विज्ञापन के दबाव में चाटुकारिता करता चैनल
‘आखिर हम हैं हर कहीं’ के स्लोगन के साथ उत्तराखंड में खबरें प्रसारित करने वाला नेटवर्क १८ का चैनल ईटीवी किसी दूरदर्शन चैनल से कभी कम नहीं रहा। ईटीवी और सरकार के बीच का गठजोड़ बहुत पुराना है। ईटीवी के मालिकों ने इस चैनल के माध्यम से सरकार के साथ इस प्रकार की सांठ-गांठ कर रखी है कि कोई भी सरकार आए, उसे इस चैनल को करोड़ों रुपए के विज्ञापन देने ही होंगे। कलियुग में सरकारों की ऐसी कौन सी नब्ज इन्होंने दबा रखी है, ये तो सरकार ही बता सकती है, किंतु इस चैनल मेें काम करने वाले पत्रकारों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है।
जो उत्तराखंड सरकार इस चैनल को करोड़ों रुपए देती है, उसे इतना भी ज्ञात नहीं कि उत्तराखंड में काम करने वाले पत्रकारों का ये चैनल किस प्रकार शोषण करता है।
पिछले दिनों ईटीवी के क्राइम रिपोर्टर अवनीश पाल की शराब के ठेकेदारों ने तब पिटाई कर दी, जब वे उत्तराखंड में शराब की दुकानों में ओवर रेटिंग से लेकर तय समय से अधिक देर तक दुकानों के अवैध देर तक खुले रहने की खबर कवर करने गए थे। अवनीश पाल की निर्ममता से पिटाई के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया।
जो चैनल ‘आखिर हम हैं हर कहीं’ का स्लोगन देता हो और दिनभर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधायकों का गुणगान करता हो, उसने अपने पत्रकार की निर्ममता से हुई पिटाई पर खबर चलाने की बजाय यह खबर दबा दी। यह मसला तब गर्म हुआ, जब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड में डबल इंजन की सरकार द्वारा उक्त पत्रकार की पिटाई के मसले को दबाने पर सवाल खड़े किए।
आश्चर्यजनक रूप से जिन आबकारी मंत्री को पत्रकार की हालत जाननी चाहिए थी, उन्होंने शराब के दुकानदारों द्वारा लिखाई गई शिकायत को वाजिब ठहराने के लिए ट्वीटर पर जवाब दिया। प्रकाश पंत के जवाब से ऐसा महसूस हुआ कि वो शराब माफियाओं के साथ खड़े हैं। हो भी क्यों नहीं, आखिरकार इस वित्तीय वर्ष में आबकारी मंत्री ने शराब से २३०० करोड़ रुपए राजस्व का लक्ष्य जो निर्धारित किया हुआ है। शराब के इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आबकारी नीति में कई बार बदलाव किए जा चुके हैं।
अवनीश पाल की खबर दबाने वाले इस चैनल और सरकार का गठजोड़ अपने आप में शर्मनाक भी है और उत्तराखंड में पत्रकारिता कर रहे लोगों की वास्तविकता को भी सामने लाने वाला है। उत्तराखंड में एक दर्जन से अधिक पत्रकार संगठन काम कर रहे हैं। अवनीश पाल जैसे तमाम घटनाक्रम होते रहते हैं। मीडिया मालिकों द्वारा शोषण का यह क्रम तब तक बदस्तूर जारी रहेगा, जब तक मीडिया मालिक इस प्रकार सरकारों के तलवे चाटते रहेंगे।
मजेदार बात यह रही कि इस खबर को गिनती के कुछ न्यूज पोर्टलों ने स्थान दिया, जबकि नंबर एक का दावा करने वाले कुत्ते-बिल्ली-चूहों की खबरों ब्रेकिंग न्यूज चलाने वाले तमाम न्यूज चैनलों व अखबारों ने भी इस खबर को प्रकाशित नहीं किया।