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महज शोपीस हैं पिस्तौल!

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उत्तराखंड में आबकारी निरीक्षकों को रिवाल्वर तो आवंटित हैं, किंतु न तो उन्हें पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण दिया गया, न ही इसे चलाने की कभी जुर्रत महसूस हुई।

प्रमोद कुमार डोभाल

उत्तराखंड में आबकारी विभाग के निरीक्षकों को रिवाल्वर दी गई है, लेकिन उन्हें न तो इसे चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है और न ही इसकी शायद उन्हें कोई जरूरत है। पिछले दिनों इस संवाददाता को सूचना के अधिकार में दिए गए जवाब में आबकारी विभाग ने स्वीकार किया है कि आबकारी निरीक्षकों को कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता।
उत्तराखंड आबकारी विभाग ने विभिन्न जिलों को कार्य की कम ज्यादा अधिकता के हिसाब से विभिन्न सर्किल में बांटा हुआ है। देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार जैसे जिलों में तीन से चार सर्किल हैं तो अन्य पहाड़ी जनपदों में एक-एक सर्किल हैं। सर्किलों में तैनात आबकारी निरीक्षक अपने पास रिवाल्वर तो रखते हैं, किंतु ये महज शोपीस हैं। न तो इनमें कभी कारतूसों का प्रयोग हुआ और न ही रिवाल्वर चलाने की कोई टे्रनिंग उन्हें दी गई है। संभवत: आबकारी विभाग में प्रशिक्षण के लिए कोई बजट भी निर्धारित नहीं है।
आबकारी निरीक्षक को दुकानों के पर्यवेक्षण और उन सभी अपराधों से निपटना होता है, जो शराब तस्कर तथा अवैध शराब बनाने-बेचने वाले करते हैं। उसका कर्तव्य है कि वह मादक पदार्थों की बिक्री व राजस्व संग्रह पर नजर रखे तथा उच्चाधिकारियों को भी सूचित करे। किसी मामले में आबकारी कानून का उल्लंघन पकड़ में आने पर आबकारी कानून के प्रावधानों के अधीन उन्हें तलाशी लेने व गिरफ्तार करने का भी अधिकार है, किंतु टकराव की नौबत आने पर टे्रनिंग के अभाव में ये असहाय रह जाते हैं। वर्तमान में ५१ आबकारी निरीक्षक उत्तराखंड में कार्यरत हैं।
आबकारी विभाग को अवैध तस्करी को रोकने के लिए समय पर पर्याप्त मात्रा में पुलिस फोर्स उपलब्ध नहीं हो पाती है। ऐसे में अवैध शराब पर अंकुश नहीं लग पा रहा। पुलिस का पर्याप्त सहयोग न मिलने के कारण आबकारी निरीक्षकों को यदि पर्याप्त मात्रा में हथियार उपलब्ध कराकर उन्हें प्रशिक्षित किया जाए तो वे न सिर्फ छापेमारी के वक्त अवैध तस्करी को प्रभावी ढंग से रोक सकते हैं, बल्कि अपनी आत्मरक्षा भी बेहतर तरीके से कर सकते हैं।
वर्ष २०१२ में विभिन्न जिलों के आबकारी निरीक्षकों को ३२ बोर की आईओएफ मेक १५ रिवाल्वर आवंटित की गई थीं। उत्तर प्रदेश के कानपुर से खरीदी गई इन रिवाल्वरों की शायद ही कभी जरूरत पड़ी होगी। आबकारी निरीक्षकों को ये हथियार संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों के अनुमोदन पर दिए जाते हैं।
इस संवाददाता ने सभी जिलों के आबकारी अधिकारियों से यह जानकारी जुटाने की कोशिश की थी कि इन रिवाल्वरों का अंतिम बार कब प्रयोग किया गया था, किंतु प्राप्त सूचना से पता लगता है कि ये रिवाल्वर कभी प्रयुक्त ही नहीं हुए। अल्मोड़ा और रुद्रप्रयाग के आबकारी निरीक्षकों ने १०-१० कार्टेज खरीदने की जानकारी तो दी, किंतु उन्होंने इसका प्रयोग कहीं भी नहीं किया।

आबकारी निरीक्षक अपने पास रिवाल्वर तो रखते हैं, किंतु ये महज शोपीस हैं। न तो इनमें कभी कारतूसों का प्रयोग हुआ और न ही रिवाल्वर चलाने की कोई टे्रनिंग उन्हें दी गई है।

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