दूसरे विभागों के लिए धन की कमी का अड़ंगा लगाने वाला वित्त विभाग अपने लिए कोई नियम नहीं मानता। वित्त ने अपने लिए बगैर जरूरत के मनमाने पद और मनमाने वेतन तय कर रखे हैं।
विनोद कोठियाल
सभी सरकारी और गैर सरकारी योजनाओं पर कुंडली मारे रखने मे माहिर वित्त विभाग अपने लिए कोई नियम कायदे कुछ नहीं मानता। यहां तक कि अपने स्टाफ स्ट्रक्चर को पास कराने के लिए सभी विभागों को कार्मिक की अनुमति अनिवार्य होती है फिर भी वित्त विभाग का कार्मिक अनुमति लेना जरूरी नहीं समझता।
वित्त विभाग की इतनी मनमानी है कि अपने निजी स्वार्थ के लिए विभाग ने अपने विभागीय ढांचे को मंजूरी देने के लिए कार्मिक विभाग से भी अनुमति लेना उचित नहीं समझा। यह वही विभाग है जो किसी अन्य विभाग की पद स्वीकृत की फाइल पर वित्तीय भार का हवाला देकर मामले को और पेचीदा बना देता है।
विभागीय ढांचे के अनुसार मूल पदों की संख्या 35 है, जबकि पदोन्नति करके 86 पद है। वित्त सेवा संवर्ग का 2001 में गठन किया गया, जिसमें वित्त सेवा की सीधी भर्ती व पदोन्नति के मौलिक पद 30 सृजित किये गए। जिसके सापेक्ष 56 पद पदोन्नति के रखे गये। जब पद 30 हंै तो 56 पद पदोन्नति के कैसे संभव है। इतना ही नहीं इनकी सेवा नियमावली के अनुसार अपने संवर्ग मे प्रतिनियुक्ति के 28 पद बनाये हंै। इस प्रकार कुल 87 पद बनाये। फिर 2015 में ढांचे का पुनर्गठन किया गया। उसमें भी बड़ी चालाकी से उन्होंने 188 पद सृजित कराये हैं। जिसमें सचिव एवं विभागाध्यक्ष स्तर के 6 पद, 8900 ग्रेड पेके 17, 8700 ग्रेड पे के 19 पद, 7600 वाले 26 पद, 6600 ग्रेड पे 34 पद, 5400 ग्रेड पे वाले 86 पद सर्जित किए। 60 प्रतिशत दूसरे विभागों में पद बनाये गए, जबकि विभागों द्वारा कोई पद स्थापित नहीं किया गया और न ही मांग की, किंतु गेम अपने अनुकूल था, इस कारण इस प्रकार के अवैध काम करने में वित्त विभाग ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
वित्त की बला विभागों के सर
जिन अधिकारियों को अन्य विभागों में भेजा गया है, न तो विभागों ने इनकी डिमांड की और न ही इन विभागों में इनका कोई पद है। इसके साथ ही जो-जो विभागों में थोपे गए लोग हैं, इनका अपना कोई जॉब चार्ट नहीं है और जिम्मेदारी भी शून्य है। वित्त विभाग की दादागिरी की हद तो तब है, जब विभाग ने अपने जी.ओ. २००५ के नियम ४ में यह दर्शाया कि विभागों में पद न होने पर वित्त विभाग द्वारा दिया जाने वाला पद मान्य होगा। यदि विभागों में इन पदों की आवश्यकता होती तो विभागीय स्टाफ स्ट्रक्चर में इस पद का नाम अवश्य होता। ऐसे न होने से स्पष्ट होता है कि वित्त विभाग द्वारा जबरन विभागों पर ये पद थोपे गए हैं।
विभाग द्वारा अपने लिए सभी नियमों से ऊपर ऐसे नियम बनाए गए हैं कि जो लाभ अन्य विभागों के कर्मचारियों को सेवा के १० वर्षों की सेवा में मिलता है, वित्त विभाग में यह लाभ मात्र पांच वर्षों की सेवा में मिल जाता है। अन्य विभागों में जहां पदोन्नति के अवसर नहीं हैं, उन विभागों में वित्त द्वारा शासनादेश जारी किया गया है कि ऐसे अधिकारियों/कर्मचारियों को जिनकी पदोन्नति के अवसर नहीं है, उनको सेवा में प्रथम १० वर्षों में ६६०० ग्रेड पे और १६ साल में ७६०० ग्रेड पे व २६ साल में ८७०० ग्रेड पे दिया जाएगा, जबकि वित्त सेवा संवर्ग को सेवा नियमावली व ढांचे के अनुसार पांच साल में ६६००, दस वर्षों की सेवा में ७६०० तथा १५ वर्षों की सेवा में ८७०० और २० वर्षों की सेवा में ८९०० तथा २५ वर्ष में १०,००० ग्रेड पे का वेतनमान दिया जा रहा है। एक ही राज्य में समानवेतन समान पद लागू होने पर भी वित्त विभाग को पदोन्नति के अधिक अवसर कैसे प्रदान किए जा रहे हैं, जो सबकी समझ से परे है।
वित्त विभाग का विभागीय ढांचा पीसीएस के ढांचे से भी ऊपर हो गया है। राज्य में सिविल सेवा के ढांचे में साधारण वेतनमान के ७० पद हैं और ठीक उसके ऊपर के पदोन्नति के विभिन्न वेतनमान में ७० पद स्वीकृत हैं, जो कि सौ फीसदी है, जबकि वित्त सेवा के पदोन्नति में २८० प्रतिशत है, जबकि राज्याधीन अन्य से सेवा में २० से ४० प्रतिशत तक ही पदोन्नति के अवसर हैं।
किस काम के वित्त नियंत्रक
वित्त विभाग द्वारा मनमाने तरीके से अन्य विभागों पर थोपे गए वित्त नियंत्रकों की कार्य प्रणाली पर अब सवाल उठने लगे हैं। किसी भी विभाग में वित्त नियंत्रक के पास आहरण का अधिकार नहीं है। विभागाध्यक्ष और ट्रेजरी के हस्ताक्षर से ही धन का आहरण किया जाता है। ट्रेजरी को किसी भी विभाग के बिलों पर गलतियां निकालने का पूर्ण अधिकार है और कई बार इस चक्कर में विभागों से भुगतान भी नहीं हो पाता। अब सवाल यह है कि जब वित्त नियंत्रक के हस्ताक्षर के बिलों को जिला कोषागार लटकाता है तो फिर इस पद की आवश्यकता ही क्या है।
जिन विभागों में घोटाले हुए हैं, इससे संबंधित बिलों को वित्त नियंत्रक की स्वीकृति के बिना पास भी नहीं किया गया होगा तो फिर ऐसी दशा में घोटालों से वित्त नियंत्रक को भी बराबरी का भागीदार क्यों नहीं माना जाना चाहिए। टैक्सी बिल घोटाला हो या दवा खरीद या अन्य सभी प्रकार की गड़बडिय़ों के लिए फाइनेंस कंट्रोलर को दोषी माना जाना चाहिए, क्योंकि सभी गड़बडिय़ों के बिलों की स्वीकृति वित्त नियंत्रक द्वारा ही दी जाती है।
कुछ विभाग ने अपने स्ट्रक्चर में फाइनेंस अधिकारियों के पदों का उल्लेख किया है। जैसे सिंचाई विभाग के विभागीय ढांचे में वित्त नियंत्रक व ७६०० ग्रेड पे का एक पद सृजित है। फिर भी वित्त विभाग ने जबरन १०,००० ग्रेड पे का वित्त नियंत्रक सिंचाई में भेजा है। अब सवाल यह है कि जब ७६०० ग्रेड पे का व्यक्ति पहले से कार्यरत है तो १०,००० ग्रेड पे का क्यों भेजा? इससे प्रदेश पर अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ रहा है, जो कि प्रदेशहित में नहीं है, जबकि उत्तराखंड के विभिन्न विभागों में वित्त सेवा के नियमित पदों के अतिरिक्त जो पद नि:संवर्गीय व प्रतिनियुक्ति के पद सृजित किए गए हैं, वे सभी पद काल्पनिक रूप से सृजित हैं, जबकि वित्त विभाग को संबंधित विभागों से प्रस्ताव मांगकर कार्मिक व वित्त विभाग से परीक्षण कराने के उपरांत मुख्य सचिव तथा मंत्रिमंडल के अनुमोदन के उपरांत पारित किया जाना चाहिए था, जो कि नहीं किया गया। इस प्रकार वित्त विभाग के शासनादेश २६ मई २०११ के नियम-३ व आदेश संख्या ०७२ दिनांक २ मई २०१५ के नियम ४ में भी स्पष्ट किया गया है कि विभागों में पदनामों में भिन्नता होने पर विभाग का पद नाम मान्य होगा। अत: उक्त शासनादेश से पुष्टि हुई है कि प्रशासनिक विभाग के प्रस्ताव की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह एक पक्षीय निर्णय है, जो कि वित्त विभाग की लापरवाही व मनमानी को दर्शाता है।
जीएमवीएन, केएमवीएन के अलावा बहुत ऐसे डिपार्टमेंट हैं, जहां जीएम फाइनेंस, अकाउंट अफसर, ऑडिट अफसर आदि वित्त से संबंधित कई पद पहले से ही भरे हैं। फिर भी वित्त विभाग ने एक पद ऊपर से और थोप दिया। इससे सभी अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए गेंद एक दूसरे के पाले में डाल रहे हैं। पहले एक ही व्यक्ति की जिम्मेदारी थी तो अपनी जिम्मेदारी होने से कार्यों का निर्वहन सही प्रकार से होता था। जीएमवीएन में अंतर्राष्ट्रीय योगा फेस्टिवल में हर वर्ष कई कामों को बिना टेंडर के कराया जाता है। कुछ दिन खूब शोर होता है, फिर बिलों का भुगतान भी हो जाता है। अब सवाल यह है कि जब अंधेरगर्दी ही होनी है तो वित्त नियंत्रक का क्या काम रह जाता है!
बदल डाला कैबिनेट का फैसला
वर्ष २०१५ में नए ढांचे के गठन के लिए वित्त विभाग ने विभागीय स्ट्रक्चर को कैबिनेट में रखा, जिसमें तीन पद सचिव स्तरीय १०,००० ग्रेड पे के थे। प्रस्ताव में विद्यालयी शिक्षा, चिकित्सा स्वास्थ्य व तकनीकि विश्वविद्यालय के थे, परंतु कैबिनेट की मंजूरी के बाद एक पद सिंचाई विभाग के लिए सृजित किया गया। इतना ही नहीं, उपरोक्त प्रस्तावित पदों में से विद्यालयी शिक्षा का पद लोनिवि को दे दिया गया। इस नोट शीट पर बाद में हाथ से कटिंग की गई है। इसकी शिकायत जब राजभवन पहुंची तो गवर्नर ने इसे काफी गंभीरता से लिया और मुख्य सचिव को कार्यवाही के निर्देश दिए। उपरोक्त प्रस्ताव को कैबिनेट में रखने से पहले गोपन अनुभाग द्वारा भी इस प्रस्ताव पर आपत्ति की गई थी।
”विभागों में बिलों से संबंधित गड़बडिय़ों को वित्त नियंत्रक अपने स्तर से सुधार सकते हैं। वित्त नियंत्रक भी विभागाध्यक्ष के अधीन कार्य करते हैं। कार्य अधिक होने से सभी बिलों को चैक करना वित्त नियंत्रक के लिए भी संभव नहीं है।”
– अमित नेगी, सचिव वित्त
”विभागों में वित्तीय अनियमितता रोकने व वित्तीय हस्त पुस्तिका में कोई गड़बड़ी न हो, यह देखने का कार्य वित्त नियंत्रक का है। जहां तक वित्त विभाग के ढांचे का सवाल है, वह मेरे संज्ञान में है। हम इसे दोबारा रिस्ट्रक्चर कर रहे हैं। पूर्व में हुई विसंगितयों को ठीक किया जाएगा।”
– प्रकाश पंत वित्त मंत्री, उत्तराखंड सरकार