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गुब्बारा नहीं, इलाज थमाइए

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दून अस्पताल में मरीजों के लिए पर्याप्त बेड और बजट नहीं हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने एक एनजीओ को गुब्बारा नाम की योजना के लिए करोड़ों रुपए के साथ अस्पताल भवन की एक पूरी मंजिल सौंप रखी है।

अमर सिंह धुंता

दून अस्पताल में आए दिन मरीजों को हो रही परेशानियां समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं, किंतु प्रशासन कुछ ठोस उपाय नहीं कर पा रहा है। दून अस्पताल को मेडिकल कॉलेज का दर्जा मिलने के बाद से जगह और स्टाफ की भी कमी हो गई है। मेडिकल कॉलेज के मानकों के कारण मरीजों के दो बैड के बीच में एक निश्चित दूरी रखना आवश्यक है। इसलिए अस्पताल प्रशासन ने १०० बैड हटाकर डालनवाला स्थित गांधी नेत्र चिकित्सालय में रखवा दिए हैं, किंतु यहां पर भी अन्य कोई व्यवस्था न होने के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
एक ओर अस्पताल प्रशासन ने बेड की संख्या कम कर दी है, वहीं एक एनजीओ लतिका राय मेमोरियल फाउंडेशन को २४०० वर्गफीट जगह नि:शुल्क बिजली पानी की सुविधा के साथ उपलब्ध कराई गई है। इतनी जगह के साथ-साथ इस एनजीओ को करोड़ों रुपए का अनुदान दिया जा रहा है। यह बजट मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा दून चिकित्सालय को उपलब्ध कराया जाता है। वहीं से यह सीधे उक्त सोसाइटी को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
अब तक करोड़ों स्वाह
वर्ष २०११ से लेकर २०१४ तक सरकार इस एनजीओ को ४ करोड़ ६१ लाख ४० हजार की फंडिंग कर चुकी है। यह एनजीओ मंदबुद्धि बच्चों को चिकित्सा संबंधी परामर्श देने के लिए नियुक्त किया गया है, किंतु इस पर हो रहे भारी भरकम खर्च के अनुसार औसतन एक बच्चे पर प्रति परामर्श १६२८० रुपए खर्च किए जा रहे हैं।
इस संवाददाता ने सूचना के अधिकार में प्राप्त इन सूचनाओं के आधार पर उत्तराखंड मानवाधिकार आयोग में भी अस्पताल की इस व्यवस्था को ठीक करने के लिए अपील लगाई थी, किंतु आयोग के आदेशों के बाद भी अस्पताल प्रशासन इस मामले में लापरवाह बना हुआ है।
फिर इतना खर्च क्यों
गौरतलब है कि उक्त एनजीओ में पंजीकृत बच्चों के टेस्ट आदि का खर्च दून चिकित्सालय द्वारा वहन किया जाता है तथा अन्य व्यय जैसे कि आने-जाने, रहने-खाने और दवाइयों आदि का खर्च बच्चे के मां-बाप द्वारा वहन किया जाता है। इसके बाद भी लतिका राय मेमोरियल फाउंडेशन को दून चिकित्सालय द्वारा २०११ में ८५ लाख ४२ हजार, वर्ष २०१२ में ९४ लाख ७० हजार, वर्ष २०१३ में ५४ लाख ७१ हजार तथा वर्ष २०१४ में २ करोड़ २६ लाख ५७ हजार का अनुदान दिया गया है। यदि इसमें दी गई नि:शुल्क सुविधाओं का खर्च जोड़ दिया जाए तो एनजीओ को मिलने वाले अनुदान का खर्च कहीं अधिक हो जाएगा।
खाता न बही
इस संवाददाता द्वारा सूचना के अधिकार में सवाल उठाने पर २९ सितंबर २०१५ को डा. खत्री ने प्रथम तल पर स्थापित इस गुब्बारा केंद्र का निरीक्षण किया था। जिसमें ११ में से ९ स्टाफ उपस्थित थे और २ अवकाश पर थे, जबकि कुल ५ बच्चे गुब्बारा केंद्र में उपस्थित थे।
जब इस एनजीओ से सूचना के अधिकार में जानकारी मांगी गई तो उन्होंने अनुमान के आधार पर सूचना उपलब्ध कराई। एक हकीकत यह भी है कि आय-व्यय का ब्यौरा न तो अस्पताल प्रशासन द्वारा रखा जाता है, न ही इसका कोई रिकार्ड एनजीओ के पास उपलब्ध है।
दून ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के निदेशक ने अस्पताल प्रशासन को यह निर्देश दिए थे कि गुब्बारा केंद्र का समय-समय पर आकस्मिक निरीक्षण कराया जाए। जिसमें स्टाफ एवं बच्चों की उपस्थिति के साथ-साथ उनके क्रियाकलापों का विवरण भी रखा जाए। इसके अलावा गुब्बारा केंद्र में तैनात अधिकारी एवं कर्मचारियों की योग्यता एवं उनकी सक्षमता का सत्यापन करने के भी निर्देश दिए थे, किंतु शायद ही कभी ऐसा निरीक्षण होता है।
इस केंद्र के नोडल अधिकारी डा. एन.एस. खत्री हैं, किंतु उन्होंने कभी ऐसा निरीक्षण जरूरी नहीं समझा।
दून अस्पताल में जगह की कमी और भारी भरकम खर्च को देखते हुए अस्पताल प्रशासन के इस गठबंधन पर सवाल उठ रहे हैं।

”हम गुब्बारा की समीक्षा कर रहे हैं। गड़बड़ी हुई तो कार्रवाई होगी।”
सीएमओ, देहरादून

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