कृष्णा बिष्ट
पिछले दिनों अपने स्थानीय संवाद सूत्र की सूचना पर यह संवाददाता बागेश्वर के गरुड़ ब्लॉक में एक सूचना की तहकीकात करने पहुंचा।
सूचना बाहरी संदिग्ध लोगों की आवाजाही तथा अन्य गतिविधियों से संबंधित थी।
बागेश्वर जनपद के गरुड़ ब्लाक में हमारी मुलाकात इसी प्रकार के कुछ लोगों से हुई जो लगभग 6 से 7 की तादाद में गरुड़ टैक्सी स्टैंड के पास थे। इन में से दो लोग एक महिला व एक पुरुष अन्य लोगों से अलग नज़र आ रहे थे। जब हमने इन से इनके विषय में पूछा तो यह लोग सकपका गए।
तब उन में से एक व्यक्ति आगे बढ कर अपना आधार कार्ड दिखाते हुए साथ खड़ी महिला को अपनी पत्नी व पास ही बैठी एक अन्य महिला को अपनी भांजी बताने लगा, जो कहीं से भी उस व्यक्ति की रिश्तेदार तो प्रतीत नही हो रही थी।
जब हम ने उस महिला (कथित भांजी) से उसका आई.डी मांगा तो वह अपना व अपने परिवार का आई.डी आग मे जल कर नष्ट होने का दावा करने लगी। तब पूछने पर वह व्यक्ति कहने लगा कि वे लोग हर वर्ष ईद मनाने पिथोरागढ जाते हैं, अभी भी वहीं जा रहे हैं।
किन्तु इनकी यह सारी बातें आईडी आग में नष्ट होने से लेकर आपसी रिश्ते का दावा सब कुछ इन पर संदेह पैदा करती हैं और उस से भी बड़ी बात जब पिथौरागढ चम्पावत से मात्र दो घंटे की दूरी पर है तो, क्यों कोई बिलकुल ही उल्टी दिशा यानी बाया गरुड़ पिथोरागढ क्यों जाएगा ?
यहाँ यह बताना भी आवश्यक है की इस पूरी घटना मे यहाँ के स्थानीय लोगों का रवय्या भी काफी उदासीन बना हुआ था।
उन का कहना था कि इस तरह के लोग तो यहाँ टोलियों मे हर दूसरे तीसरे दिन आते ही रहते हैं।” हम इसमे क्या कर सकते हैं ! यह तो पुलिस का काम है !”
यह तो सिर्फ एक किस्सा है, नहीं तो उत्तराखंड मे आए दिन इस प्रकार की सैकड़ों घटनायें हो रही हैं।
इस विषय पर जब हम ने एस.डी.एम गरुड़ एस.एस.तोमर से इस प्रकार के लोगों के सत्यापन के विषय में बात की तो उन्होने अपना पल्ला झाड़ते हुए पुलिस से बात करने की सलाह दे डाली, और साथ में यह भी जोड़ दिया कि प्रशासन का इसमे कोई रोल नहीं है, “यह पुलिस का कार्य है आप एस.पी से बात करें !”
अब अगर इतने गंभीर मुद्दे पर किसी प्रशासनिक अधिकारी का इतना निराशाजनक रवय्या होगा तो आप खुद उस जनपद का हाल समझ सकते हैं !
एस.पी बागेश्वर का कहना है कि वैसे तो पुलिस वैरिफ़िकेशन की प्रक्रिया साल भर चलती ही रहती है, लेकिन इसके बारे मे उनके द्वारा जनपद के सभी थानों व उन से सम्बंधित कांस्टेबलों को बोला गया है कि वे अपने- अपने क्षेत्र के ग्रामप्रधानों, दुकानदारों या अन्य स्थानीय व्यक्ति को अपना मोबाइल नंबर देकर रखें ताकि क्षेत्र में घूमने वाले किसी भी फेरीवाले या संदिग्ध की जानकारी उपलब्ध हो सके।
एक सवाल यह भी है कि जब एसडीएम सड़क पर बैठ आरटीओ का कार्य करते हुए चालान कर सकते हैं, तो क्या इतने गंभीर विषय पर पुलिस को सत्यापन के लिए निर्देशित नहीं कर सकते !
एक तरफ उत्तराखंड के गाँव वीरान होते जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ कुछ वर्षो से पहाड़ों मे बाहरी व संदिग्ध लोगों की हलचल बढती नज़र आ रही है।
इस विषय पर हम अपने पाठकों को समय–समय पर अवगत भी करवाते रहते हैं।पूर्व मे हम ने इसी विषय पर आप को बताया था कि किस प्रकार बागेश्वर जनपद के दूरस्थ गाँव में कश्मीरी मूल के लोग जंगलों मे चिरान का कार्य कर रहे थे, और जब तक प्रशासन को इसकी भनक लगती तो उसमे से अधिकतर वहाँ से जा चुके थे।
ये हाल मात्र एक जनपद का नहीं है, बल्कि अब आप पूरे उत्तराखंड के पहाडों में इसी प्रकार के बाहरी लोगों की बढ़ती तादाद को देख सकते हैं। इसका असर निश्चित तौर पर आने वाले समय में यहाँ की भौगोलिक व सामाजिक संरचना पर पड़ना तय है। जो भविष्य में यहाँ के स्थानीय व बाहरी लोगों के बीच बहुत बड़े टकराव की स्थिति भी उत्पन्न कर सकता है।