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बेमौत मरते गजराज

May 6, 2017
in पर्वतजन
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कुमाऊं के तराई इलाके में हाथी कहीं जंगली जानवरों से मुठभेड़ में मर रहे हैं, कहीं करंट से मर रहे हैं तो कहीं तश्करों के शिकार हो रहे हैं।

जगमोहन रौतेला

कुमाऊं मंडल का रामनगर व तराई पश्चिमी वन प्रभाग पिछले महीने गजराजों के लिए जानलेवा साबित हुआ। तीन दिन के अंदर चार हाथियों को मौत का शिकार होना पड़ा। पहले 15 अप्रैल 2017 को कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के बिजरानी रेंज में एक नर हाथी का सड़ा-गला शव मिला। कार्बेट प्रशासन द्वारा हाथी की उम्र लगभग 12 साल की बताई गई। पोस्टमार्टम करने वाले पशु चिकित्सकों डा. दुष्यन्त शर्मा और डा. योगेश अग्रवाल ने हाथी की मौत 15 दिन पहले होने की आशंका जताई। पार्क प्रशासन के लिए सबसे ज्यादा राहत देने वाली बात यह रही कि हाथी वन्य जीव तस्करों का शिकार नहीं हुआ था, क्योंकि उसके दोनों दांत और शरीर के दूसरे सभी अंग सुरक्षित थे। हाथी के शरीर पर बाघ के दांत व पंजों के निशान मिले।
पार्क के उपनिदेशक अमित वर्मा हॉलाकि इस बात को पूरी तरह से सही नहीं मानते हैं कि बाघ के साथ संघर्ष में हाथी की मौत हुई होगी। वह कहते हैं कि ऐसा भी हो सकता है कि हाथी के किन्हीं कारणों से हुई मौत के बाद ही बाघ ने उसे खाया हो। फिलहाल सभी स्थितियों को ध्यान में रख कर जांच की जा रही है। अगर हाथी और बाघ के आपसी संघर्ष के प्रमाण मिलते हैं तो यह पार्क प्रशासन के लिए चिंता की बात हो सकती है, क्योंकि आमतौैर पर दोनों ही वन्यजीवों के बीच संघर्ष नहीं के बराबर होता है। कुछ विशेष व विकट परिस्थितियों में ही ऐसा होता है। कॉर्बेट पार्क में हाथी और बाघ काफी संख्या में हैं। मरने वाला नर हाथी टस्कर था, जिससे मामला और पेचीदा बन गया है। डब्लूडब्लूएफ के चंदन सिंह नेगी कहते हैं कि बाघ हमेशा कमजोर व छोटे हाथी पर ही हमला करता है। टस्कर पर हमला तो वह किसी भी स्थिति में नहीं करता है।
अगर बाघ द्वारा मारे जाने की पुष्टि होती है तो इसका मतलब हुआ कि हाथी भूखा और कमजोर था। यह इस बात का संकेत हो सकता है कि कार्बेट पार्क में हाथियों के लिए पर्याप्त भोजन का संकट खड़ा हो रहा है, जिसे पारिस्थितिकीय के अनुसार बिल्कुल भी सही नहीं कहा जा सकता है।
पार्क क्षेत्र व उसके आस-पास पिछले छह वर्षों में 43 हाथी मारे गए, पर चिंताजनक बात यह है कि किसी की भी मौत के बारे में सही कारणों का आज तक पता नहीं चला। हमेशा हाथियों के पोस्टमार्टम के बाद मौत के कारणों का पता लगाने के लिए उनका बिसरा सुरक्षित तो रख लिया जाता है, लेकिन पिछले 6 वर्षों में एक भी हाथी की बिसरा रिपोर्ट नहीं आई, जिससे यह पता चल सके कि हाथी क्यों और कैसे मरा? पार्क के वार्डन शिवराज चन्द्र इस बारे में कहते हैं, ”पोस्टमार्टम तो हर मरने वाले वन्य जीव का होता है, लेकिन बिसरा जांच के लिए उसी का भेजा जाता है, जिसकी मौत को लेकर कोई आशंका होती है। बिसरा रिपोर्ट आने में देरी अवश्य होती है।
मृत मिले हाथी की मौत की गुत्थी सुलझी भी नहीं थी कि अगले ही दिन 16 अप्रैल 2017 को रामनगर वन प्रभाग के मोहान से सटे जंगल के कोसी रेंज में हाइटेंशन विद्युत लाइन की चपेट में आकर एक मादा हाथी की मौत हो गई, जिसकी उम्र लगभग 6 साल की बताई गई। यह शव भी गश्त के दौरान ही दिखाई दिया, जो 11 हजार केवी की हाइटेंशन विद्युत लाइन के नीचे पड़ा था। ऊर्जा निगम के कर्मचारियों ने जब घटनास्थल का दौरा किया तो हाइटेंशन लाइन का इंसुलेटर फटा हुआ मिला, जिससे यह माना जा रहा है कि इंसुलेटर फटने के दौरान मादा हाथी वहां से गुजर रही होगी और तभी उसकी करंट लगने से मौत हो गई।
कार्बेट पार्क, रामनगर वन प्रभाग और तराई पश्चिमी वन प्रभाग में हाथी के करंट से मारे जाने का यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले लगभग 35 वर्षों में इन वन क्षेत्रों में 20 हाथी करंट लगने से मारे गए हैं। पिछले लगभग 16 वर्षों में 15 हाथी करंट लगने से मरे हैं अर्थात औसतन हर साल एक हाथी करंट की चपेट में आकर मारा जा रहा है। इसके बाद भी वन विभाग व ऊर्जा निगम के अधिकारी इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कोई कारगर कदम उठाने को तैयार नहीं हैं। यह स्थिति तब है, जब दोनों विभागों के उच्चाधिकारियों को मालूम है कि कॉर्बेट पार्क के कालागढ़ व ढिकाला के बीच 11 हजार केवी की विद्युत लाइन गुजरती है।
इस घटना के अगले ही दिन 17 अप्रैल 2017 को फिर दो हाथियों की मौत रेल से कटकर हो गई। यह दुर्घटना नैनीताल व ऊधमसिंहनगर जिलों की सीमा में हल्दी रेलवे (पन्तनगर) स्टेशन के समीप टॉडा के जंगल में सवेरे तीन बजे हुई। रानीखेत एक्सप्रेस की चपेट में आए इन दो मादा हाथियों की उम्र दो से तीन साल के बीच थी।
रुद्रपुर रेंज के रेंजर गणेशचन्द्र त्रिपाठी के अनुसार, ‘बांस के जंगल का आकर्षण संभवत: हाथियों के झुण्ड को यहां तक लाया हो और हाथी के बच्चे रेलवे लाइन तक पहुंच गए हों। इस बात की भी संभावना है कि पानी की तलाश में हाथी यहां तक पहुंचे हों, क्योंकि हल्दी रेलवे स्टेशन के नजदीक ही कल्याणी, बैगुल और फुलवा नदियां बहती हैं।


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