हूजूर! जो डॉक्टर पांच साल की फीस 1 करोड़ से ज्यादा देंगे, वो नौकरी करते हुए गरीब मरीजों पर रहम कैसे करेंगे, ये भी सोचा आपने !
ज्यादा समय नहीं हुआ जब एक कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था कि डॉक्टरों को देखकर ऐसा नहीं लगना चाहिए कि जैसे कोई कसाई आ गया हो। अब अचानक सरकार के फैसले से डॉक्टरी पढ़ने की फीस 25 30 लाख से बढ़ाकर एक करोड़ कर दी गई है तो भला डॉक्टरी के पेशे को कैसे सेवा और धर्म से बांधकर रखा जा सकेगा !
एमबीबीएस की फीस वृद्धि को लेकर सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना हो रही है। सोशल मीडिया पर लोग जमकर सरकार के खिलाफ भड़ास निकाल रहे हैं। सरकार के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए लोग लिख रहे हैं कि हूजूर! जो डॉक्टर पांच साल की फीस 1 करोड़ से ज्यादा देंगे, वो नौकरी करते हुए गरीब मरीजों पर रहम कैसे करेंगे, ये भी सोचा आपने?
त्रिवेन्द्र सरकार का एमबीबीएस की फीस वृद्धि को लेकर लिया गया फैसला अब गले की फांस बनता हुआ नजर आ रहा है। फीस वृद्धि के खिलाफ छात्रों और अभिभावकों में उबाल देखने को मिल रहा है। कुछ खुलकर सामने आ गए हैं तो कुछ आने वाले दिनों में सड़कों पर दिख सकते हैं।
शपथ पत्र के भंवर में फंस गये मेडिकल स्टूडेंट
शपथ पत्र के भंवर में फंस गए हैं मेडिकल के स्टूडेंट। दरसअल निजी मेडिकल कॉलेजों की स्टेट कोटे की फीस काउंसिलिंग से पहले तय न होने से अब छात्र गफलत फंस गये हैं। मेडिकल कॉलेज विवि ने गत साल ही एमबीबीएस लेने वाले स्टेट कोटे के छात्रों से शपथपत्र भरा लिया था। इसमें कहा गया था कि यदि सरकार स्टेट कोटे की सीटों के लिए फीस बढ़ाती है तो छात्रों को बढ़ी हुई फीस देनी होगी और यदि फीस ज्यादा बढ़ी और छात्र उसे देने की स्थिति में नहीं हुए तो भी उन्हें चार साल की फीस चुका कर दाखिला छोड़ना होगा। सभी छात्रों ने शपथपत्र के साथ दाखिला तो ले लिया, लेकिन वो अब एक ऐसे भंवर में फंस गये हैं, जिससे निकलना अब उनके लिये मुश्किल होगा। अगर कोई अभिभावक इतनी फीस चुकाने में सक्षम नहीं होगा और दाखिला छोड़ता है। तो उसे शपथ पत्र के नियमों के तहत चार साल की फीस चुकाकर राहत मिलेगी। यानी सीट भी गंवानी होगी और 76 लाख रुपये भी। अब मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों की समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें? श्रीगुरु राम राय मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की फीस में बढ़ोतरी कर दी गई। फीस पहले जहां प्रत्येक साल की 4 लाख थी, अब 19 लाख रुपये कर दी गई है। जिसके खिलाफ छात्रों ने मोर्चा खोल दिया है। सूत्रों की माने तो आने वाले दिनों में कुछ और काॅलेज भी इस तरह का निर्णय ले सकते हैं।
सरकार का तानाशाही भरा फैसला
सरकार के फैसले से अविभावकों व आम जनता में भी खासा नाराजगी देखने को मिल रही है। निजी मेडिकल विवि संयुक्त अभिभावक संघ ने फीस बढ़ोतरी को उत्पीड़न करार दिया है। संघ के मुख्य संरक्षक रविंद्र जुगरान ने कहा कि वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को निर्देश दिए थे कि निजी विवि में फीस या शुल्क निर्धारण के लिये शुल्क निर्धारण नियामक समिति का गठन किया करेंगे। उसके बाद उत्तराखंड में भी ये समिति का गठन किया गया था। लेकिन, गत दिनों गैरसैंण में हुई कैबिनेट बैठक में फीस को लेकर विधेयक पास कर दिया गया। वहीं संघ के अध्यक्ष प्रो वीपी जोशी ने कहा सरकार का ये निर्णय जन विरोधी है। इससे जहां एक ओर निम्न, गरीब व मध्यम परिवारों के नौनिहाल डाक्टर नहीं बन पायेंगे।