आप भी देखिए कि निजी स्कूलों से जमकर लुट जाने के बाद अभिभावकों के पक्ष में शिक्षा विभाग के अधिकारी किस तरह की ड्रामेबाज बयानबाजी करते हैं। पौड़ी के शिक्षा अधिकारी द्वारा जारी यह पत्र इस नाटक का पर्दाफाश करने के लिए काफी है।
बड़े अधिकारी और नेता चाहे राज्य में कहीं भी पोस्टेड हो, बच्चे तो अधिकांश के देहरादून के प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ रहे हैं। ऐसे में जिसके हाथ में शिक्षा माफिया का खेल बिगाडऩे की जितनी ताकत होती है, वह उसी अनुपात में अपना एडमिशन कोटा फिक्स लेता है। जब स्कूलों में एडमिशन हो रहे होते हैं, अभिभावक महंगी किताबों और ड्रेस में लुट रहे होते हैं, तब कोई कुछ नहीं बोलता। जब एडमिशन सीटें फुल हो जाती हैं और क्लास सुचारू रूप से चलने लगती हैं तो एक महीने बाद अभिभावक संगठन शिक्षा महकमे से जुड़े मंत्री, नेता और अफसर बयानवीर बन जाते हैं। फिर फीस वृद्धि से लेकर तमाम तरह के उत्पीडऩ वाले ज्ञापन मंत्रियों और अफसरों सहित अखबार वालों तक थमाए जाते हैं और अफसर भी स्कूलों को नियम-कायदों का पालन करते हुए सीमा में रहने का आदेश देने वाले फरमान जारी करते हैं।
पिछले दिनों भी कुछ ऐसा ही हुआ। एडमिशन होने के बाद अभिभावक संगठनों ने शिक्षा मंत्री को ज्ञापन पकड़ाए। शिक्षा मंत्री ने तुरंत ऐलान किया कि अगले सत्र से कोई मनमानी फीस नहीं बढ़ाएगा, न ही कैपिटेशन फीस ली जाएगी, लेकिन मंत्री जी को यह कौन समझाए कि इस तरह के आदेश तो पहले ही मानवाधिकार आयोग से लेकर शिक्षा विभाग तक पिछले साल ही जारी कर चुके हैं। फिर अगले साल से ये नियम लागू करने की बात कहने का क्या औचित्य?
पौड़ी के मुख्य शिक्षा अधिकारी एम.एस. रावत ने १८ अप्रैल को तमाम स्कूलों के लिए तमाम स्कूलों के लिए फरमान जारी किया कि यदि अभिभावकों का शोषण किया गया तो विद्यालय की मान्यता रद्द करने सहित तमाम कार्यवाही की जाएगी, किंतु अखबारों में बयान देने के बाद ढाक के वही तीन पात हो जाते हैं।
इन स्कूलों के शोषण के खिलाफ कार्रवाई इसलिए नहीं हो पाती कि कार्रवाई का जिम्मा संभालने वाले शिक्षा विभाग के अधिकारी से लेकर नेता, पुलिस अधिकारी और जज तक अपने बच्चों के एडमिशन कराने के लिए इन्हीं स्कूलों की चौखट पर खुशामद करते फिरते हैं।