इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई है। तिरालिस से पचास सीटें मिलने की उम्मीद लगाए बैठी कांग्रेस की सुंई परिणामों में ग्यारह के आंकड़े पर ही अटक गयी। क्या कारण रहे हैं इस हार के। इसको लेकर हमारे हरिद्वार ब्यूरो प्रमुख ‘कुमार दुष्यंत’ ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय से बातचीत की। प्रस्तुत है इस वार्ता के मुख्य अंश।
पूरे उत्तराखंड में कांग्रेस की करारी हार हुई है। क्या कारण मानते हैं?
-हम हार के कारणों की समीक्षा कर रहे हैं। कारण कई हो सकते हैं। भाजपा पिछले साल भर से येन केन प्रकारेण सत्ता हथियाने की कोशिशों में थी। हमारे पास संसाधन कम थे। और उन्होंने पानी की तरह पैसा बहाया!
ईवीएम को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। आप भी इससे सहमत हैं?
-स्वभाविक है! ये हार अप्रत्याशित है। कोई भी इसको पचा नहीं पा रहा है। यदि ईवीएम को लेकर सवाल उठ रहे हैं। तो उनका जवाब मिलना चाहिए। यदि मशीनों में गडबडी हो सकती है तो फिर भविष्य में चुनावों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा!
भाजपा तो इसे मोदी-लहर का नाम दे रही है?
-वह इसे जो चाहे नाम दें। पिछले साल जब अमित शाह हल्द्वानी आये थे। तो उन्होंने खुले मंच से कहा था कि हम भले ही पूरे देश में राज करें। लेकिन अगर उत्तराखंड नहीं जीता तो समझो कुछ नहीं जीता। हमें तभी सतर्क हो जाना चाहिए था। लेकिन हम संकेतों को समझने में विफल रहे।
टिकट वितरण में रावत जी का हस्तक्षेप रहा। क्या यह भी कारण हो सकता है?
-देखिए, चुनाव लड़ाने का काम चुनाव संचालन समिति करती है। टिकट भी हाईकमान तय करता है। अब हार हुई है तो इसके लिए किसी एक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
आप भी सहसपुर से लड़ने के इच्छुक नहीं थे?
-मेरा कहना सिर्फ यह था कि चुनाव प्रबंधन भी किसी को देखना चाहिए। लेकिन रावत जी सहित पूरी टीम का निर्णय था कि मुझे लड़ना चाहिए।
भीतरघात भी कांग्रेस की हार का कारण हो सकता है?
-देखिए, जब किसी को टिकट नहीं मिलता। तो कुछ नाराजगी होना स्वभाविक है। कुछ सीटों पर इसका प्रभाव हो सकता है। लेकिन हार का यह बड़ा कारण नहीं।
पीडीएफ को लेकर आप शुरू से सवाल उठाते रहे हैं। क्या इस कारण से भी कांग्रेस नुकसान में रही?
-इस बारे में आप जैसे सुधिजन ही बेहतर बता सकते हैं। मैंने तो यही सवाल उठाया था कि चुनाव में जाने से पहले सब चीजें साफ हों।
चुनाव से पहले बहुत से पद सरकार ने बांटे। क्या अब हार की जिम्मेदारियां भी तय होंगी?
-मैंने कहा न, हम हार के कारणों की समीक्षा में जुटे हैं। हार के कारण बाहरी भी हैं और भीतरी भी। भीतरी कारणों के लिए जो भी किया जाना उचित होगा, किया जाएगा।
पार्टी बुरे दौर में है। इन हालात में 2019 का सामना कैसे होगा?
-राजनीति में राजनीतिक दल ऐसे हालात से गुजरते रहे हैं। एक समय भाजपा भी पूरे देश में महज दो सीट पर सिमट गयी थी! हमारी कोशिश होगी कि कार्यकर्ताओं का मनोबल न टूटे। अपनी कमियों को सुधार कर हम 2019 में बेहतर परिणाम हासिल करेंगे।
इस हार के बाद बड़ी जवाबदेही आप पर है। क्या प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे?
-ये दायित्व हाईकमान ने मुझे सोंपा है। और जब तक हाईकमान चाहेगा मैं इस पद पर बना रहूं। मैं अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करता रहूँगा।
अब भाजपा सरकार का गठन हो चुका है। प्रदेश के लिए किस तरह से देखते हैं?
-मोदी जी यहां आए थे। कह गये थे कि उत्तराखंड में जिताओगे तो डबल ईंजन लगाऊंगा। अब देखना है कि वह राज्य की बेहतरी के लिए कैसे और कौन से डबल ईंजन यहां लगाते हैं!