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दौ सौ में ‘श्रमिक कल्याण’!

December 6, 2016
in पर्वतजन
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श्रमिकों के लिए निर्धारित कल्याण कोष में एक अरब से भी अधिक धन मौजूद होने के बावजूद भी श्रमिकों के कल्याण के लिए चिंतित नहीं है श्रम विभाग

प्रमोद कुमार डोभाल

उत्तराखंड सरकार द्वारा श्रमिकों के कल्याण को लेकर यूं तो बड़ा प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, लेकिन हकीकत में श्रमिकों का कल्याण होता नहीं दिखाई दे रहा। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एक श्रमिक को चिकित्सा सहायता के रूप में मात्र दो सौ रुपए की मदद की गई है। यह बात आर्थिक विश्लेषकों के भी गले नहीं उतर पा रही कि आखिर एक व्यक्ति को आर्थिक सहायता के नाम पर मात्र दो सौ रुपए क्यों थमा दिए गए होंगे? जबकि श्रमिकों के कल्याणार्थ 1 अरब ३६ करोड़ रुपए का भारी-भरकम फंड है, लेकिन उसमें से मात्र २३ करोड़ 92 लाख रुपए ही श्रमिकों के कल्याण पर खर्च किए गए।
इस संवाददाता ने सूचना का अधिकार के तहत जब इस संबंध में सूचना मांगी तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। सूचना के अनुसार सरकार के पास श्रमिकों के कल्याण के लिए ब्याज सहित कुल 1 अरब 36 करोड़ रुपए का फंड है। यह फंड पंजीकृत पात्र श्रमिकों के हित में संचालित विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं जैसे- ६० वर्ष की आयु पूर्ण करने पर पेंशन, कामगारों की मकान की खरीद/निर्माण को धन, निशक्तता होने पर पेंशन, कार्य के दौरान दुर्घटना या मृत्यु होने पर मुआवजा, अन्त्येष्टि संस्कार के लिए धन की व्यवस्था, चिकित्सा सहायता, कामगार के बच्चों की शिक्षा सहायता, टूल किट, दो पुत्रियों के विवाहोपरांत आर्थिक सहायता, प्रसूति प्रसुविधा, साइकिल व सिलाई मशीन, सौर ऊर्जा, छाता, श्रमिकों का कौशल उन्नयन, सामुहिक बीमा, शौचालय निर्माण हेतु धन देने आदि के संचालन में खर्च किया जाता है।
श्रम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पात्र २४०६२ निर्माण श्रमिकों की टूल्स के रूप में १० करोड़ ३८ लाख 15 हजार 589 रुपए की सहायता की गई। ६२२ श्रमिकों को पुत्रियों के विवाह हेतु 3 करोड़ 17 लाख 22 हजार, ८० श्रमिकों को मृत्योपरांत ४० लाख, १२ श्रमिकों को ६० हजार रुपए की अन्त्येष्टि सहायता, बच्चों की शिक्षा के लिए ३७९२ श्रमिकों को १ करोड़ ७२ लाख, ५८ हजार ८८७ रुपए, प्रसूति प्रसुविधा की मद में ३७ श्रमिकों को 1 लाख 85 हजार, ७९१४ श्रमिकों को २ करोड़ २३ लाख १७ हजार ८८७ रुपए सिलाई मशीन की सहायता, जबकि १६ हजार १३९ श्रमिकों को ५ करोड़ ९२ लाख १६ हजार १९० रुपए की साइकिल वितरित, १०० श्रमिकों को सौर ऊर्जा सहायता के लिए २ लाख ९५ हजार रुपए तथा देहरादून जनपद में निर्माण श्रमिकों के कौशल उन्ननयन के लिए ८९ श्रमिकों पर ३ लाख ७२ हजार २४० रुपए खर्च किए।
श्रमिक हितों की पैरवी करने वाले जानकारों की मानें तो उनके अनुसार उत्तराखंड सरकार आगामी विधानसभा चुनाव के नफे-नुकसान की बारीकी से आंकलन कर चुकी है। अब चूंकि प्रदेश(विशेषकर मैदानी जिलोंं) में बड़ी संख्या में श्रमिक वोटर हैं तो सरकार भी इनसे किसी भी तरह का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। यही कारण है कि श्रमिकों की कल्याणकारी योजनाओं का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार करवाया जा रहा है, लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं। अगर वाकई श्रमिक हितों को इतनी तवज्जो दी जाती तो एक श्रमिक को आखिर २०० रुपए चिकित्सा लाभ के लिए क्यों थमाए जाते। यह भी सर्वविदित है कि २०० रुपए में डॉक्टर की फीस भी नहीं चुकाई जा सकती है। ऐसे में सरकार द्वारा श्रमिकों के कल्याण को लेकर यह हवाई घोषणाएं ही अधिक प्रतीत होती हैं।
उत्तराखंड में हजारों निर्माण कार्य पूरा हो चुके हंै और इससे ज्यादा निर्माणाधीन हंै।
नियमानुसार इनसे टैक्स के रूप में प्रति निर्माण कार्य की कुल लागत का एक प्रतिशत कामगार फंड में जमा किए जाने की अनिवार्यता रखी गई है। उदाहरण के लिए मान लिया जाए कि एक ग्रुप हाउसिंग में लगभग १०० फ्लैट्स हैं। एक फ्लैट की कीमत करीब ४० लाख रु. होगी तो उसका एक प्रतिशत के हिसाब से ४० हजार रुपए होते हैं।
इसी तरह उस बिल्डिंग में १०० फ्लैट्स हैं तो उन सभी के ४०००० की दर से ४० लाख रुपए का फंड कामगार फंड में जुड़ जाएगा। लेकिन राज्य बनने से अब तक किसी भी सरकार ने स्वार्थ वश इसके लिए कोई मानक निर्धारित नहीं किया। परिणामस्वरूप देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर जैसे मैदानी जिलों में ही सैकड़ों इमारतें और बनी इसके निर्माणकर्ता मोटा मुनाफा लेकर यहां से खिसक गए। ऐसे में सरकार अब उन बिल्डरों से वह टैक्स नहीं वसूल पाएगी।
इस तरह बिल्डरों को यह छूट देकर सरकार भी कहीं न कहीं कामगार फंड पर अप्रत्यक्ष रूप से चूना लगा रही है। जिसका प्रभाव निश्चित रूप से श्रमिकों के लिए बने कल्याण कोष पर पड़ेगा और उनके कल्याण के लिए धन की कमी हो जाएगी।]
अगर वाकई श्रमिक हितों को इतनी तवज्जो दी जाती तो एक श्रमिक को आखिर २०० रुपए चिकित्सा लाभ के लिए क्यों थमाए जाते। यह भी सर्वविदित है कि २०० रुपए में डॉक्टर की फीस भी नहीं चुकाई जा सकती है। ऐसे में सरकार द्वारा श्रमिकों के कल्याण को लेकर यह हवाई घोषणाएं ही अधिक प्रतीत होती हैं।


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