कुछ दिन पहले नेहरू कॉलोनी में भीख मांगते हुए एक अधेड़ महिला पर्वतजन प्रकाशन के गेट पर पहुंची तो प्रोफेशनल भिखारियों वाले हाव भाव न देख कर तथा बॉडी लैंग्वेज से उत्तराखंडी नजर आ रही इस महिला से जिज्ञासावश पूछ डाला कि कहां की रहने वाली हो ? महिला ने बताया कि वह चमोली गढ़वाल की रहने वाली है। अपनत्व का भाव जागा तो महिला को पानी पिलाने के लिए कार्यालय के अंदर भी आमंत्रित कर दिया।
पता चला कि महिला 3 दिन से बुखार से पीड़ित है। उनसे भीख मांगने का कारण पूछा तो अपनत्व पाकर फफक पड़ी महिला ने जो कहानी बताई, वह इन पंक्तियों को पढ़ने वाले किसी भी पाठक का गला रुंधवाने के लिए काफी है।
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ऐसे हुई दरबदर
कर्णप्रयाग तहसील के स्वारा गांव की रहने वाली कमला देवी 16 17 जून 2013 की उन अभागी तारीखों में अपनी बेटी के साथ दिल्ली गई हुई थी। रामबाड़ा में कमला का बेटा, दामाद तथा नतिनी दुकान चला रहे थे। दिल्ली में कमला को केदारनाथ में आई आपदा के बारे में पता चला तो वह बदहवासी मे अपनी बेटी के साथ दिल्ली से वापसी के लिए चल पड़ी।
ऋषिकेश पहुंच कर कमला को मालूम चला कि ऊपर के सभी रास्ते तो बंद हैं। आशंकाओं के बवंडर ने उनकी सोच समझ को कुंद कर दिया। उन्हे लगा जीवन का सब कुछ समाप्त हो गया।
सहारनपुर मे शोषण
सहारनपुर की एक महिला उन्हे अपने साथ ले गई और कहा कि कुछ दिन हमारे साथ रह लो। वेतन के साथ ही रहना-खाना भी मिलेगा। कमला बेटी के साथ उस महिला के घर चल दी, लेकिन यहां का नजारा बिल्कुल अलग था। उन्हे पेट भरने लायक खाना ही मिल पाया, लेकिन वेतन कभी नहीं।
इस बीच महिला के बेटे की निगाह भी बेटी पर खराब हो गई और वह बेटी से छेड़छाड़ करने लगा। जब ज्यादतियां हद से ज्यादा हो गई तो कुछ आस-पड़ोस के लोगों की मदद से वह हरिद्वार आई और शांतिकुंज में शरण लेकर छेड़छाड़ करने वाले परिवार के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दी, किंतु कुछ नहीं हुआ। वह परिवार कमला और उसकी बेटी को जबरन अपने साथ सहारनपुर ले गया और कहा कि या तो हमारे अब तक के खाने रहने के पैसे वापस करो या फिर चुपचाप काम करते रहो।
साइन करके सोई सरकार
बेटी और मां सहारनपुर के इस परिवार में बंधक बन कर रह गए । कुछ दिन माहौल सामान्य करने के बाद महिला चुपचाप देहरादून मुख्यमंत्री के दरबार में पहुंची और अपनी आपबीती सुनाई तो मुख्यमंत्री के ओएसडी ऊर्बा दत्त भट्ट ने महिला की अर्जी पर आवश्यक कार्यवाही करने के लिए प्रशासन को लिख दिया। प्रशासन ने भी महिला का पता ठिकाना न मिलने की बात कहकर आवेदन का निस्तारण कर दिया।
पर्वतजन ने जब कर्णप्रयाग तहसील के SDM, तहसीलदार आदि से बात की तो उनका कहना था कि इस मामले को काफी समय हो गया है, इसलिए महिला को कोर्ट जाकर ही न्याय मिल सकता है।
पर्वतजन संवाददाता ने महिला की दवा तथा सहारनपुर आनेजाने की मदद कर बिटिया सहित वापस आने के लिए कहा लेकिन यह महिला वापस नहीं आई। इस महिला के मूल दस्तावेज भी पर्वतजन के पास हैं। संभवतः महिला और उसकी बिटिया को सहारनपुर के उसी परिवार ने फिर से बंधक बना लिया है।
क्या कोई उम्मीद है ?
केदारनाथ पुनर्निर्माण में लगी गुजरात की कंपनियों सहित सरकार के पास क्या कोई ऐसा बजट होगा जो इस तरह की शोषण का शिकार हो रही महिलाओं और उनकी बच्चियों को वापस लाकर उन्हें फिर से बसाने का नेक कार्य कर सकें ?
एक ओर हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ से आगामी लोकसभा चुनाव का शंखनाद करने जा रहे हैं दूसरी ओर भाजपा और कांग्रेस दोनों में केदारनाथ में किए गए कार्यों को ऐतिहासिक बताते हुए श्रेय लूटने की होड़ लगी है। वहीं हमारी कल्याणकारी सरकार को यह पता नहीं है कि हमारे लोग जिनसे हमने कभी वोट लिए थे, वह केदारनाथ आपदा में बर्बाद होने के बाद कहां-कहां दर्द नाक ठोकरें खा रहे हैं।