एनएच 74 घोटाले में आरोपित आईएएस अफसर चंद्रेश यादव को पहले सस्पेंड करने और अब बहाल करने से नए सवाल खड़े हो गए हैं। सरकार के लिए यह बड़ा झटका है।
गौरतलब है कि 300 करोड़ रुपए के एन एच घोटाले में उधम सिंह नगर के तत्कालीन डीएम पंकज पांडे और चंद्रेश यादव को सस्पेंड कर दिया गया था किंतु अब चंद्रेश यादव को बहाल करने से सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि यदि उन्हें बहाल करना ही था तो सरकार ने इतना कमजोर होमवर्क करके एक आईएएस के ऊपर सीधे हाथ कैसे डाल दिया !
चंद्रेश यादव को बहाल तो कर दिया गया है लेकिन उन्हें अभी तक कोई विभाग नहीं दिए गए हैं। उन्हें निलंबन काल का पूरा वेतन दिया जाएगा अथवा नहीं इस पर भी स्थिति साफ नहीं है। यदि चंद्रेश यादव निलंबन काल के वेतन के लिए कोर्ट चले गए तो सरकार की हालत और पतली हो जाएगी।
चंद्रेश यादव की बहाली के बाद पंकज कुमार पांडे से भी सरकार की पकड़ और ढीली हो चली है। देर सबेर पंकज पांडे को भी राहत मिलने की संभावना बढ़ गई है।
जिस कांग्रेस पर एनएच 74 घोटाले के आरोप लगे थे वहीं कांग्रेस फ्रंट फुट पर आकर सरकार को जांच के लिए ललकार रही है और सरकार है कि बैकफुट पर है। आखिर यह कैसा जीरो टोलरेंस है !!
तो क्या ये जुमला था !
इससे उनकी प्रतिष्ठा पर जो आंच आई आखिर उसकी भरपाई कैसे हो सकेगी ! सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या यह सरकार ने अपनी छवि चमकाने के लिए कोई सस्ता प्रयास किया था !
सरकार ने चंद्रेश यादव को सस्पेंड तो कर दिया लेकिन उन पर आरोप सिद्ध नहीं कर सकी। अखिल भारतीय सेवा नियमावली के मुताबिक आईएएस अफसर को अधिकतम 30 दिन के लिए ही सस्पेंड रखा जा सकता है। इससे अधिक सस्पेंशन अवधि बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है साथ ही सस्पेंशन अवधि बढ़ाने के लिए वजह भी बतानी होती है लेकिन राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को ऐसा कोई पत्र नहीं लिखा इसलिए चंद्रेश यादव ने बहाली के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। लिहाजा डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग के एडीशनल चीफ सेक्रेट्री राधा रतूड़ी को उन्हें बहाल करने के आदेश जारी करने पड़े।
पिछले काफी दिनों से उत्तराखंड सरकार का एक ट्रेंड देखने में आ रहा है कि सरकार अपनी ताकत का दुरुपयोग अपनी हनक सनक दिखाने के लिए ज्यादा कर रही है। इसलिए बिना होमवर्क के सरकार की कार्रवाई अदालतों में नहीं टिक पा रही है। इससे सरकार पर बदले की नीयत से कार्यवाही करने के आरोप ज्यादा लग रहे हैं। यह सरकार की छवि के लिए कोई शुभ संकेत भी नहीं है। पिछले एक साल में सत्ता के प्रशासनिक दुरुपयोग के कारण मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की लोकप्रियता का ग्राफ काफी नीचे खिसक गया है।