बजरी इत्यादि नहीं होना चाहिए क्योंकि रेत बजरी का कण इंजन में चला गया तो इंजन बीच में ही सीज हो सकता है और पर्यटकों की जान पर बन सकती है। वहीं फाइबर ग्लास की बोट के लिए कम से कम 6 फीट गहराई का पानी होना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही नाव को घूमने के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि हाई डेंसिटी पॉलीथिन वाली नाव दो फीट गहराई वाले कम पानी में भी आसानी से चलाई जा सकती है । इसी तर्ज पर टिहरी झील में नौकायन से पूर्व कोटी कॉलोनी क्षेत्र में हाइड्रो ग्राफिक्स सर्वे हुआ था । झील में कोई हादसा न हो इसके लिए बेहद जरूरी है कि झील में तैरने वाले जल उपकरण की स्थिति ठीक हो और उसे चलाने वाला भी इस कार्य में दक्ष हो।