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हल्द्वानी को अराजक बनाती इंदिरा हृदयेश

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हल्द्वानी की मूलभूत समस्याओं के स्थायी समाधान की अपेक्षा हवा-हवाई हैं कैबिनेट मंत्री इंदिरा हृदयेश की योजनाएं’

आम लोगों को अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम व अंतर्राष्ट्रीय चिडिय़ाघर से कोई लाभ नहीं है और न इनके बन जाने से उसकी दूसरी ज्वलंत समस्याएं हल होने वाली हैं।
शहर के अनियंत्रित होते यातायात के लिए कालाढूंगी रोड, मंगल पड़ाव व बस अड्डे के पास फ्लाईओवर बनाने के प्रस्ताव लंबे समय से लंबित हैं। वित्त मंत्री इस मामले में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी। कुछ प्रभावशाली व्यापारियों की दुकानें व व्यापार फ्लाईओवर बनने से प्रभावित हो रहे थे। उनके विरोध के आगे वोट की राजनीति के कारण वित्त मंत्री ने हथियार डाल दिए।

जगमोहन रौतेला/हल्द्वानी


विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही नेताओं को एक बार फिर से जनता जनार्दन की याद आने लगी है। साथ में याद आ रहे हैं अपने पुराने चुनावी वायदे। अब वे तो पूरे किए नहीं, सो कुछ ऐसे कामों को उपलब्धि बताया जाने लगा है, जिनकी मांग जनता ने कभी की ही नहीं। जनता के असल सवालों, समस्याओं व मुद्दों को एक बार फिर से बड़ी चालाकी के साथ किनारे करने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।
कुछ ऐसा ही कर रही हंै स्वयं को ताकतवर मंत्री कहलाने में खुश रहने वाली प्रदेश की वित्त मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश। गत 22 अगस्त 2016 को हल्द्वानी से प्रकाशित होने वाले हिन्दुस्तान अखबार में प्रकाशित साक्षात्कार में अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के बारे में बताते हुए इंदिरा कहती हैं,- ”हल्द्वानी में अंतर्राष्ट्रीय खेल स्टेडियम व अंतर्राष्ट्रीय चिडिय़ाघर को मंजूर करवाने के साथ ही इनका निर्माण कार्य भी तेजी के साथ चल रहा है। स्टेडियम लगभग तैयार है और चिडिय़ाघर का कार्य अगले महीने आरम्भ हो जाएगा। गौलापार में अंतर्राज्यीय बस अड्डे का निर्माण कार्य भी जल्द शुरू होने वाला है।ÓÓ
मूल सवालों से किनारा
यह वित्त मंत्री भी जानती हैं कि गत विधानसभा चुनाव के समय अंतर्राज्यीय बस अड्डे के अलावा इनमें से कोई भी बात जनता के लिए चुनावी मुद्दा नहीं थी, क्योंकि आम लोगों को अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम व अंतर्राष्ट्रीय चिडिय़ाघर से कोई लाभ नहीं है और न इनके बन जाने से उसकी दूसरी ज्वलन्त समस्याएं हल होने वाली हैं। विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं हैं समय से शुद्ध पेयजल न मिलना, शहर में जानलेवा बनता अतिक्रमण, अनियंत्रित यातायात के कारण बढ़ता वायु व ध्वनि प्रदूषण, निजी स्कूलों द्वारा शिक्षा के नाम पर मचाई जा रही लूट, मेडिकल कॉलेज व बेस अस्पताल में चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुकी स्वास्थ्य सुविधाएं (जिसकी वजह से लोग निजी चिकित्सालयों में हलाल होने को मजबूर हैं), शहर का बेकाबू होता ड्रेनेज सिस्टम, बदहाल सड़कें, जगह-जगह लगे कूड़े के ढेर , बिगड़ती कानून व्यवस्था आदि। वास्तव में ये वे समस्याएं हैं, जिनसे शहर व विधानसभा क्षेत्र की जनता को हर पल, हर दिन जूझना पड़ता है।
बीमा स्वास्थ्य व्यवस्था
कई सरकारी व निजी चिकित्सालयों के बाद भी लोगों को उचित चिकित्सा के लिए बरेली, मुरादाबाद, लखनऊ व दिल्ली की दौड़ लगानी पड़ती है। मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य सेवाएं इतनी लचर व चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई हैं कि उच्च न्यायालय नैनीताल को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद गत 12 अगस्त 2016 को कॉलेज की निगरानी अपने हाथ में लेने का निर्णय करना पड़ा। जो एक तरह से सरकारी तंत्र के बुरी तरह से फेल हो जाने की बानगी है।
यहां विभिन्न रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टरों के 57 पद खाली हैं और चिकित्सा जांच करने वाली 30 से अधिक मशीनें खराब। ट्रामा सेंटर व कैथ लैब स्वीकृति के बाद भी नहीं बनीं हैं। पिछले दस सालों में यहां समुचित चिकित्सा सुविधा न होने के कारण 12,500 से अधिक मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है, जो किसी भी मेडिकल कॉलेज की बदहाल व चिंताजनक स्वास्थ्य सेवा को बयां करता है। ब्लड बैंक के नौ में से पांच फ्रिजर लंबे समय से खराब पड़े हैं। निजी चिकित्सालयों में लोग जाने से इसलिए डरते हैं कि वहां इलाज के नाम पर खुलेआम लूट का धंधा चल रहा है। इस वजह से आए दिन निजी चिकित्सालयों में हंगामा व मारपीट होनी आम बात हो गई है। कुछ चिकित्सालय तो इलाज के बहाने लूट के लिए कुख्यात हो चुके हैं, पर वित्त मंत्री के संज्ञान में बात होने के बाद भी ऐसे चिकित्सालयों के खिलाफ कभी कोई कार्यवाही नहीं की गई। उल्टे जिन लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई, उनके खिलाफ ही इन अस्पतालों में तोडफोड़ व मारपीट करने के झूठे मुकदमें लाद दिए गए। वित्त मंत्री को लोगों के जीवन की रक्षा करने की बजाय चिडिय़ाघर बनाने में ज्यादा दिलचस्पी है।
पानी पर परेशानी
शहर के 75 प्रतिशत हिस्से को पेयजल की आपूर्ति गौला नदी से होती है, पर वह पेयजल बहुत ही प्रदूषित हो चुका है, लोगों को अपने जीवन को दांव पर लगाकर उसे ही पीना पड़ रहा है। काठगोदाम के गौला बेराज से पहले ही रानीबाग में चित्रशिला घाट है। जहां नदी के किनारे लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता है। वहां पर मृत व्यक्ति के गंदे कपड़े, बीमारी से मरे व्यक्ति की दवाइयां, अधजली लाशें गौला नदी में प्रवाहित कर दी जाती हैं, जिससे पानी में कई तरह के जानलेवा बैक्टीरिया पैदा हो रहे हैं। यही पानी लोगों को बाद में गौला बैराज के माध्यम से शीशमहल स्थित फिल्टर प्लांट को भेजा जाता है। यह फिल्टर प्लांट इतना अत्याधुनिक नहीं है कि वह पीने के पानी को पूरी तरह से शुद्ध कर सके। लोगों के अंतिम संस्कार से नदी का पानी प्रदूषित न हो, इसके लिए लोग लगातार रानीबाग में विद्युत शवदाह गृह बनाने की मांग करते रहे हैं। इसके लिए कई बार लम्बे समय तक धरना-प्रदर्शन तक किए गए हैं। वित्त मंत्री खुद भी कई लोगों के अंतिम संस्कार में शामिल होने रानीबाग जाती रहती हैं और गौला नदी के पानी को भयानक रूप से प्रदूषित होते हुए अपनी आंखों से देखती हैं पर इसके बाद भी पिछले पांच सालों में विद्युत शवदाह गृह बनाने के बारे में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया गया। शहर को शुद्ध पेयजल की आपूर्ति करवाना वित्त मंत्री की प्राथमिकता में नहीं रहा, इसके बजाय उन्होंने आधे-अधूरे स्टेडियम में फर्जी कुश्ती के बादशाह ‘खलीÓ के शो करवाने को प्राथमिकता दी।
ध्वस्त यातायात व्यवस्था
हल्द्वानी में यातायात का दबाव हर रोज इतनी तेजी के साथ बढ़ रहा कि सड़कों में घंटों जाम लगना आम बात हो गई है। इसका एक प्रमुख कारण अतिक्रमण की भयानक स्थिति है। स्थानीय प्रशासन ने जब भी इसके खिलाफ कोई अभियान चलाया, वह वोट की राजनीति के कारण दो-चार दिन से अधिक नहीं चला। सत्ता के दबाव में प्रशासन को हमेशा अपने पैर पीछे खींचने को मजबूर होना पड़ा है।
शहर के अनियंत्रित होते यातायात के लिए कालाढूंगी रोड, मंगल पड़ाव व बस अड्डे के पास फ्लाईओवर बनाने के प्रस्ताव लंबे समय से लंबित हैं। वित्त मंत्री इस मामले में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी। कुछ प्रभावशाली व्यापारियों की दुकानें व व्यापार फ्लाईओवर बनने से प्रभावित हो रहे थे। उनके विरोध के आगे वोट की राजनीति के कारण वित्त मंत्री ने हथियार डाल दिए। इस बारे में भी वित्त मंत्री की कार्य योजना पिछले पांच सालों में कागजों से बाहर नहीं निकली। सिटी मजिस्ट्रेट हबीर सिंह इस बारे में कहते हैं,- ”राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते योजना फाइलों में दबकर रह गई। मास्टर प्लान होता तो हल्द्वानी को बदरंग होने से रोका जा सकता था।ÓÓ
मेयर बनाम् मंत्री में पिसा शहर
मुख्य बाजार में दुकानदारों के अतिक्रमण वैध व अवैध ठेलियों की भरमार से पैदल चलना भी दुश्वार है। निगम व प्रशासन जब भी दुकानदारों के अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाता है। राजनीति तेज हो जाती है। निगम में भाजपा का कब्जा है तो उसका कोई भी जनहित का कदम वित्त मंत्री को पसंद नहीं है। निगम ने बोर्ड की बैठक में गत 19 जुलाई 2016 को नगर निगम की 1,176 दुकानों का किराया बढ़ाने का फैसला किया। जिसमें तय किया गया कि 80 वर्ग फुट से अधिक बड़ी दुकानों का सालाना किराया 12 से 14 हजार रुपए होगा, जो पहले 500 रुपए महीने के लगभग था, पर राजनीति के चलते व्यापारियों ने इसका जमकर विरोध किया। मेयर जोगेन्द्र रौतेला ने किराए की बढ़ी दरें किसी भी स्थिति में वापस न लेने की घोषणा की तो व्यापारी वित्त मंत्री इंदिरा हृदयेश की शरण में पहुंच गए, जहां उन्हें पूरी तरह से राजनैतिक संरक्षण मिला। उन्होंने मेयर व निगम को एक तरह से धमकी देने वाले अंदाज में कहा,- ”जनहित के मुद्दे पर मेयर व भाजपा को राजनीति नहीं करनी चाहिए। कोई भी निकाय बिना सरकार के सहयोग के नहीं चल सकता। मेयर बेवजह मुद्दे को प्रतिष्ठा का सवाल न बनाएं। जनहित में बढ़ाए गए किराए में कटौती का संशोधन प्रस्ताव निगम बोर्ड की बैठक में लाएं।
जहां दुकानों के किराए का बाजार भाव ५ हजार रुपए से कम न हो, वहां निगम ने दुकानों का किराया एक हजार से डेढ़ हजार के लगभग कर दिया तो कौन सा गुनाह हो गया? इसके विपरीत फड़ व ठेली वाले तक प्रतिदिन 25 रुपए के हिसाब से हर माह 750 रुपए किराए के रूप में निगम को देते रहे हैं। जिसे निगम बोर्ड की 19 जुलाई की बैठक में घटा कर 15 रुपए प्रतिदिन किया गया है। इन फड़ वालों ने मेयर से मिलकर 1,500 रुपए मासिक किराए में दुकानें उन्हें आवंटित करने की मांग की और वित्त मंत्री ने किराया बढ़ाने का विरोध तब किया, जब कि शहर के लगभग 400 दुकानदारों ने पिछले कई वर्षों से किराया ही नहीं दिया है और उनके ऊपर किराए की देनदारी 40 लाख से ज्यादा की हो गई है। मतलब ये कि वोट के कारण वित्त मंत्री को दुकानों के किराए में की गई मामूली सी बढ़ोतरी भी मंजूर नहीं है।
बेपटरी कानून व्यवस्था
कानून व्यवस्था का हाल यह है कि शहर के कई क्षेत्रों में दिनदहाड़े चोरी होना आम हो गया है। अगर कोई व्यक्ति दो-चार दिन के लिए घर से बाहर चला जाए तो वापस आने पर उसे अपने घर के ताले टूटे हुए मिलते हैं।
कुछ पॉश कालोनियों में दिन में ही डकैती हो चुकी हैं। मासूम कशिश जैसी दिल को दहला देने वाले कांड भी हल्द्वानी की हर रोज बिगड़ती कानून व्यवस्था को ही आईना दिखाते हैं। जब पूरे दो हफ्तों तक लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतरते रहे। इसके अलावा सड़कों व गलियों का ड्रेनेज सिस्टम इतनी बुरी स्थिति में है कि गत जुलाई महीने में ढालदार नैनीताल रोड में भी बारिश का ढाई-तीन फुट पानी जमा हो गया और यातायात कई घंटे अवरुद्ध रहा, जिससे एसडीएम कार्यालय तक में घुटनों तक पानी भर गया था। कालाढूंगी रोड में तो जलभराव की समस्या स्थाई रूप ले चुकी है। यह स्थिति पिछले कई सालों से लगातार चल रही है, पर प्रस्तावित चिडिय़ाघर को अपने विकास की बड़ी उपलब्धि बताने वाली वित्त मंत्री इंदिरा को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि चुनाव के समय लोगों को जाति, धर्म व क्षेत्र के नाम पर बरगलाकर वोट मिल ही जाता है और सत्ता भी।

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