प्रचंड बहुमत में सत्तासीन होने से पहले चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र के 6 नंबर पृष्ठ पर बाकायदा हाईलाइट कर यह घोषणा की थी कि सत्ता में आने के 6 माह के अंदर-अंदर वह समस्त सरकारी विभागों के रिक्त पदों को भर देगी।
आज डेढ़ साल हो गए हैं। सरकार को प्रचंड बहुमत दिलाने वाले युवा इस घोषणा के पूरे होने की आस में देहरादून में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हुए निराश हो गए हैं लेकिन सरकार और अफसरों को विदेश दौरों तथा घपले घोटालों से ही फुर्सत नहीं है।
उदाहरण के तौर पर कनिष्ठ अभियंता के 150 पदों पर परीक्षाएं करवाने का अधियाचन कार्मिक विभाग में 1 मई 2017 को कार्मिक विभाग ने लोकसेवा आयोग हरिद्वार को भेजा था। इस अधियाचन में कई तरह की गलतियां थी। अधियाचन में दर्शाई गई और विभागों की सेवा नियमावली में सेवा शर्तों में काफी असमानता थी।
आयोग के पत्रों का उत्तर देना अपमान समझते हैं?
लोक सेवा आयोग हरिद्वार के सचिव भगवत किशोर ने इन विषमताओं को दूर करने के लिए कार्मिक विभाग को पत्र लिखा।
पहला पत्र 24 अक्टूबर 2017 को लिखा। इसका कोई जवाब कार्मिक विभाग ने लोक सेवा आयोग को नहीं भेजा। लिहाजा यह भर्तियां लटक गई। दूसरा रिमाइंडर आयोग ने भेजा इसका भी कोई जवाब शासन के कार्मिक विभाग ने नहीं दिया। इस तरह से छह रिमाइंडर भेजे गए। अंतिम पत्र आयोग ने 17 जुलाई 2018 को लिखा। इस तरह से 10 माह तक लगातार कोई जवाब ना आने पर कनिष्ठ अभियंता 150 पदों का अधियाचन लोक सेवा आयोग ने कार्मिक विभाग को वापस कर दिया है, और कारण यह दिया है कि 6 रिमाइंडर देने के बाद भी कार्मिक विभाग ने आयोग को संबंधित अधियाचन के संबंध में त्रुटियों के निस्तारण का जवाब नहीं दिया गया।
नाउम्मीद बेरोजगार ओवरएज हो रहे
इन पदों की उम्मीद में बेरोजगार यहां देहरादून में कई साल से कोचिंग कर रहे हैं, और सरकार ऐसा कर रही है।
कार्मिक विभाग की सुस्त कार्यप्रणाली के चलते उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के माध्यम से भरे जाने वाले कनिष्ठ अभियंता के 150 और सहायक अभियंता के 47 पदों की चयन प्रक्रिया पिछले डेढ़ वर्ष से लटकी है, इसी प्रकार पेयजल निगम में पेयजल मंत्री की घोषणा के बाद भी निगम में कनिष्ठ अभियंता के 100 तथा सहायक अभियंता के 13 पदों पर विगत एक वर्ष से चयन प्रक्रिया शुरू नही हो पाई है।
सिंचाई विभाग की अक्षम्य लापरवाही
जिन विभागों में यह भर्तियां होनी हैं, वह विभाग भी उत्तराखंड के बेरोजगारों के प्रति तथा विभाग के लटकते कामकाज के प्रति जरा भी संवेदनशील नहीं हैं।
पहली गलती उदाहरण के तौर पर सिंचाई विभाग में कनिष्ठ अभियंता यांत्रिक ने सामान्य श्रेणी के 12 पदों के लिए भर्तियां निकाली थी। इसमें विभाग ने यह पद लोक सेवा आयोग हरिद्वार को भेज दिए। जबकि नियमावली के अनुसार यह पद अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा भरे जाने चाहिए थे लोक सेवा आयोग ने जब कार्मिक विभाग से पूछा कि ऐसा क्यों किया तो इसका कोई जवाब नहीं दिया गया।
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार उत्तराखंड से बाहर के कुछ अफसरों ने जानबूझकर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को भेजे जाने वाले यह पद लोक सेवा आयोग को इसलिए भेजें ताकि इसमें उत्तराखंड के बाहर से भी उनके चहेते अभ्यर्थी आवेदन कर सकें और वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए उनकी नियुक्ति करा सकें।
दूसरी गलती यही नहीं कनिष्ठ अभियंताओं के इन पदों में 3 पद महिलाओं के लिए दर्शाए गए हैं किंतु गणना तालिका में 2 पद सामान्य महिला तथा 1 पद ओबीसी महिला के लिए दर्शाया है। इस पर भी आयोग ने स्थिति स्पष्ट करने को कहा था लेकिन इसका जवाब आज तक नहीं मिला।
तीसरी गलती अधियाचन में अभ्यर्थियों की आयु की गणना की तिथि 1 जुलाई 2016 अंकित की गई है जबकि 2004 में जारी एक शासनादेश के अनुसार आयु की गणना विज्ञप्ति जारी किए जाने वाले वर्ष की प्रथम जुलाई के अनुसार किए जाने का प्रावधान किया गया था अब क्योंकि यह विज्ञापन 2018 में प्रकाशित होना था इसलिए आयोग ने पूछा था कि कार्मिक विभाग द्वारा आयु की गणना 1 जुलाई वर्ष 2016 पर स्थिति स्पष्ट करें लेकिन इसका भी कोई जवाब आज तक नहीं भेजा गया।
चौथी गलती यही नहीं सिंचाई विभाग ने अधियाचन में शैक्षिक योग्यता कुछ और मांगी है जबकि उनकी सेवा नियमावली में शैक्षिक योग्यता कुछ और है। इस असमानता पर भी शासन ने कोई स्थिति स्पष्ट नहीं की।
सिंचाई विभाग के कनिष्ठ अभियंता सिविल के पद भी सेवा नियमावली के अनुसार अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से भरे जाने चाहिए थे किंतु यह पद भी लोक सेवा आयोग को भेज दिए गए।
पांचवीं गलती इस अधियाचन में उत्तराखंड के विशिष्ट खिलाड़ियों के लिए सामान्य श्रेणी का एक पद दर्शाया गया है लेकिन वर्तमान में विशिष्ट खिलाड़ियों के लिए आरक्षण अनुमन्य नहीं है।
ऐसे में अधियाचन तैयार करने वालों की समझ पर तरस आता है। इन्हें आखिर किस बात का वेतन मिलता है ! जब इनको यह तक पता नहीं है कि जिस पद के लिए उत्तराखंड में आरक्षण ही अनुमन्य नहीं है, उस पद को आरक्षण की श्रेणी में कैसे मान लिया ! ऊपर से आयोग लगातार पूछ रहा है लेकिन इनके कान में जूं तक नहीं रेंगती।
ग्रामीण निर्माण विभाग के भी यही हाल
छठी गलती पर भी नजर डालिए! ग्रामीण निर्माण विभाग में कनिष्ठ अभियंता प्राविधिक के पद के लिए अधियाचन में शैक्षिक योग्यता मांगी गई है कि अभ्यर्थी उत्तराखंड के प्राविधिक शिक्षा परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त संस्था से सिविल अभियंत्रण में डिप्लोमा होना चाहिए, जबकि संगत सेवा नियमावली में उल्लेख है कि अभ्यर्थी परिषद के अलावा किसी अन्य मान्यता प्राप्त संस्था से भी सिविल अभियंत्रण में डिप्लोमा हो सकता है। अधियाचन और सेवा नियमावली मे विषमता पर लोक सेवा आयोग ने स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा तो ग्रामीण निर्माण ने भी जवाब नहीं दिया।
पंचायती राज ने जबाब दिया कार्मिक ने दबाया
पंचायती राज विभाग ने आयोग द्वारा पूछे गए शासन को भेज दिया है लेकिन शासन में कार्मिक विभाग ने आयोग को अवगत कराना तक उचित नहीं समझा।
पंचायती राज विभाग में कनिष्ठ अभियंता के पद पर भर्ती के संदर्भ में आयोग ने पूछा था कि यह पद लिखित और साक्षात्कार के द्वारा भरे जाने हैं अथवा केवल साक्षात्कार के माध्यम से !
इस पर पंचायती राज विभाग में अपना जवाब काफी दिन पहले शासन को भेज दिया था कि इन पदों पर लिखित परीक्षा और साक्षात्कार दोनों कराए जाएं हालांकि कार्मिक विभाग ने अभी तक आयोग को इस से अवगत नहीं कराया है।
पहली जिम्मेदारी तो सिंचाई, ग्रामीण निर्माण तथा पंचायती राज विभाग की थी कि उन्हें अधियाचन भेजते समय इन चीजों को पहले ही स्पष्ट करके भेजना चाहिए था। अब 6 बार से आयोग लगातार स्थिति स्पष्ट करने को कह रहा है।
दूसरी जिम्मेदारी शासन की है कि आयोग का जवाब देना तक अपनी तौहीन समझ रहा है।
कनिष्ठ अभियंता के लिए तैयारी कर रहे रविंद्र सिंह बिष्ट आरोप लगाते हैं कि सरकारी अधिकारी तथा सरकार में बैठे जनप्रतिनिधि सिर्फ बैक डोर भर्तियां कराने में दिलचस्पी लेते हैं तथा इन भर्तियों को इसलिए भी लटकाया जा रहा है ताकि इन पदों पर पहले से संविदा में काम कर रहे कार्मिकों को ना हटाना पड़े।
गंभीर सवाल
क्या कारण है कि अधियाचन भेजते समय उन्होंने सेवा नियमावली तथा अधियाचन की सेवा शर्तों पर जरा भी गंभीरता से होमवर्क नहीं किया ! यदि भारी भरकम ढांचे वाले इन विभागों को इतना काम भी करने में रुचि नहीं है तो समझ में नहीं आता कि रात दिन शासन और विभागीय अधिकारी आखिर किस तरह की मीटिंग में व्यस्त रहते हैं ?
इससे युवाओं को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। देहरादून के भगत सिंह कॉलोनी में सीलन भरे कमरे में इन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे उत्तरकाशी के ब्रह्म खाल निवासी कुंदनलाल कहते हैं कि मौजूदा सरकार के घोषणापत्र में 6 माह के भीतर सभी रिक्त पदों पर भर्ती का वादा किया गया था लेकिन सरकार का यह वादा भी खोखला निकला।
पिछले 2 वर्ष से पिथौरागढ़ के धारचूला से आकर देहरादून में परीक्षाओं की तैयारी कर रहे वीरेंद्र बल्दिया कहते हैं,-” नौकरियों की आस में प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के युवा देहरादून में सालों से कोचिंग में लगे हैं, जहां पर महीने का खर्च 10-12 हजार लगता है लेकिन सरकार के इस रवैये से बेरोजगार युवाओं में काफी निराशा है।” कांग्रेस नेता देवेंद्र नौडियाल आरोप लगाते हैं कि सरकार जानबूझकर रिक्त पदों की भर्ती चुनावी मौसम को देखते हुए अभी रोक कर रखना चाहती है।