केंद्र में मोदी सरकार में मंत्री बनने से पिछड़े पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक फिर मुख्यमंत्री बनने के लिए आतुर हैं, किंतु मौका और दस्तूर दोनों होने के बावजूद निशाना आसान नहीं है।
गजेंद्र रावत
१९ अक्टूबर २०१६ को करवाचौथ व्रत के दिन प्रदेश भाजपा कार्यालय में पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक गाजे-बाजे के साथ तो पहुंचे, किंतु इस बार वो बात नहीं थी। निशंक युगाण्डा और दुबई में अपने कथा साहित्य को लेकर सम्मानित होने के बाद पहली बार देहरादून पहुंचे थे। एयरपोर्ट से लेकर प्रदेश भाजपा कार्यालय तक निशंक के साथ भीड़ तो थी, किंतु उस भीड़ में उन चेहरों को आम जनमानस ढूंढता रह गया, जो या तो निशंक के कद के होते या फिर वो जो निशंक के बराबर प्रतिद्वंदी होते।
एयरपोर्ट से लेकर प्रदेश कार्यालय तक दो-दो फीट के छोटे-छोटे बैनर और उन पर छपी छुटभैयों की छोटी-छोटी खिचड़ीनुमा फोटो बता रही थी कि ६० साल की उम्र के करीब पहुंचते-पहुंचते अब डा. रमेश पोखरियाल निशंक बाकी दिग्गज अपने लिए खतरा मानने लगे हैं। इन छोटे-छोटे पोस्टर-बैनरों पर युगाण्डा और दुबई में डा. रमेश पोखरियाल निशंक सम्मानित होने को उत्तराखंड के सम्मान से जोड़कर छपवाया गया था। अनुभवहीन नई फौज यह भी नहीं समझ पाई कि युगाण्डा और दुबई उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य नहीं, बल्कि अलग देश हैं। नए कार्यकर्ताओं की इस फौज को यदि इतना आभास होता तो निश्चित रूप से वे इसे भारतवर्ष के सम्मान से जोड़ते, न कि सिर्फ उत्तराखंड लिखकर निशंक का कद और सीमित करते।
युगाण्डा और दुबई से सम्मानित होकर लौटने से पहले एक बार निशंक तब मॉरीशस से सम्मानित होकर लौटे थे, जब सूबे में जनरल भुवनचंद्र खंडूड़ी का पहला कार्यकाल पूरे शबाब पर था और निशंक स्वास्थ्य मंत्री थे। निशंक के मॉरीशस जाते ही आनन-फानन में वीरचंद्र सिंह गढ़वाली आयुर्विज्ञान संस्थान का आनन-फानन में उद्घाटन कर दिया गया, ताकि स्वास्थ्य मंत्री के नाते कहीं उद्घाटन के पत्थर पर निशंक का नाम प्रकाशित न करना पड़े।
मॉरीशस में रहकर ही निशंक ने ठोस रणनीति बनाई और हिंदुस्तान लौटने से पहले एक ऐसा राजनैतिक टै्रक तैयार किया, जिसने बाद में उन्हें ऊंचाईयां दिलवाई। मॉरीशस से लौटने के बाद निशंक का काफिला सीधे देहरादून के पैसिफिक होटल में पहुंचा तो वहां पर समाज के तमाम लोगों के साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, हरबंस कपूर, मुन्ना सिंह चौहान से लेकर दो दर्जन विधायक उपस्थित थे।
निशंक के सम्मान समारोह को उस दिन सम्मान समारोह से ज्यादा श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के उद्घाटन से निशंक को वंचित करने पर फोकस किया गया। एक-एक वक्ता जो कि सत्ताधारी दल के मंत्री और विधायक थे, ने निशंक तुम बढ़े चलो, की तर्ज पर निशंक को उनकी क्षमता याद दिलाई।
उक्त कार्यक्रम के कुछ दिन बाद ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम में प्रदेश भारतीय जनता पार्टी कार्यसमिति की बैठक हुई और इसके दो दिन बाद सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के ३० विधायक भुवनचंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग को लेकर दिल्ली पहुंच गए।
विधायकों की यह दिल्ली दौड़ तब जाकर शांत हुई, जब दिल्ली से घोषणा हुई कि उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक होंगे। उस दिन मुख्यमंत्री पद से हटने वाले जनरल भुवनचंद्र खंडूड़ी ने भी निशंक को आशीर्वाद देकर शुभकामना प्रदान की थी।
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी निशंक का साहित्य लेखन जारी रहा। उनकी अब तक ५५ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
निशंक के मन में मुख्यमंत्री बनने की टीस आज भी है, क्योंकि जिस प्रकार वे असमय मुख्यमंत्री बने, उसी तरह हटा भी दिए गए। उत्तराखंड में किसी चेहरे पर चुनाव लडऩे और न लडऩे पर अभी आखिरी फैसला नहीं हुआ है। भाजपा हाईकमान की ओर से अभी तक सामुहिक नेतृत्व में चुनाव लडऩे की बात की जा रही है। डा. रमेश पोखरियाल निशंक की ओर से भी कोशिश जोरों पर है कि किसी तरह एक बार फिर उस खोई हुई कुर्सी को पाया जाए।
राजनीतिक नैपथ्य में चल रहे निशंक पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष अपना लोहा मनाने में सफल रहे। दरअसल नीति आयोग के आंकड़ों पर आधारित राज्य गठन से लेकर वर्ष २०१४ तक विकास के विभिन्न मानकों पर उत्तराखंड के सभी मुख्यमंत्रियों की क्षमताओं को लेकर एक तुलनात्मक अध्ययन किया गया था। इसमें नीति आयोग के आंकड़ों के आधार पर बनाए गए ग्राफ में लगभग हर पैमाने पर निशंक का कार्यकाल सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से इक्कीस था। निशंक के कार्यकाल के दौरान वर्ष २००९-१० में सभी मानकों पर 7 से लेकर १० प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि उससे पहले और उसके बाद अन्य मुख्यमंत्रियों का प्रदर्शन काफी नकारात्मक रहा।
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री ने इन आंकड़ों को काफी रुचि के साथ देखा और निशंक नरेंद्र मोदी के समक्ष अपनी योग्यता सिद्ध करने में सफल भी रहे। वर्तमान में एक ओर भाजपा में अब चार-चार पूर्व मुख्यमंत्री हैं तो दूसरी ओर अजय भट्ट से लेकर संघ के चहेते चेहरे भी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की लाइन में हैं। ऐसे में निशंक के लिए संघर्ष पहले के मुकाबले काफी चुनौतीपूर्ण हो चुका है।
भाजपा हाईकमान की ओर से अभी तक सामुहिक नेतृत्व में चुनाव लडऩे की बात की जा रही है। डा. रमेश पोखरियाल निशंक की ओर से भी कोशिश जोरों पर है कि किसी तरह एक बार फिर उस खोई हुई कुर्सी को पाया जाए।