सियासत का अस्पताल और अस्पताल की सियासत!

कुमार दुष्यंत/हरिद्वार//

हरिद्वार  के उत्तरी क्षेत्र में अस्पताल के निर्माण को लेकर खूब सियासत हो रही है।अस्पताल बनना तो तय है।लेकिन इसका ‘क्रेडिट’ लेने को मारामारी है।अस्पताल बनाने की मांग करने वाले व अस्पताल निर्माण पर फैसला करने वाले क्योंकि सभी राजनीति से जुड़े हैं।इसलिए इसपर खूब राजनीति हो रही है।

उत्तरी हरिद्वार में शहर की करीब एक लाख आबादी निवास करती है।बड़ी संख्या में यहां यात्री भी ठहरते हैं।लेकिन यहां कोई अस्पताल न होने के कारण लोगों को दस-बारह किलोमीटर का सफर तय कर हरिद्वार आना पड़ता है।मेलों और पर्वों के अवसरों पर क्योंकि हरिद्वार में प्रांय सडकों पर जाम रहता है।ऐसे में यहां के वासियों को जोलीग्रांट या फिर देहरादून का रुख करना पड़ता है।जिसके कारण एक अरसे से यहां सुविधा सम्पन्न अस्पताल की मांग की जाती रही है।हॉस्पिटल के निर्माण को लेकर शासन स्तर पर सैद्धांतिक सहमति हो चुकी है।इसकी घोषणा की जानी शेष है।क्योंकि मुद्दा स्थानीय राजनीति से जुड़ा हुआ है।इसलिए इसपर खूब राजनीति हो रही है।

क्षेत्र के नागरिक पिछले तीन साल से इस अस्पताल के लिए धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं।अब अस्पताल की घोषणा होनी है।क्योंकि इस धरना-प्रदर्शन का नेर्तत्व कांग्रेस के हाथों में रहा है।इसलिए भाजपा को अब यह लगता है कि इस समय अस्पताल की घोषणा से कहीं सारा ‘क्रेडिट’ कांग्रेस को न चला जाए।इसलिए भाजपा ने भी अस्पताल की घोषणा से पूर्व अपनी एक टीम को मैदान में उतार दिया है।जो मंत्रियों आदि से भेंटकर अस्पताल की मांग कर रही है।तैयारी यही है कि भाजपा की मांग पर अस्पताल निर्माण की घोषणा करी जाए।ताकि आने वाले चुनाव में इसका राजनीतिक लाभ लिया जा सके।

यह मुद्दा स्थानीय चुनावों को प्रभावित करने वाला है।हरिद्वार में निगम चुनाव होने में कुछ माह ही शेष हैं।इसलिए भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दल आने वाले चुनाव में इसका ‘नकदीकरण’ चाहते हैं।मेयर ने चुनाव में इस मुद्दे का महत्व समझते हुए ही कांग्रेस शासनकाल में रावत सरकार से छत्तीस का आंकड़ा होने के बावजूद अस्पताल के लिए निगम की चार हजार मीटर भूमि देने की पेशकश कर दी थी।बताया जाता है कि शासन इस क्षेत्र में तीस बिस्तरों का सुविधा युक्त अस्पताल बनाने का निर्णय ले चुका है।इसकी घोषणा कभी भी की जा सकती है। तलाश सिर्फ उस मुहूर्त की है जिसमें इसका ‘क्रेडिट’ कोई ओर न लूट जाए!

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