उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार इन दिनों बेगानों ही नहीं, अपनों के भी निशाने पर आ गई है। सरकार के काम ही ऐसे हैं कि आक्रोश होना स्वाभाविक है। निजी मेडिकल की सात लाख रुपए सालाना फीस को 23 लाख रुपए करने की अनुमति पर भारतीय जनता पार्टी की जूनियर विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में डबल इंजन सरकार का पुतला फूंका। एक साल में यह पहला अवसर है, जब सरकार का अपनों ने पुतला फूंका। उत्तराखंड बाल संरक्षण आयेाग के पूर्व अध्यक्ष तथा वरिष्ठ पत्रकार अजय सेतिया ने भी फीस वृद्धि के मामले में सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। सेतिया भाजपा के पिछले कार्यकाल में बाल आयोग के अध्यक्ष रहे हैं।
भाजपा के पूर्व राज्यमंत्री तथा उत्तराखंड आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान तो फीस वृद्धि के ही आंदोलन का ही नेतृत्व कर रहे हैं और सरकार पर धारदार हमला कर रहे हैं। फीस वृद्धि को लेकर उनकी प्रेस कांफ्रेंस और आंदोलन के बाद सरकार काफी हद तक बैकफुट पर है। मुख्यमंत्री को छोड़कर अभी तक सरकार के किसी भी मंत्री अथवा पार्टी पदाधिकारी ने फीस वृद्धि के मामले में सरकार का बचाव नहीं किया है।
मेडिकल कालेजों में फीस वृद्धि को लेकर चल रहे व्यापक आंदोलनों के बावजूद राज्यपाल की चुप्पी पर भी लोग सवाल उठाने लगे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या महामहिम केवल शोपीस की विषयवस्तु बनकर रह गए हैं। जनता उनसे हस्तक्षेप की अपेक्षा कर रही है। इसके उलट तमाम राजनीतिक दल इस मसले पर सरकार की घेराबंदी में जुट गए हैं।
मेडिकल के जिन छात्र-छात्राओं ने विगत वर्ष सात लाख रुपए जमा किए, अब सरकार के आदेश के बाद उन्हें १६ लाख विगत वर्ष के और २३ लाख रुपए इस वर्ष के मिलाकर कुल ३९ लाख जमा करने होंगे, तब जाकर वे इस वर्ष पढ़ाई जारी रख सकेंगे।
मुख्यमंत्री द्वारा निजी मेेडिकल कालेजों के पक्ष में यह कहते हुए खड़ा होना कि निजी मेडिकल कालेज के मालिकों ने इन कॉलेजों के निर्माण पर छह-सात सौ करोड़ रुपए खर्च किए हैं। ऐसे में यदि उन पर बंदिश की जाती है तो उत्तराखंड से निवेशक भाग जाएंगे।
ये वही सरकार है जो एक ओर उत्तराखंड के निजी विद्यालयों पर शिकंजा कसने के बयान देकर कहती है कि इन निजी विद्यालयों को सरकार द्वारा घोषित किया गया पाठ्यक्रम पढ़ाना पड़ेगा और सरकार जो फीस एक्ट लाएगी, उसके अनुसार फीस लेनी होगी। निजी विद्यालयों और निजी मेडिकल कालेजों के बीच का यह दोहरा मानदंड किसी की समझ में नहीं आ रहा कि आखिरकार सरकार चाहती क्या है?
एक ओर उन १२वीं पास छात्र-छात्राओं के लिए फीस की लूट की छूट मेडिकल कालेज के मालिकों को सरकार ने दे दी। वहीं दूसरी ओर प्राइवेट स्कूलों के लिए नियम दूसरा कर दिया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के अनुसार यदि मेडिकल कालेज के मालिक निवेशक हैं तो प्राइवेट स्कूल के मालिक क्या हैं? क्या प्राइवेट स्कूलों के बारे में सरकार का यह रवैया इस कारण है कि उत्तराखंड के मंत्री, विधायकों, अधिकारियों व रसूखदार लोगों के बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं और प्राइवेट स्कूल इन मोटी आसामियों से अपने नियम के अनुसार फीस ले रहे हैं। उत्तराखंड के इन रसूखदारों के कितने बच्चे आज तक मेडिकल परीक्षा में पास हुए, यह किसी से छिपा नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी द्वारा कुछ दिनों पहले आजीवन सहयोग निधि के नाम पर २५ करोड़ रुपए से अधिक का चंदा उत्तराखंड में एकत्र किया गया। भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक चंदा देने वालों की सूची सार्वजनिक नहीं की है। यदि वह सूची सार्वजनिक हो जाए तो शायद मेडिकल कालेजों और प्राइवेट स्कूलों के बीच खेलती सरकार की कहानी आम व्यक्ति की समझ में आ जाए।