गिरीश गैरोला
गंगा स्वच्छता को लेकर केंद्रीय मंत्री उमा भारती की उत्तरकाशी में लगाई गयी चौपाल में कुछ सवालों का मिला जवाब , कुछ पर मंत्री ने साधी चुप्पी।
इको सेंसटिव ज़ोन को व्यवहारिक बनाने की बताई जरूरत। वनों को बेच खाने वाले तस्करों को नही पकड़ पाने का लगाया आरोप। चार धाम यात्रा मार्ग और आल वेदर रोड के निर्माण को देखते हुए कानून में ढील देने की हिमायत की
गंगा स्वच्छता के लिए निष्प्रभावी कानून पर बोली उमा – समय लगता है, वर्षो पूर्व बने बाल विवाह निरोधक कानून के बाद भी मंत्री और विधायकों के सामने हो जाते हैं बाल विवाह
जागरूकता के बाद भी कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम नही लगने का दिया उदाहरण
अपने उत्तरकाशी प्रवास के दौरान लोक निर्माण विभाग गेस्ट हाउस में केंद्रीय मंत्री उमा भारती द्वारा नमामि गंगा परियोजना के तहत गंगा को स्वच्छ रखने के लिए लगाई गई चौपाल में लोगों ने कई तरह के मुद्दे केंद्रीय मंत्री के सामने रखे, जिसमें कुछ का जवाब तो मिला लेकिन काफी कुछ को मंत्री ने भी टालना उचित समझा ।
गंगा स्वच्छता के लिए प्रभावशाली कानून बनाये जाने के सवाल पर केंद्रीय मंत्री उमा ने कहा कि वर्षो पूर्व बने बाल विवाह को रोकने के लिए कानून बनाये जाने के बाद भी कई बार मंत्री और विधायकों के सामने ही बाल विवाह हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि अक्षय तृतीया के मौके पर राजस्थान में सामुहिक विवाह के दौरान ऐसा हो जाता है।
उन्होंने बेबाकी से कहा कि अपने ही मंत्रालय के स्वच्छता कार्यक्रम में आयोजकों द्वारा स्वागत में पहनाई जाने वाली मालाओं के प्लास्टिक को वहीं मौके पर छोड़ दिया जाता है। चार धाम यात्रा के साथ आल वेदर रोड के कॉन्सेप्ट को बाधित कर रहे इको सेंसटिव जोन को उन्होंने व्यावहारिक बताया। उन्होंने कहा कि इसके लागू होने पर यहां के वाशिन्दों को जंगलियों के जैसा जीवन जीने की मजबूर होना पड़ेगा।
उत्तरकाशी में पर्यावरण के लिए खतरा बनें पॉलिथीन और प्लास्टिक को लेकर उठाए गए सवाल पर ग्रामीणों ने पूछा कि पॉलीथिन को बाजार में प्रतिबंधित करने के बजाए फैक्ट्री से ही बंद क्यों नहीं किया जाता है ? जिसके जवाब में केंद्रीय स्वच्छता सचिव परमेश्वरन अय्यर ने बताया कि इस संबंध में शहरी विकास मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय का एक राष्ट्रीय सेमिनार 22 -23 फरवरी को आयोजित होने जा रहा है। जिसमें प्लास्टिक और पॉलिथीन के उन्मूलन पर विशेष चर्चा होनी है ।
उन्होंने बताया कि प्लास्टिक और पॉलिथीन के प्रतिबंध के लिए गाइडलाइंस तैयार की जा रही है। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर डीएम उत्तरकाशी ने बताया कि नगर पालिका द्वारा पॉलिथीन उपयोग किए जाने पर ₹5000 प्रति व्यक्ति जुर्माना वसूल किया जाता है, साथ ही पॉलिथीन प्रयोग को हतोत्साहित करने के लिए जूट के बैग प्रचलन में लाए जा रहे हैं। इसके साथ प्लास्टिक से मिलते-जुलते ऐसे बैग तैयार किये जा रहे हैं, जिनको आसानी से नष्ट किया जा सके।
2500 किमी के गंगा के सफर में सिर्फ गंगोत्री से उत्तरकाशी तक के सौ किलोमीटर क्षेत्र पर ही इको सेंसिटिव जोन थोपे जाने से नाराज ग्रामीणों ने सवाल किया कि इसी इलाके में पर्यावरणविदों को पर्यावरण संतुलन की याद आती है और वे विकास कार्यो को रोक देते है और जल विद्युत परियोजनाएं आधी निर्माण होने के बाद बन्द हो जाती है ।
उन्होंने आरोप लगाया कि गंगा के उद्गम से 100 किलोमीटर में ही पर्यावरणविदों को पर्यावरण की चिंता सताती है, जबकि हरिद्वार से नीचे गंगा का प्रदूषण उन्हें दिखाई नहीं देता।
गंगोत्री विधायक गोपाल रावत ने भी केंद्रीय मंत्री के सामने रखी अपनी फरियाद। ज़ोन 5 में स्थित नगर की बताई पीड़ा।
गंगोत्री के विधायक गोपाल सिंह रावत ने भी खुलकर केंद्रीय मंत्री उमा भारती की चौपाल में अपनी पीड़ा सामने रखी। उन्होंने कहा कि वे हालांकि विधानसभा मैं अपनी बात रख चुके हैं किंतु केंद्रीय मंत्री के माध्यम से लोकसभा तक अपनी पीड़ा पहुंचाना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि एनजीटी के एक्शन के बाद उच्च न्यायलय ने गंगा के किनारे दोनों तरफ 200 मीटर दूर तक भवन निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब सवाल यह है कि नदी से 200 किलोमीटर दूर घर नहीं बनाए जा सकते तो वे आखिर घर बनाए कहां ? 200 मीटर दूर या तो पहाड़ी शुरू हो जाती है या आरक्षित वन शुरू हो जाता है, जिसके अपने कायदे कानून हैं। लिहाजा गंगा किनारे बसी सभ्यता वर्षों से गंगा की निर्मलता और पवित्रता को बनाए रखे हुए हैं और वह अपने स्तर पर इसकी जिम्मेदारी भी लेने को तैयार हैं किंतु ऐसे नियम जो धरातल पर व्यावहारिक नहीं है, उन पर केंद्र सरकार को कोई ठोस निर्णय लेने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि उत्तरकाशी जनपद ज़ोन 5 में स्थित है, जहां अक्सर आपदाएं आती रहती हैं और ग्रामीणों के खेत खलिहान और जमीन नदी में बाढ़ की भेंट चढ़ जाती है । जबकि बाढ़ से जमीन को बचाने के लिए कोई व्यवस्था फिलहाल नही बनी है।
चौपाल में गणेश पुर की प्रधान पुष्पा चौहान ने बताया कि गंगा भागीरथी से लगे हुए उनकी ग्राम सभा में ग्रामीणों की मदद से हंड्रेड परसेंट ओडीएफ किया जा चुका है, किंतु निर्माणदाई संस्थाओं- लोक निर्माण विभाग अथवा बीआरओ के मजदूरों के लिए कोई भी टॉयलेट्स नहीं बनाए गए हैं, जिसके चलते उत्तरकाशी से लेकर भैरव घाटी और चीन सीमा नेलांग तक हजारों की तादाद में स्थाई कैंप में रहने वाले मजदूर खुले में शौच कर रहे हैं। जिनके लिए कोई भी व्यवस्था ठेकेदार द्वारा नहीं की गई है और न उन पर लगाम लगाने की कोई व्यवस्था है । ऐसे में गंगा स्वच्छता अभियान पर सवाल खड़े होना लाजमी हैं ।
होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह मटुरा ने एनजीटी और पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड पर सवाल उठाते हुए अपनी पीड़ा केंद्रीय मंत्री के सामने रखी। उन्होंने कहा कि पीसीबी द्वारा 20 से अधिक कमरों वाले होटलों को अपने निजी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की बाध्यता बताई गई है, जो पहाड़ की भौगोलिक स्थिति में व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने बताया कि यहां पारंपरिक तौर पर सीवर को सोख्तागड्ढों में समायोजित किया जाता रहा है, जबकि नगर क्षेत्र में निर्मित होटलों का सीवेज नगर के एसटीपी में जाता ही है । उन्होंने कहा कि होटलों को निजी एसटीपी बनाने में 10 से 12 लाख का अतिरिक्त खर्चा आता है जबकि पहाड़ के इलाकों में गर्मियों में महज एक से डेढ़ महीने तक यात्रा काल चलता है और बाक़ी महीने होटल बंद ही रहते हैं। जबकि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए नियमित रूप से सीवर की जरूरत होती है। उन्होंने केंद्रीय मंत्री से अनुरोध किया कि वे इस अव्यावहारिक कानून को लेकर संबंधित विभाग तक उनकी आवाज पहुंचाएं।
इको सेंसिटिव जोन पर बोलते हुए केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि इससे पूर्व गंगोत्री गोमुख क्षेत्र में रहने वाले साधु संतों ने भी इस कानून की अव्यावहारिकता के बारे में उन्हें अवगत कराया था, जब इस कानून की आड़ में साधु संतों को उनके कुटिया उसे बाहर जबरन निकाला जा रहा था। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार में केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश से और अब BJP सरकार ने प्रकाश जावड़ेकर से खुद इस बारे में मिली थी।
उन्होंने कहा कि गंगा स्वच्छता अभियान और पर्यावरण बचाने के लिए स्थानीय लोग जागरुक हैं, किंतु कानून की आड़ में यदि उनके विकास को बाधित किया गया तो तो वे जंगली जीवन जीने के लिए विवश हो जाएंगे।
उमा ने आरोप लगाया कि जंगलों की रक्षा में नियम कानून और विभाग सक्षम नहीं है और खुलेआम तस्करों द्वारा जंगलों का सफाया किया जा रहा है और जो लोग पकड़े जा रहे हैं, वह छोटे-मोटे लोग हैं। जबकि बड़े तस्कर जंगल साफ कर करोड़ों हजम कर रहे हैं।
उमा भारती ने कहा कि कानून व्यावहारिक होना चाहिए और विकास में बाधक नहीं होना चाहिए। चार धाम यात्रा और ऑल वेदर रोड के निर्माण को देखते हुए नियम कानून में शिथिलता दी जानी चाहिए। विकास में पर्यावरण के नियम वाधक नहीं होने चाहिए और विकास के काम में भी पर्यावरण का उल्लंघन नही होना चाहिए। इस बारे में उनकी बात संबंधित मंत्रालय से होती रहती है।