दीपक भट्ट
मेरी मुलाकात एक ऐसी शख्सियत से हुई जो एक पेशेवर हल लगाने वाले पुरुष से कम नहीं, जनपद रुद्रप्रयाग के तहसील बसुकेदार मुख्यालय के पास ग्राम क्यार्क बरसूडी की निवासी 50 वर्षीय महिला आशा देवी महिला सशक्तिकरण की एक उदाहरण भर नहीं है।
यह लौह महिला उस लोहे के हल जैसे मजबूत इरादे रखती है जो पलायन से उपजे हालात व आजीविका की चुनौती के समान बंजर धरती को चीरकर उस पर अपने मेहनतकश हाथों व इरादों से जीवन संघर्ष की कहानी लिख रही है ।
मेरे साथ छोटी सी बातचीत व ग्रामवासियों से पता चला कि यह लम्बे समय से हल लगाती हैं। आमतौर पर पहाड़ हो या मैदान हर जगह हल जोतना पुरूष का ही काम है , लेकिन महिलाएँ अन्तरिक्ष मे पहुँच सकती है और हल भी जोत सकती है।
हालाँकि हल जोतना महिलाओं के लिए थोड़ा ज्यादा कठिन है ये इसलिए कि अन्तरिक्ष पहुँचना सबसे उंचे दर्जे का काम है, और किसी महिला द्वारा हल जोतना ग्रामीण समाज के बीच दुस्साहस भरा काम है, आशा दीदी ने भी मजबूरी मे सही लेकिन यह दुस्साहस भरा काम बहुत पहले शुरू कर दिया था, जो अब आम बात हो चुकी है।
मेरे लिए आश्चर्य महिला का हल लगाना नहीं, आश्चर्य था परफेक्ट हलिया की तरह दीदी का स्यूं पर स्यूं व बैलों को परफेक्ट ड्राईव करना। मैंने जिज्ञासावश खेत में जाकर इतना ही पूछा दीदी तुम क्यों लगा रही हो हल! पता चला इकलौता लड़का कमाने मुम्बई गया है, और गांव में हल लगाने की दिन दिहाडी 500 रूपये हो गयी है , और मे तो वैसे भी हल जोतना जानती हूँ। हमारे पहाड़ की इस सशक्त महिला को नमन।
आज मुझे अपने गांव की स्वर्गीय कल्दी दीदी की याद आई , उसकी हल जोतने वाली फोटो मेरे मित्र शिवप्रसाद सेमवाल संपादक पर्वतजन ने कवरस्टोरी बनाकर छापा था , मैं मन ही मन इस दरकार के साथ कि हमारे पहाड़ की यही महिलाएँ हैं जो पलायन से लड़ रही हैं , जीवन की चुनौती के सम्मुख डटकर संघर्षरत हैं, अगर कोई सुने तो यही सम्मान की असली हकदार हैं । यही गौरा देवी , तीलुरौतेली, टिंचरी माई की तरह उत्तराखंड की हिफाजत करेंगी।