मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भले ही प्रचंड बहुमत के साथ सरकार चला रहे हों, किंतु उन्हें बाहर और भीतर से बार-बार विधायकों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अपने ही दल के विधायकों द्वारा की जा रही घेराबंदी से सरकार कई बार असहज हो रही है।
पिछले दिनों जब न्यायालय के आदेश के बाद अतिक्रमण हटाओ दस्ता प्रेमनगर बाजार पहुंचा तो विधायक हरबंश कपूर, उमेश शर्मा काऊ, खजानदास, गणेश जोशी ने अभियान टीम को वापस भेज दिया था, किंतु अब सरकार ने प्रेमनगर बाजार ध्वस्त कर डाला है। प्रेमनगर में हुई इस कार्यवाही के बाद न सिर्फ सरकार के खिलाफ विधायकों के आक्रोश है, बल्कि एक प्रकार से अब विधायक सरकार को भी आईना दिखाने लगे हैं। त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ नए अभियान की कमान विधायक हरबंश कपूर के हाथों में है।
१८ सितंबर २०१८ को विधानसभा सत्र के पहले दिन सरकार के वरिष्ठतम विधायक पूर्व मंत्री व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरबंश कपूर ने नियम ३०० के अंतर्गत विधानसभा में प्रेमनगर के व्यापारियों को अतिक्रमण की आड़ में बेरोजगार करने का सवाल उठाया। हरबंश कपूर इसके बाद प्रभावित व्यापारियों और विधायक उमेश शर्मा काऊ को लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से उनके कार्यालय में भी मिले।
इससे पहले हरबंश कपूर १४ सितंबर को भी सरकार के खिलाफ बयान दे चुके हैं। देश के विभाजन के बाद जो परिवार सब कुछ छोड़कर जीरो से मेहनत कर अपने को स्थापित कर सके, तब रिफ्यूजी और आज अतिक्रमणकारी, तब मजबूरी अब मजबूर। हरबंश कपूर ने १४ सितंबर को अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर सरकार पर सीधे निशाना साधते हुए कहा ”सरकार सभी को नौकरी नहीं दे सकती। सदियों से गली-मौहल्ले में छोटी-छोटी दुकानें जहां स्थानीय नागरिकों को रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति करती आई है। ऐसे दुकानदारों को अतिक्रमणकारी करार कर उजाडऩा उन्हें स्वरोजगार से वंचित करना न मानवीय और न न्यायोचित?” वर्षों से चले आ रहे ऐसे बाजारों को उजाडऩा कहां का न्याय है। हरबंश कपूर द्वारा सरकार और न्यायालय पर सीधे किए जा रहे इस प्रहार के बाद स्थिति अभी और असहज होने की संभावना है।
कपूर समर्थकों का कहना है कि जब कपूर की विधानसभा में अतिक्रमण के नाम पर इतनी बड़ी कार्रवाई कर दो सौ से अधिक दुकानदारों को बेरोजगार कर दिया गया है तो देहरादून के शेष क्षेत्रों को बचाने का क्या मतलब?
विधायकों के बीच मचे इस द्वंद के बीच सरकार और अधिक असहज हो गई है। सबसे गंभीर प्रश्न तो मलिन बस्तियों को बचाने के लिए अध्यादेश लाने को लेकर खड़ा हो गया है कि जब आजादी के बाद से जमे व्यापारियों को नहीं बख्शा गया तो आखिरकार चंद वर्षों में देहरादून के नदी-नालों को कब्जाकर मलिन बस्तियां बसाने वालों को बचाने के लिए अध्यादेश लाने का क्या औचित्य है?