उत्तराखंड मे भाजपा के प्रदेश मुख्यालय देहरादून में बैठकर जन समस्याएं सुनने से मंत्रियों का एक माह में ही मोहभंग हो गया। बीते कुछ दिनों से कोई भी मंत्री भाजपा मुख्यालय में नहीं बैठ रहे हैं और न ही इसकी सूचना भाजपा मुख्यालय को दे रहे हैं। प्रदेश संगठन इस मामले में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है।
लोग अपनी समस्याएं लेकर भाजपा मुख्यालय में आ रहे हैं, किंतु खाली हाथ वापस लौट रहे हैं। शनिवार तथा रविवार को दर्जनों लोग अपनी समस्याएं लेकर मंत्रियों से मिलने के लिए भाजपा मुख्यालय में आए किंतु उन्हें निराश वापस लौटना पड़ा।
प्रदेश संगठन का कोई भी पदाधिकारी मंत्रियों के संबंध में कोई सूचना देने की स्थिति में नहीं है।
लगातार दो दिन मंत्रियों के न बैठने पर अब सोमवार को भी किसी मंत्री के बैठने की कोई संभावना नहीं दिख रही। जन समस्याओं को सुनने के लिए कई मंत्रीगण शुरुआत से ही उपेक्षित रुख अपनाते रहे हैं। शुरू में तो किसी मंत्री के न बैठने पर उनके बदले में सरकार के प्रवक्ता तथा कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक और अरविंद पांडे ने किसी तरह स्थिति को संभाला। किंतु अब वे भी बिगड़ते हुए मामले को अधिक संभालने की स्थिति में नहीं है।
मुख्यालय में बैठने का समय आने पर मंत्रीगण देहरादून से बाहर अपना दौरा लगा देते हैं। प्रदेश मुख्यालय का कहना है कि लगातार तीन दिन छुट्टियों का माहौल होने के कारण संभवतः ऐसी स्थिति बनी है।
गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा मुख्यालय में आम जनता को काफी सहूलियत होती थी। विधानसभा में मंत्रियों से मुलाकात के लिए प्रवेश पत्र बनवाने सहित काफी औपचारिकताएं करनी पड़ती है।
लगातार बैठकों के कारण विधानसभा में अपनी समस्या को लेकर आम आदमी को मिलने में काफी कठिनाई होती है। कई बार तो विधानसभा जाकर पता चलता है कि मंत्रीगण तो क्षेत्र में दौरे पर हैं अथवा कैबिनेट मीटिंग या किसी कार्यक्रम के सिलसिले में गए हुए हैं।
ऐसे में जब प्रत्येक दिन उत्तराखंड के भाजपा मुख्यालय में किसी न किसी मंत्री को जनसमस्या सुनने के लिए व्यवस्था बनाई गई तो इससे आम आदमी में काफी खुशी का माहौल था।
इस कार्यक्रम को जनता से अच्छा रिस्पांस मिल रहा था। किंतु समय के साथ-साथ यह आशंका भी गहराने लगी थी कि आखिर उनकी समस्याओं का कोई निस्तारण भी होगा अथवा नहीं कई लोग तो 1 माह पूरा होने पर अपनी समस्या को लेकर हुए निदान के संबंध में सूचना के अधिकार में आवेदन करने का भी मन बना चुके थे। संभवतः मंत्रीगणों को भी लगता है कि इस तरह के कार्यक्रमों में जनसमस्याओं के पुलिंदे महज औपचारिकता सिद्ध हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो इसका गलत संदेश जाएगा। मुख्यालय में बैठकर जन समस्याएं सुनने की योजना इतनी जल्दी फ्लॉप होने से सरकार की छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।