भाजपा में चेहरे पर चुनाव लडऩे न लडऩे की चर्चा के बीच अब खट्टर फार्मूले की चर्चा भी जोरों पर है।
गजेंद्र रावत
उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक किसी चेहरे पर चुनाव लडऩे का निर्णय नहीं किया है। हालांकि इससे पूर्व के तीन विधानसभा चुनाव में सिर्फ २०१२ में ही भारतीय जनता पार्टी ने खंडूड़ी है जरूरी का नारा दिया था। शेष चुनाव में कभी भी किसी को चेहरा नहीं बनाया। वर्तमान हालात में पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक और भगत सिंह कोश्यारी तीनों लोकसभा के सदस्य हैं। इन तीनों को चेहरा बनाने पर भारतीय जनता पार्टी में कोई आम राय नहीं बन पा रही है। जनरल खंडूड़ी ८० पार कर चुके हैं, इसलिए उन्हें चेहरा बनाने की संभावनाएं क्षीण हो चुकी हैं, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी अब ७५ पार के लोगों को सक्रिय राजनीति से दूर रखने का फैसला कर चुकी है।
इसी कारण गुजरात के मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल और केंद्र सरकार में मंत्री नजमा हेपतुल्ला का इस्तीफा करवाया गया, क्योंकि इन दोनों की उम्र भी ७५ वर्ष पूर्ण हो चुकी थी।
रमेश पोखरियाल निशंक और भगत सिंह कोश्यारी के अलावा एक और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं, किंतु उन्हें भी चेहरे के रूप में प्रस्तुत करने की कोई संभावना सामने नहीं दिख रही।
विजय बहुगुणा स्वयं भी विधानसभा चुनाव लडऩे के बजाय अपने छोटे बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से चुनाव लड़ाने के लिए इच्छुक हैं और एक परिवार से दो लोगों को अभी तक की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड में टिकट नहीं दिए तो बहुगुणा की दावेदारी भी स्वत: समाप्त हो जाती है।
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए पांच बार के विधायक हरक सिंह रावत की भी दिली इच्छा है कि वे सारे पदों को तो संभाल चुके हैं, अब एक बार मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल जाए।
पूर्व कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज घोषणा कर चुके हैं कि उनकी पत्नी अमृता रावत रामनगर से ही चुनाव लड़ेंगी। महाराज द्वारा की गई इस घोषणा के बाद यह बात भी साफ है कि महाराज के परिवार में भी दो टिकट नहीं मिलने वाले। केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा और महारानी राज्यलक्ष्मी शाह के भी विधानसभा चुनाव लडऩे की संभावनाएं दूर-दूर तक नहीं हैं। हालांकि टम्टा सोमेश्वर सीट से अपने छोटे भाई के लिए टिकट की पैरवी जरूर करेंगे।
पहली पंक्ति के नेताओं के इस प्रकार विधानसभा चुनाव के चेहरे के रूप में एक प्रकार से अलग होने के बाद भारतीय जनता पार्टी की दूसरी पांत के नेताओं में अब पहली पंक्ति की ओर जोरदार तरीके से आजमाइश होने लगी है।
दूसरी पंक्ति के जिन नेताओं ने अब स्वयं को आगे बढ़ाने के साथ २०१७ में जीतकर आने की संभावनाएं रखने वाले प्रत्याशियों पर नजर रखनी शुरू कर दी है। लगातार तीन बार विधायक बन चुके मदन कौशिक मैदान के सहारे दावेदार बनना चाह रहे हैं तो झारखंड के प्रभारी त्रिवेंद्र रावत भी इस बार कोई मौका नहीं गंवाना चाहते।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट स्वयं आज भी विधायक दल के नेता हैं और उनकी ओर से यह बात प्रचारित की जा रही है कि नेता विधायक दल के कारण उनकी दावेदारी मजबूत रहेगी।
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन रामलाल भी संघ को साथ लेकर उत्तराखंड में खट्टर बनने की राह में आगे बढ़ रहे थे कि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने तेजी से उनके खिलाफ खुलेआम बगावती तेवर दिखाकर रामलाल की राह में शुरुआत में ही रोड़े अटका दिए हैं।
इन सबसे अलग संघ के विश्वसनीय और दशकों से उत्तराखंड में कैडर को तैयार करने में लगे शिवप्रकाश भाजपा के प्रादेशिक नेताओं के झगड़े का फायदा उठाकर खुद को सीएम के लिए प्रोजेक्ट कर सकते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी ने देहरादून की दो विधानसभा सीटों पर बड़ी तेजी से सक्रियता बढ़ाई है। धर्मपुर और रायपुर के बीच जो सर्वे स्वयं बलूनी के लोगों ने करवाए हैं, उनके अनुसार यदि बलूनी रायपुर से विधानसभा चुनाव लड़ें और धर्मपुर से पूर्व विधायक उमेश शर्मा काऊ को लड़वाया जाए तो दोनों सीटें भाजपा के लिए आसान हो जाएंगी।
राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी के देहरादून की विधानसभाओं में चुनावी तैयारियों पर स्थानीय स्तर पर भी चर्चा जोरों पर है कि बलूनी ने देहरादून को रणक्षेत्र बनाने का निर्णय स्वयं नहीं, बल्कि हाईकमान ने उन्हें संकेत दिए हैं कि निकट भविष्य में उन्हें सक्रिय रूप से उत्तराखंड की राजनीति में शामिल होना है। हालांकि बलूनी पहले भी कोटद्वार से दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, किंतु तब उन्हें जीत हासिल नहीं हो सकी।
भारतीय जनता पार्टी के अंदर जिस प्रकार के निर्णय हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर और महाराष्ट्र में देवेंद्र फणनवीश को कुर्सी सौंपकर किए गए, उससे उत्तराखंड स्तर पर भाजपा में इस बात पर भी चर्चा होने लगी है कि क्या उत्तराखंड में भी भारतीय जनता पार्टी चुनाव के बाद किसी ऐसे चेहरे को सामने ला सकती है, जो वास्तव में चौंकाने वाला हो।
हरियाणा और महाराष्ट्र के फार्मूले का असली असर तो चुनाव परिणाम ही बताएगा, किंतु भाजपा के जानकारों का कहना है कि भाजपा हाईकमान हर हाल में उत्तराखंड में सरकार बनाना चाहती है और इसके लिए उसे यदि इन फार्मूलों पर भी काम करना पड़े तो वे पीछे नहीं हटेगी।