उत्तराखंड सरकार ने नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में प्रशासक तैनात कर दिए हैं। इससे इस आशंका को भी बल मिल रहा है कि सरकार नगर निकायों के चुनाव को छह माह पीछे खिसका सकती है।
गौरतलब है कि 3 मई को नगर पालिका और नगर पंचायतों के बोर्ड का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। किंतु अभी तक निकायों की सामान्य निर्वाचन की प्रक्रिया धीमी गति से चल ही रही है। इसलिए सरकार ने प्रशासक नियुक्त करने के आदेश दे दिए हैं। 4 मई को सभी निकायों में प्रशासक तैनात हो जाएंगे।
जिलाधिकारी अपने स्थान पर एसडीएम आदि को प्रशासक के रूप में तैनात कर देंगे। सभी जगह प्रशासक तैनात होने के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि विपक्षी पार्टी का कोई भी पालिका अध्यक्ष न होने के बाद सरकार अपनी मनमर्जी के फैसले ले सकेगी और ब्यूरोक्रेसी पूरी तरह से हावी रहेगी। सबसे बड़ा खेल नगर पालिका क्षेत्र में होने की आशंका है, जहां पर ग्राम सभाओं को नगर पालिकाओं तथा नगर पंचायतों में जोड़ा गया है।
दूसरा खेल होने की संभावना तराई में है। सरकार उन लोगों को भी निकाय का चुनाव लड़ने का अधिकार दे देगी जो वर्षों से नजूल अथवा सरकारी भूमि पर कब्जा जमाए बैठे हैं। अभी तक नगर पंचायत एक्ट के अंतर्गत यह व्यवस्था है कि यदि कोई व्यक्ति अथवा उसके परिजन नगर पालिका अथवा नगर निकाय की भूमि पर अथवा किसी सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा धारी है तो वह चुनाव नहीं लड़ सकता।
कई नगर पालिका अध्यक्षों की कुर्सी तराई में इसी अवैध कब्जे के कारण चली गई थी। किंतु अब सरकार अवैध कब्जाधारियों को भी चुनाव लड़ने का अधिकार देने जा रही है। हालांकि सरकार इसमें यह व्यवस्था करने जा रही है कि उस व्यक्ति का कब्जा दो-तीन पीढ़ी से पहले का होना चाहिए। पर यह सवाल अपनी जगह है कि इससे अवैध कब्जाधारियों को सरकारी भूमि पर कब्जा करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
प्रशासकों की तैनाती के दौरान प्रशासक कोई नया कार्य शुरू नहीं कर सकते, किंतु सरकार अपने स्तर से नगर निकाय क्षेत्रों में अपने एजेंडे पर काम तो कर ही सकती है।