गिरीश गैरोला//
शिक्षा को लेकर खाली हो रहे पहाड़ मे माॅडल स्कूल के फार्मूले पर शिक्षा के सिपाहियों ने साबित कर दिया है कि यदि पर्याप्त शिक्षक तथा सुविधा मिले तो सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से बेहतर बनाया जा सकता है।
सीमांत जनपद उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड ब्लॉक से दो किमी दूर प्राथमिक विधालय बड़ेथी मे 38 छात्र संख्या पर दो शिक्षक तैनात थे। सरकार के माॅडल स्कूल के कंसेप्ट मे इस स्कूल का नाम भी शामिल हुआ। उस वक्त यहां महज दो शिक्षक ही तैनात थे। स्कूल के माॅडल होते ही प्रधान अध्यापक सहित 6 शिक्षक तैनात हो गए। वैसे तो यहां कम्प्युटर,प्रोजेक्टर ,अतिरिक्त कक्षा निर्माण और न जाने क्या–क्या स्कूल को दिया जाना था परंतु स्कूल को जो टीम मिली, उसने अपनी पूरी निष्ठा और टीम भावना के साथ काम करते हुए अभिभावकों को सरकारी स्कूल मे भी प्राइवेट स्कूल से बेहतर अहसास करा दिया।
स्कूल के शिक्षक मुरारी राणा ने बताया कि छात्र संख्या 38 से 72 और अब 110 तक पहुँच चुकी है। सरकारी बसिक स्कूल के का खयाल आते ही जेहन मे रंग बिरंगे कपड़ों मे यहां–वहां दौड़ते बिना साफ – सफाई के बच्चे का जो चित्र उभरता है, उसे शिक्षकों की इस टीम ने बदल कर रख दिया है।
टाई – बेल्ट के साथ यूनीफ़ाॅर्म मे कतार मे आते-जाते बच्चे तबाड – तोड़ अँग्रेजी बोलते कक्षा एक-दो के छात्र और मिड डे मील के लिए तरीके से टेबल पर बैठ कर भोजन करते छात्र!! यकीन नहीं होता न!तभी तो आसपास के अभिभावकों ने भी प्राईवेट स्कूलों से अपने बच्चे हटाकर इस सरकारी स्कूल मे दाखिल करा दिए हैं।
स्कूल टीचर मीना भट्ट कहती हैं कि अभिभावकों को अपने बच्चे अंग्रेजी मे बोलते देख बहुत तसल्ली होती है और उनका स्कूल पर विश्वास भी बढ़ता है।ज़्यादातर अभिभावकों ने यूनीफ़ार्म बनाने मे सहमति दी, जो नहीं बना सके उनको शिक्षकों ने मिलकर मदद कर दी।
स्कूल के वार्षिक उत्सव मे जब बच्चों ने खुद पूरा प्रोग्राम इंग्लिश मे सम्पन्न कराया तो ग्रामीण अभिभावकों ने भी अपने बच्चों के सुखद भविष्य को लेकर सुखद सपने बुनने शुरू कर दिये हैं। उन्होने कहा कि स्कूल परिसर मे एक अन्य कक्ष भी मौजूद है। किन्तु उस के दरवाजे खिड़की नहीं है।यदि इसमे कोई मदद हो जाय तो एक और कक्षा के लिए कमरा मिल सकेगा।
शिक्षक मुरारी राणा ने बताया कि कम्प्युटर और प्रोजेक्टर मिलते ही छात्रों के परफ़ोर्मेंस पर जबरदस्त असर देखने को मिलेगा। वहीं प्री नर्सरी कि कक्षा भी शुरू हो जाय तो आने वाले बच्चों की बुनियाद भी मजबूत हो सकेगी।
कोई भी योजना बड़ी नहीं होती। योजना पर काम करने वालों की सोच बड़ी होती है। सरकार ने माॅडल स्कूल का नाम दिया तो शिक्षकों की टीम ने कम संसाधन के बावजूद अपनी मेहनत का असर दिखा दिया।
संसाधन पूर्ण होते ही स्कूल सफलता का एक नया आयाम लिखेगा। किन्तु इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा के इन सिपाहियों के उत्साह वर्धन मे हम सब का भी सहयोग हो।
किसी भी सरकारी योजना मे महज कमी निकालने के लिए ही नहीं उनकी मेहनत को सलाम करने का जज्बा भी हमारे अंदर हो तो क्यूं नहीं सरकारी स्कूल के शिक्षक भी छात्रों पर अपने बच्चों जैसी चिंता दिखाते हुए पलायन मुक्त पहाड़ के सपनों को साकार करने मे अपना सहयोग देंगे।किन्तु ये सपना तभी पूर्ण होगा जब एक सरकारी कर्मचारी भी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल मे दाखिला कराने मे शर्म महसूस न करे।