उत्तराखंड में सियासत के गलियारों में मचा तूफान विधायक कुंवर प्रणव के माफीनामे के बाद आम आदमी को सतह पर भले ही शांत दिख रहा हो लेकिन खुद को शेर कहने वाले चैंपियन को भी शायद ही पता होगा कि वह सत्ता की बिसात पर प्यादे की तरह इस्तेमाल होकर शहीद हो चुके हैं।
पर्दे के पीछे की कहानी यह है कि उत्तराखंड में चिर विद्रोही चिर अशांत दिग्गजों ने फिर से हाथ मिला लिए हैं। यह अंदरखाने अपने-अपने लक्ष्य तय करके सब एकजुट होकर अगला मोहरा तैयार करने लगे हैं।
इनमें से दो दिग्गज राज्यसभा के लिए अपना लक्ष्य बना चुके हैं तो दो अन्य एक साल का समय पूरा होते-होते नेतृत्व परिवर्तन कराने के लक्ष्य के साथ अपने लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी भी तय कर चुके हैं।
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार आपस में यह तय हो चुका है कि केंद्र में जिसकी जैसी पहुंच होगी, वह अपनी ओर से कोशिश करेगा लेकिन आपस में एक दूसरे का नाम आगे आने पर कोई भी विरोध नहीं करेगा।
मंत्री और राज्य सभा दोनों लक्ष्यों के लिए पैक्ट एक ही है कि आपस में विरोध नहीं होगा। जिस दीये में जान होगी वह दीया रह जाएगा।
पाठकों को याद होगा कि आजीवन सहयोग निधि के कार्यक्रम के बाद सरकार संगठन और केंद्र में विभिन्न पदों पर आसीन कई दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के घर चाय पार्टी के बहाने एक जुट हुए थे। इसमें कुछ समय पहले तक एक दूसरे के खिलाफ बाकायदा मंच से भाषणबाजी करने वाले भगत सिंह कोश्यारी को शिव प्रकाश के साथ चाय शेयर करने में कोई दिक्कत नहीं थी, तो पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को भी पिछली सरकार में अपने से नाराज रहने वाले यशपाल आर्य के बगलगीर होने में कोई परहेज नहीं था।
कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन यह बिल्कुल साफ है कि शिवप्रकाश के समर्थक उन्हें इस बार राज्यसभा में देखना चाहते हैं तो विजय बहुगुणा भी अपने एक पुत्र सौरव बहुगुणा के विधायक बन जाने के बाद अपने लिए भी राज्यसभा की सीट चाहते हैं और अपने दूसरे पुत्र साकेत बहुगुणा के लिए टिहरी की संसदीय सीट पक्की करना चाहते हैं। साकेत बहुगुणा के संपर्क भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे से थोड़ा अनौपचारिक हैं। इस लिहाज से इसी दौरान विजय बहुगुणा की अपने बेटे के साथ अमित शाह से मुलाकात कोई साधारण मुलाकात नहीं थी।
सियासत का तकाजा देखिए कि एक तरफ भगत सिंह कोश्यारी पहले दिन निशंक की चाय पार्टी में शामिल थे तो दूसरे दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ एक ही हेलीकॉप्टर में बैठकर केंद्रीय नेताओं से मिलने दिल्ली भी गए। यह कोई साधारण दौरा होता तो कोई शायद चर्चा नहीं होती लेकिन चाय के प्याले में उठे तूफान के तत्काल बाद दूसरे दिन त्रिवेंद्र रावत के साथ दिल्ली जाना और त्रिवेंद्र सिंह रावत के मीडिया कोऑर्डिनेटर दर्शन सिंह रावत द्वारा उनकी यह फोटो सोशल मीडिया में जारी करना इस बात के संकेत देता है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कुनबा यह संदेश देना चाहता था कि भगत सिंह कोशियारी दूसरे धड़े में नहीं बल्कि उनके धड़े में शामिल हैं। अथवा उन्हें “तोड़” दिया गया है।
इसके दो दिन बाद कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ने अमित शाह से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तथा कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक की जो शिकायत की और उसके बाद मुख्यमंत्री द्वारा उनसे नाराजगी के सियासी ड्रामे के बाद भाजपा संगठन द्वारा उनको नोटिस देना और चैंपियन का माफी मांगना एक तरह से इस पर प्रहसन का पटाक्षेप समझा जा रहा था।
लेकिन भगत सिंह कोश्यारी ने घाव पर मरहम लगाने के बजाय चैंपियन की पीठ ठोकते हुए कह डाला कि चैंपियन तो चैंपियन है। जबकि केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा ने इस प्रकरण पर मिट्टी डालते हुए यह बयान दिया कि वह चैंपियन को जानते तक नहीं।
जाहिर है कि दोनों के बयान चरमपंथी थे। यह चरमपंथी बयान इस बात की तस्दीक करते हैं कि सरकार और संगठन में सब कुछ सही नहीं है। सरकार से प्रकाश पांडे मुआवजा प्रकरण को लेकर नाराज चल रहे हल्द्वानी विधायक बंशीधर भगत और मुख्यमंत्री के करीबी मदन कौशिक के विरोधी और डॉक्टर निशंक तथा चैंपियन के करीबी हरिद्वार ग्रामीण के विधायक स्वामी यतींद्रानंद सहित निशंक और कोश्यारी खेमे के विधायक पुष्कर सिंह धामी,राजकुमार ठुकराल, प्रदीप बत्रा, गणेश जोशी तथा अन्य विधायकों का निशंक के घर पर हुआ जमावड़ा आखिर किस तर्क और तथ्य के आधार पर नकारा जा सकता है !
इसे केवल सियासी शुतुरमुर्ग ही अनदेखा कर सकते हैं।
एक ओर नाखुशी का इस तरह से खुलेआम इजहार और दूसरी तरफ श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का अपनी ही टीम के कदमों को थाम लेना कभी भी विस्फोटक सिद्ध हो सकता है।
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार ऐसे कई पुख्ता उदाहरण हैं, जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी ही सरकार में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, प्रकाश पंत के कदमों को थामा है तो संगठन के मुखिया अजय भट्ट भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के कारण कई बार असहज हुए हैं।
सतपाल महाराज के भाई भोले महाराज को अधिक तवज्जो और महाराज के करीबी सचिव मीनाक्षी सुंदरम को लगभग पैदल कर देने से महाराज खफा हैं तो वन महकमे में आवश्यकता से अधिक हस्तक्षेप के कारण हरक सिंह रावत नाराज चल रहे हैं।
इसके अलावा उपेक्षित चल रहे कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का डॉक्टर निशंक के घर पर चाय पार्टी में शामिल होना सियासत के जानकारों के लिए पर्याप्त भविष्यवाणी कर देता है कि यदि सत्ता में षड्यंत्रों का तिलिस्म इसी तरह से निपटने- निपटाने में व्यस्त रहा तो किसी दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी भी उनकी तशरीफ़ के नीचे से चुपके से कब खिसक जाए कोई कह नहीं सकता।
ऐसे में लाख टके का सवाल यही है कि उत्तराखंड सरकार को अस्थिर करने वाला मास्टरमाइंड आखिर है कौन !
यह मास्टरमाइंड पहले निशंक के घर में टी पार्टी में शामिल होने वाले और फिर सीएम त्रिवेंद्र के साथ दिल्ली जाने वाले भगत सिंह कोश्यारी हैं या फिर सोडे के झाग की तरह उफनने और बैठ जाने वाले चैंपियन हैं या त्रिवेंद्र कैबिनेट में घुटन महसूस कर रहे सतपाल महाराज, यशपाल आर्य अथवा हरक सिंह रावत हैं। या बाहर बैठकर अपनी बारी का इंतजार करने वाले दो अन्य कूल माइंड दिग्गज !