महाराजों के बीच फंसे मुखिया!

मुख्यमंत्री कार्यालय ने हटाई खबर

मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद अगर मुख्यमंत्री से कुछ संभल नहीं पा रहा है तो मंत्रिमंडल के अपने सहयोगी सतपाल महाराज के साथ नूराकुश्ती का वो खेल है, जिसमें हर दिन कोई न कोई पेंच फंसता जाता है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए लोग वैसे भी मूल भाजपाइयों के लिए अपच बने हुए हैं, किंतु सतपाल महाराज और त्रिवेंद्र रावत की ट्यूनिंग बिल्कुल भी नहीं मिल पा रही।
नवरात्रि के अवसर पर महाराज ने अपनी ताकत का एहसास कराने के लिए समाचार पत्रों में संपूर्ण पेज का लाखों रुपए का एक विज्ञापन सरकारी मद से प्रकाशित करवाया। जिसमें मुख्यमंत्री का फोटो नहीं लगवाया गया। इस बीच महाराज के हरिद्वार आश्रम से लेकर केदारनाथ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से महाराज को बाहर रखने के सफल प्रयास भी हुए, किंतु १० नवंबर को तब पेंच फंस गया, जब मुख्यमंत्री को सतपुली में हंस फाउंडेशन अस्पताल के उद्घाटन के लिए बुलाया गया। मुख्यमंत्री ने तत्काल हामी भर दी। इस कार्यक्रम में प्रदेश के कई मंत्री, विधायक शामिल हुए, किंतु इस कार्यक्रम में सतपाल महाराज को छोड़कर सभी को आमंत्रित किया गया था। सतपाल महाराज चाहते थे कि त्रिवेंद्र सिंह रावत अस्पताल का उद्घाटन करने न जाएं, किंतु पहले से ही भोले महाराज के एहसानों के नीचे दबे त्रिवेंद्र सिंह रावत मना नहीं कर पाए।
इधर सतपाल महाराज की नाराजगी बढ़ती जा रही थी तो मुख्यमंत्री ने एक आसान तरीका निकाला। वे कार्यक्रम में शिरकत करने भी गए, किंतु उस कार्यक्रम से संबंधित कोई भी खबर सरकार द्वारा न तो मुख्यमंत्री के सोशल मीडिया पेज पर डाली गई और न ही इस बात को प्रमुखता से उठाने के लिए तब कहा गया, जबकि वास्तव में सतपुली में निर्मित यह अस्पताल पलायन रोकने के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
बहरहाल, सतपाल महाराज और त्रिवेंद्र रावत के बीच की यह तनातनी आगे क्या रूप लेती है, ये देखने वाली बात होगी।

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