जगमोहन रौतेला
हल्द्वानी में कल एमबीपीजी कॉलेज के चुनाव को देखते हुए पूरी हल्द्वानी तहसील में सभी विद्यालयों को बंद करने के आदेश जिला अधिकारी ने दिए हैं। सवाल यह है कि क्या हल्द्वानी शहर को अपने ही बच्चों से इतना खतरा हो गया है कि जिलाधिकारी को कल 10 अक्टूबर को विद्यालय बंद करने के आदेश देने पड़े ।
कभी छात्र राजनीति में उतरे बेटे घर की शान तो कहलाते थे , साथ ही अगर वे काबिल हों तो शहर ,गाव को भी उन पर नाज होता था . पर अब बदलते समय में शहर व परिवार अपने राजनैतिक बेटों से खौफ खाने लगा है . उनके धमक की आवक से शहर बंद हो जाता है . और यह अब हर साल का सिलसिला हो चला है . जब भी शहर में छात्र संघ के चुनाव होते हैं तो शहर के सभी तरह के स्कूल सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर दिए जाते हैं . राजनिति में उतरने का कहकरा सीख रहे बेटों से खौफ खाने वाला यह शहर है हल्द्वानी . जो अब तेजी के साथ महानगर बनने की दौड़ में है .
कल 10 अक्टूबर 2017 को कुमाऊँ के सबसे बड़े महाविद्यालय हल्द्वानी के मोतीराम बाबूराम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में छात्र संघ का चुनाव होना है . जिसमें सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक मतदान होगा और उसके बाद 3 बजे से मतगणना होगी . महाविद्यालय शहर में नैनीताल रोड पर स्थित है . पहले मतदान के दिन केवल महाविद्यालय के दो किलोमीटर के दायरे में ही नैनीताल रोड बंद रहती थी , लेकिन पिछले कुछ सालों से अब हर वर्ष यातायात नैनीताल रोड में तो बंद रहता ही है , लेकिन चुनाव परिणाम के बाद किसी अनहोनी की आशंका के कारण शहर के सभी स्कूल सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर दिए जाते हैं और जैसी ही मतगणना का समय नजदीक आता है वैसे ही अधिकांश बाजार भी डर के कारण बंद हो जाता है .
उसे यह डर किसी और से नहीं , बल्कि अपने ही बेटों से लगता है , जो देश की सत्ता सँभालने वाली राजनीति की ओर पहला कदम बढ़ा रहे होते हैं . जिन बेटों पर शहर को नाज होना चाहिए वह शहर उनके ही खौफ में बंद हो जाता है , उसका जीवन थम जाता है , उसमें अजीब तरह की घबराहट तैरने लगती है . यह किस तरह की राजनीति बन गई है शहर में ? जिसमें वह अपने ही बेटों से खौफ खाने को विवश है .
यह डर भी तब है जब छात्र संघ चुनाव में लिंगदोह समिति की सिफारिशें लागू होने के कारण अब चुनाव परिणाम के बाद विजयी जुलूस नहीं निकलता है . इसके बाद भी प्रशासन छात्रों की हुड़दंग भरी गुंडागर्दी से डरा रहता है . यही डर उसे शहर के दूसरे सभी स्कूलों को बंद करवाने का फरमान जारी करने को विवश करता है . पर छात्र राजनीति के इस खौफ भरे चेहरे को ठीक करने की चिंता हमारे बड़े पदों पर बैठे नेताओं को नहीं हैं . वे छात्रों को अपने राजनैतिक हितों को साधने का मोहरा तो बनाते हैं , लेकिन उन्हें गुंडागर्दी करने से रोकने को कोई कार्य करने को तैयार नहीं हैं . राज्य के उच्च शिक्षा राज्य मन्त्री डॉ. धनसिंह रावत महाविद्यालय की छात्र राजनीति में सीधे हस्तक्षेप करने के लिए हल्द्वानी में मतदान से दो दिन मौजूद रहते हैं और उसे प्रभावित करने के लिए महाविद्यालय के प्राचार्य को विवादित आदेश देने से भी गुरेज नहीं करते हैं .
वहीं नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा ह्रदयेश को भी छात्र संघ के चुनाव में सीधे हस्तक्षेप से कोई गुरेज नहीं है . वह हर तरह का हस्तक्षेप इसमें करती हैं . करें भी क्यों नहीं ? आखिर वे हल्द्वानी की विधायक हैं और शहर में ही रहती भी हैं . इस सब के बाद वह भी छात्र राजनीति को हुड़दंग व गुंडागर्दी से मुक्त बनाने को कोई पहल करने को तैयार नहीं दिखाई देती . आखिर क्यों ? क्या यह उनके लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए कि जिन बेटों पर शहर को नाज होना चाहिए वह उनसे खौफ क्यों खाए ? उनसे डरे क्यों ? ****