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भाजपा के

ढेंचा बीच घोटाले

पूर्व राज्यमंत्री ने की सरकार बर्खास्तगी की मांग

ढेंचा बीच घोटाले को लेकर सीधे मुख्यमंत्री को ही लपेटे में ले लिया

त्रिपाठी जांच आयोग की सिफारिशों के आधार पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ कार्यवाही किए जाने की मांग उठने लगी है। जनसंघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने ढेंचा बीच घोटाले को लेकर सीधे मुख्यमंत्री को ही लपेटे में ले लिया। उन्होंने सवाल उठाया है कि जब हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है तथा त्रिपाठी

ढेंचा बीच घोटाले

जांच आयोग ने भी ढेंचा बीज घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ तीन बिंदुओं पर कार्यवाही की सिफारिश की है तो फिर उत्तराखंड शासन के कुछ अधिकारी एक कमरे में बैठकर इस मामले में क्लीन चिट कैसे दे सकते हैं!
गौरतलब है कि त्रिपाठी जांच आयोग की सिफारिशों का अध्ययन करने के लिए मौजूदा सरकार ने एक और कमेटी बनाई। इस कमेटी ने त्रिपाठी जांच आयोग की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए एक एक्शन टेकन रिपोर्ट सदन में रखी और इसमें सभी उच्चाधिकारियों को

क्लीनचिट देते हुए केवल निचले दर्जे के विभागीय अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही जारी रखी।
पाठकों की जानकारी के लिए बता दें कि त्रिपाठी जांच आयोग ने तीन बिंदुओं पर त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ कार्यवाही की सिफारिश की है। पहला बिंदु यह है कि इस बीच घोटाले में शामिल कृषि अधिकारियों का निलंबन और फिर उस आदेश को मनमाने तरीके से खुद ही पलट देना। दूसरा बिंदु है कृषि सचिव की भूमिका की जांच विजिलेंस से कराए जाने के संबंध में अस्वीकृति दर्शाना। तीसरा बिंदु है बीज डिमांड प्रक्रिया सुनिश्चित किए बिना अनुमोदन करना। इन तीनों बिंदुओं को आयोग ने कार्य नियमावली 1975 का

ढेंचा बीच घोटाले

उल्लंघन माना है और आयोग ने श्री रावत के खिलाफ सिफारिश की है कि श्री रावत प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 की धारा 13(1) (डी) (III) के अंतर्गत आते हैं और सरकार को उक्त तथ्यों का परीक्षण कर कार्यवाही करने की सिफारिश की गई थी।

ढेंचा बीच घोटाले

रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि ढैंचा बीज मिलीभगत कर टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से 3839/- कुंतल की दर से खरीदा गया, जबकि वही बीज कृषि उत्पादन मंडी समिति, हरिद्वार अथवा खुले बाजार में उस वक्त 1538/- कुंतल की दर पर उपलब्ध था।
उक्त ढैंचा बीच निधि सीड्स कारपोरेशन, नैनीताल से खरीदा गया, जबकि राज्य/केंद्रीय एजेंसियों के पास पर्याप्त मात्रा में बीज उपलब्ध था। उक्त बीज खरीद की रवानगी निधि सीड्स द्वारा ट्रकों से दर्शायी गई, जबकि अधिकांश ट्रकों की एंट्री व्यापार कर चौकियों में कहीं भी दर्ज नहीं है।
त्रिपाठी जांच आयोग से लेकर हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका और

अब जनसंघर्ष मोर्चा के आरोपों में एक बात कॉमन है कि तत्कालीन कृषि मंत्री, कृषि सचिव और निदेशक कृषि को बचाते हुए इस मामले में सिर्फ छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया गया है। अब सभी की नजरें इस मामले में हाईकोर्ट में लंबित एक जनहित याचिका में होने वाले निर्णय पर टिकी हैं। जब तक सीएम को इस मामले में हाईकोर्ट से क्लीनचिट नहीं मिल जाती, तब तक विपक्षी दलों के पास सियासत का एक मुद्दा जिंदा रहेगा।

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