गजेंद्र रावत
उत्तराखंड में पंत से पहले की भी लंबी फेहरिस्त है। उत्तराखंड राज्य के गठन की ऐसी कौन सी घड़ी रही होगी, जब बिना सोचे-समझे आधी रात को शपथ ग्रहण करवाया गया। उस शपथ ग्रहण से शुरू हुआ बवाल आज तक जारी है। इस प्रदेश में आधे-अधूरे कार्यकाल की फेहरिस्त लगातार लंबी होती जा रही है। संभवत यह प्रदेश के बुरे ग्रहों का ही फेर होगा कि यहां कुछ भी पटरी पर नहीं रहता।
उत्तर प्रदेश से अधूरा कार्यकाल लेकर आए उत्तराखंड के मंत्रियों विधायकों मुख्यमंत्रियों पर लगा ग्रहण हटने का नाम ही नहीं ले रहा है। वह आधा अधूरा कार्यकाल पहले दिन से ही चल रहा है। उत्तराखंड के वित्त मंत्री प्रकाश पंत के निधन के बाद मंत्रिमंडल की एक और सीट खाली हो गई है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ढाई साल का कार्यकाल दो मंत्रियों के रिक्त पदों से पूरा कर लिया। अब कुल मिलाकर 3 सीटें खाली हो चुकी है। प्रकाश पंत के निधन से खाली हुई सीट के बाद एक बार फिर वह बात भी पुख्ता हो रही है उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के अलावा मंत्रियों के लिए भी अपना कार्यकाल पूरा न करना दुखद रहा है। 9 नवंबर 2000 को अंतरिम सरकार के गठन से लेकर त्रिवेंद्र रावत की प्रचंड बहुमत वाली कैबिनेट में मंत्रियों के कार्यकाल पूरा न होने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
नित्यानंद स्वामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद कार्यकाल पूरा न करने वाले कैबिनेट मंत्री तब भगत सिंह कोश्यारी बने थे। नित्यानंद स्वामी को हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया तो नित्यानंद स्वामी पूर्व मुख्यमंत्री बन कर रह गए। कोश्यारी से हुई शुरुआत 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में नारायण दत्त तिवारी सरकार के बाद भी जारी रहा। नारायण दत्त तिवारी अभी तक के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हुए हैं, जिन्होंने गिरते पड़ते 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। तिवारी के मुख्यमंत्री रहते जब कानून बना कि मंत्रिमंडल की संख्या सीमित रहेगा तो तिवारी को अपने मंत्रिमंडल के पांच मंत्रियों को बर्खास्त करना पड़ा। तब रामप्रसाद टम्टा सुरेंद्र सिंह नेगी शूरवीर सिंह सजवाण किशोर उपाध्याय और मंत्री प्रसाद नैथानी अधूरे कार्यकाल में ही बाहर हो गए। उस दौर में काबीना मंत्री हरक सिंह रावत पर जेनी कांड के आरोप में लगे दागों के कारण उन्हें भी मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा हरक सिंह रावत वह कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए।
तिवारी के बाद 2007 में भाजपा की सरकार आई तो यहां भी वही हुआ। खंडूड़ी मंत्रिमंडल को खंडूड़ी के मुख्यमंत्री पद से हटाने के साथ ही समाप्त कर दिया गया। उनके बाद कैबिनेट मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने तो उन्हीं का कैबिनेट मंत्री का पद अधूरा हो गया। उनके बाद बनाए गए मंत्री खजान दास ने भी बचा खुचा कार्यकाल पूरा किया।
2012 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई तो विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने। विजय बहुगुणा को हरक सिंह रावत के लिए मंत्रिमंडल की एक सीट खाली रखनी पड़ी। बाद में हरक सिंह रावत ने 6 महीने बाद मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में शपथ ली।
इस बीच प्रदेश में विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री पद से बाहर हुए और हरीश रावत ने प्रदेश की कमान संभाली। हरीश रावत ने तत्कालीन काबीना मंत्री अमृता रावत को बर्खास्त कर दिनेश धनै को मंत्री बनाया। अमृता रावत और दिनेश धने दोनों आधा-आधा कार्यकाल बांटकर शांत रहे। हरीश रावत के साथ मंत्री रहे हरक सिंह रावत ने अपनी सरकार के खिलाफ बगावत की और वे अबकी बार भी आधे कार्यकाल में ही बाहर हो गए। विजय बहुगुणा और हरीश रावत के साथ मंत्री रहे बसपा के सुरेंद्र राकेश के आकस्मिक निधन के कारण जब मंत्रिमंडल की सीट खाली हुई तो हरीश रावत के कार्यकाल के आखिरी दिनों में राजेंद्र सिंह भंडारी और नव प्रभात कुछ दिनों के लिए मंत्री बने।
कुल मिलाकर 19 सालों से एक भी सरकार का मंत्रिमंडल शांति से कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। पंत की मृत्यु के बाद अब तीन खाली सीटों को भरने को लॉबिंग होना तय है।