विनोद कोठियाल
परिवहन विभाग के ऋषिकेश स्थित एआरटीओ कार्यालय में लंबे समय तक परिवहन कर अधिकारी के रूप में जमे रहे आनंद कुमार जायसवाल पर वित्तीय अनियमितताओं के काफी गंभीर आरोप हैं।
टैक्स और जुर्माना 50% जेब में
उन पर आरोप है कि जो टैक्स उनके द्वारा वाहन स्वामियों द्वारा प्राप्त किया जाता था, वह सीधे सरकारी खाते में जमा न होकर गड़बड़ी के बाद ही सरकारी खाते में जमा होता था।
इससे सरकार को राजस्व की काफी हानि होती थी। लंबे समय तक इस बात को विभाग द्वारा भी दबाया गया। परंतु धीरे-धीरे अन्य कर्मचारियों में यह बात फैलने लगी कि वाहनों द्वारा कर के रूप में होने वाली वसूली को सरकारी खाते में सीधा जमा नहीं किया जाता, बल्कि जितना राजस्व वसूल किया जाता है, रसीद में कुछ और और सरकारी खाते में कुछ और ही जमा होता है।
यह बात जब विभाग में जोर-शोर से उठने लगी और कार्यवाही की मांग तेज होने लगी तो जायसवाल के सिर पर हाथ रखने वाले आकाओं ने भी अपने हाथ पीछे खींच लिए और जांच विजिलेंस को सौंपी गई।
विजिलेंस को बनाया बंधक
विजिलेंस की जांच का आलम यह है कि उस प्रकरण से संबंधित समस्त पत्रावली को विजिलेंस द्वारा अपने कब्जे में लिया गया है और उसकी भौतिक सत्यापन के लिए विभाग से कर्मचारियों की मांग की गई है। पहले तो वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सुरेश चंद्र बछेती को पत्रावलियों का मिलान करने के लिए विजिलेंस कार्यालय में भेजा गया, परंतु बाद में उनका स्थानांतरण कहीं अन्यत्र कर दिया गया, जिससे कि जांच बाधित हो सके।
विजिलेंस कार्यालय ने परिवहन अधिकारियों को फरवरी में पत्र लिखकर सुरेश चंद्र बछेती को पुनः इस कार्यालय में जांच में सहयोग हेतु योगदान देने के लिए उपस्थित होने के लिए कहा।
परिवहन विभाग का असहयोग आंदोलन
काफी लंबे समय तक इंतजार के बाद भी जब बछेती विजिलेंस कार्यालय में नहीं गए तो विजिलेंस कार्यालय द्वारा 7 मार्च 2018 को पुनः परिवहन अधिकारी को पत्र लिखकर अवगत कराया गया कि सुरेश चंद्र बछेती को तत्काल प्रभाव से जांच में सहयोग हेतु विजिलेंस कार्यालय में उपस्थित होने के निर्देश देने की कृपा करें परंतु आज तक परिवहन कार्यालय द्वारा विजिलेंस विभाग का आया पत्र दबा कर रखा गया है और विभागीय किसी भी कर्मचारी को विजिलेंस की जांच हेतु सहयोग में नहीं लगाया गया है।
इससे साबित होता है कि जायसवाल पर विभाग के किसी बड़े अधिकारी का हाथ है। इस पूरे खेल में विभाग के ऊपर से लेकर नीचे तक पूरी श्रृंखला ही सम्मिलित है। विजिलेंस विभाग द्वारा बार- बार परिवहन कार्यालय को पत्र लिखने पर भी जांच में सहयोग न देना तो यही दर्शाता है कि विभाग एन केन प्रकारेण जयसवाल को इस प्रकरण से बचाना चाहता है।
आनंद कुमार जायसवाल से जब उनका पक्ष जानने के लिए पर्वतजन संवाददाता ने उनके मोबाइल नंबर डबल 99172 67391 पर बात करनी चाही तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।
जायसवाल को है किसका संरक्षण !
आनंद कुमार जायसवाल को काफी लंबे समय से मुख्यालय में अटैच किया गया है। किंतु यह अधिकारी काफी लंबे समय से मुख्यालय से नदारद पर बड़ा सवाल यह है कि इतने लंबे समय तक मुख्यालय में हाजिरी लगाने तक के लिए नहीं आने पर अब तक इनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गई है !
आन्नद कुमार जायसवाल के हौसले इतने बुलंद हैं कि जांच की कार्यवाही प्रारंभ होने पर जैसे ही जायसवाल को नौकरी से सस्पेंड किया गया, तब से आज तक उनका कार्यालय मे कोई आना-जाना नहीं है। पिछले डेढ़ साल से आनंद कुमार जायसवाल अपने कार्यालय में नहीं गए और विभाग के उच्च अधिकारियों में इतनी गहरी पैठ है कि इतना लंबा समय होने के बावजूद विभाग ने आनंद कुमार जायसवाल के बारे में कोई खोज खबर नहीं की। अब सवाल यह है कि जायसवाल किस बड़े अधिकारी के कहने पर अंडर ग्राउंड हो रखे हैं और विभागीय कार्यवाही की सूचना उन्हें किस प्रकार से उपलब्ध हो रही है !
जो भी पत्र विभाग में उनके उनके लिए बनता है, वह उन्हें मिल जाता है। जबकि वहां काफी लंबे समय से अपने मुख्यालय में उपस्थित नहीं हो रहे हैं। तो इस अधिकारियों के बीच उनका कैसे संपर्क बना हुआ है ! इससे साबित होता है कि आनंद कुमार जायसवाल केवल एक कठपुतली मात्र है और इस खेल के पीछे कुछ बड़े अधिकारियों का हाथ है, जो उसे बचाने में लगे हुए हैं। इन अधिकारियों को डर है कि आनंद कुमार जायसवाल के विरुद्ध कोई मजबूत कार्यवाही होने पर उनके खिलाफ भी मामला जा सकता है।
जीरो टॉलरेंस की सरकार की असलियत को यह आईना दिखाने से कम नहीं है। अब देखना यह है कि परिवहन विभाग इस अधिकारी को विजिलेंस से कितने दिनों तक बचा के रख सकते हैं।
पर्वतजन के पाठकों से अनुरोध है कि इस खबर को इतना अधिक शेयर करें कि हमारे नीति-नियंता अफसर और मंत्री जी तथा मुख्यमंत्री इस पर कार्यवाही करने के लिए मजबूर हो जाएं।